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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


अभी तो मैं थोड़े में आपको केम्ब्रिज युनिवर्सिटी और उसके कॉलेजों के इतिहास-विकास और उसके वर्तमान स्वरूप के विषय में बता दूं। कहते हैं. तेरहवीं सदी के प्रारम्भ में ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से कुछ विद्यार्थी, वहाँ से किसी कारण असन्तुष्ट होकर, केम्ब्रिज आये और यहाँ उन्होंने 'स्टूडियम जनरेल' के नाम से एक शिक्षा केन्द्र की स्थापना की, जिसे शताब्दी के तीसरे दशक के अन्त में युनिवर्सिटी के रूप में राजकाय मान्यता दी गयी। इस बात को ऑक्सफोर्ड वाले क्वचिद् अभिमान से कहते हैं कि केम्ब्रिज युनिवर्सिटी तो हमारी ही सन्तान है। उधर केम्ब्रिज वालों का दावा है कि ईस्ट ऐंग्लिया के राजा ने सातवीं शताब्दी में ही यहाँ एक स्कूल की स्थापना की थी, जिसमें ऑक्सफोर्ड के विद्यार्थी आकर भरती हुए और बाद को उसी को 'स्टूडियम जनरेल' का नाम दिया गया, उसी को केम्ब्रिज युनिवर्सिटी का। सच्चाई तो अतीत के धुंध में खो गयी है पर अस्तित्व में आ गयी है-ऑक्सफोर्ड और केम्ब्रिज की प्रतिद्वन्द्विता, जो समय-समय पर अनेक विनोदपूर्ण रूपों में प्रकट होती रहती है।

केम्ब्रिज के कॉलेज केम्ब्रिज युनिवर्सिटी के अविभाज्य अंग हैं। आजकल इनकी संख्या बाईस है-इनमें से सात कॉलेज चौदहवीं सदी में, चार पन्द्रहवीं में, सात सोलहवीं में और चार उन्नीसवीं सदी में स्थापित हुए थे। पहला कॉलेज पीटर हाउस था, जो सन् 1284 में स्थापित हुआ था, उन्नीसवीं सदी के कॉलेजों में गर्टन और न्यूनम, जो क्रमश: 1867 और 1871 में स्थापित हुए थे, लड़कियों के लिए हैं। कॉलेजों की इमारतें ऐतिहासिक, भव्य और दर्शनीय हैं।

युनिवर्सिटी विभिन्न विषयों में लेक्चरों का प्रबन्ध करती है, परीक्षा लेती है, डिग्री देती है, विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की देख-रेख करती है-फेनर्स नामक संस्था द्वारा-खेल-कूद का इंतज़ाम कराती है और स्टूडेन्ट्स यूनियन चलाती है। कॉलेज विद्यार्थियों के आवास और भोजन की व्यवस्था करते हैं, छोटे-छोटे सेमिनारों द्वारा उनके शिक्षण पर वैयक्तिक ध्यान देते हैं और उच्च कोटि के विद्यार्थियों और स्नातकों को अच्छी छात्रवृत्तियाँ देकर युनिवर्सिटी-शिक्षा पाने अथवा विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ बनने में सहायता पहुँचाते हैं। कॉलेज का प्रमुख ‘मास्टर' अथवा 'प्रोवोस्ट' कहलाता है, फेलो' उन स्नातकों को कहते हैं, जो कॉलेज की छात्रवृत्ति पर विशेषज्ञता के लिए स्वाध्याय करते हैं, एक निश्चित अवधि समाप्त होने पर उन्हें एक थीसिस भी प्रस्तुत करनी होती है, जिसे डॉक्टरेट की थीसिस से भी अधिक महत्त्व दिया जाता है। इन्हीं में से कॉलेज के सेमिनार टीचर नियुक्त होते हैं। 'स्कालर' उन विद्यार्थियों को कहते हैं जो कॉलेज की छात्रवृत्ति पर 'ट्राइपास' की परीक्षा की तैयारी करते हैं-'ट्राइपास' तीन बरस का कोर्स-जैसे अपने यहाँ का बी०ए०, पर स्तर की दृष्टि से उससे कहीं ऊँचा। ‘पेन्शनर' वे विद्यार्थी हैं, जो अपने आवास-भोजन-शिक्षण सबके लिए कॉलेज को फीस देते हैं। कॉलेज में विद्यार्थियों के रहने के लिए कमरे होते हैं, एक बड़ा भोजन-भवन होता है, जहाँ सब विद्यार्थीअध्यापक साथ बैठकर खाना खाते हैं, सेमिनार क्लासों के लिए अलग-अलग कक्ष होते हैं, एक अच्छी लाइब्रेरी होती है, विद्यार्थियों और अध्यापकों के उठने-बैठने अथवा संगोष्ठियों के लिए अलग-अलग बड़े कमरे होते हैं जिन्हें काम्बिनेशन रूम और स्टाफ रूम कहते हैं और प्रत्येक कॉलेज में एक गिरजाघर होता है। हमें न भूलना चाहिए कि इन कॉलेजों को स्थापना शुरू-शुरू में धामिक सस्थानों के रूप में हई थी और कालक्रम में बहत-सी रूढियों से मक्त होने के बावजद. वह परम्परा अब तक चली आती है। कॉलेजों की इमारतें इस तरह बनी हैं कि उनमें आने-जाने का एक ही फाटक होता है और उससे मिला पोर्टर का कमरा होता है। पोर्टर कॉलेज सम्बन्धी सारी सूचनाओं का भण्डार होता है और कॉलेज में किसी से मिलने के लिए उससे सम्पर्क करना आवश्यक होता है। रात में एक निश्चित समय पर कॉलेज का फाटक बन्द कर दिया जाता है और विद्यार्थियों से प्रत्याशा की जाती है कि उसके पूर्व वे अन्दर आ जायें और फिर बाहर न निकलें। इसके बाद भी कुछ शरारती और दु:साहसी खिड़कियों से अन्दर आने या बाहर निकलने का प्रयत्न करते हैं और कभी-कभी सफल भी हो जाते हैं।

युनिवर्सिटी के विभिन्न विभागों के प्रोफेसरों, रीडरों, लेक्चररों की नियुक्ति मुख्यतः कॉलेजों के फेलोशिप-प्राप्त लोगों में से की जाती है, युनिवर्सिटी का वाइस चांसलर कॉलेजों के मास्टरों और प्रोवोस्टों में से चुना जाता है। प्राक्टर, जिस पर विद्यार्थियों को अनुशासन में रखने का दायित्व होता है, युनिवर्सिटी की ओर से नियुक्त होता है, पर उसका अधिकार क्षेत्र कॉलेजों के बाहर होता है, भीतर नहीं। कॉलेज के अन्दर उसका मास्टर या प्रोवोस्ट वहाँ का सर्वेसर्वा होता है।

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