जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
मकान में केवल हेन-दम्पति रहते थे। उनकी बेटी अपनी शिक्षा समाप्त कर कनाडा चली गयी थी, जहाँ वह किसी स्कूल में पढ़ाती थी, और बेटा केम्ब्रिज से ट्राइपास करने के बाद लन्दन की किसी अच्छी फर्म में काम करने लगा था। दोनों उस समय तक अविवाहित थे। पर उनके विवाह के लिए चिन्तित अथवा उत्सुक मैंने हेन-दम्पति को कभी नहीं देखा था। मिसेज़ हेन का नाम विवियन था, जिन्हें मि० हेन 'वी-वी' कहकर पुकारते थे और शुरू-शुरू में मैं समझता था कि वे शुद्ध हिन्दुस्तानी शब्द 'बीबी' का प्रयोग करते हैं; अनुमान करता था कि यह शब्द शायद उन्होंने अपने भारत-प्रवास में किसी हिन्दुस्तानी परिवार से सीखा होगा।
मैं हेन के यहाँ जाता तो उनकी स्टडी में बैठता, जिसकी दीवारें किताबों-भरी कद्दे-आदम अलमारियों से ढकी थीं-हेन बताते कि उनमें बहुत-सी किताबें उनके पिता और पितामह के पुस्तकालय की हैं, कभी वे कोई-कोई निकालकर मुझे दिखाते भी। इंग्लैण्ड में किताबों की उम्र बड़ी होती है, उन पर जल्दी न तो मौसम का असर होता है और न उनमें कीड़े लगते हैं, शायद वहाँ की ठण्डी आबोहवा के कारण। स्टडी में ईट्स की वृद्धावस्था की एक तस्वीर लगी थी, मि० हेन ने अपने कैमरे से खींची थी और बाद को बड़ी करवाई थी। काम करने की मेज़-कुर्सी के अलावा उसमें एक गद्देदार आरामकुर्सी भी थी। हेन आते तो प्रायः आरामकुर्सी पर बैठते और मैं मेज़ वाली कुर्सी पर। मिसेज़ हेन एक ट्रे में चाय लाकर हमारे सामने रख जाती, घर में कोई नौकर नहीं था, वे खुद ही बनाती।
अपने प्रवास में मुझे कई अंग्रेज़ घरों में जाने का मौका मिला, मैंने किसी के यहाँ घरेलू काम-काज करने वाला नौकर नहीं देखा, गो वे अच्छी-खासी माली हालत वालों के थे। कभी-कभी जब हमारी बातें ज़्यादा देर खिंच जाती और सन्ध्या गहराने लगती तो मि० हेन कोई ड्रिंक लेते-मदिरा, मेरे लिए कोई साफ्ट-ड्रिंक मँगाई जाती। यदा-कदा जब हमारी बातें खत्म न होती और खाने का समय आ जाता तो मि० हेन मुझे खाने के लिए रोक लेते-इंग्लैण्ड में रात का खाना लोग जल्दी ही खाते हैं, यही कोई सात-साढ़े सात बजे, डिग में हम साढ़े छह बजे खाया करते थे। मिसेज़ हेन मेरे लिए जल्दी-जल्दी कोई शाकाहारी भोजन तैयार करती और बात हमारी खाने की मेज़ पर भी चलती जाती।
जब शोध-सम्बन्धी बातें अधिक करने को न होर्ती या जल्दी खत्म हो जाती, तब हेन ईट्स से अपनी मुलाकातों या उनके व्याख्यानों या उनकी गोष्ठियों के अनेक रोचक संस्मरण सुनाते। शायद ही कोई ऐसा प्रसंग हो जिस पर वे ईट्स की कुछ पंक्तियाँ नहीं उद्धृत कर सकते थे, उन्हें ईट्स की पचासों कविताएँ याद थीं, किन्हींकिन्हीं नाटकों के पूरे-के-पूरे कथोपकथन। कभी-कभी वे ईट्स की कविताओं को बड़े ही भावपूर्ण अथवा आवेशपूर्ण ढंग से सुनाते-उनकी कविताएँ रसात्मक (Sentimental) भी हैं और प्रवचन-परक (Rhetorical) भी। ईट्स की कविताएँ तो मैंने भी कई-कई बार पढ़ी थीं, उन दिनों अधिक ही पढ़ रहा था, पर मि० हेन के काव्य-पाठ से जो अर्थ खलता, जो संकेत मिलते, जो भावों और विचारों का उद्बोधन होता वह मेरे लिए अभूतपूर्व था।
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