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जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर

बसेरे से दूर

हरिवंशराय बच्चन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 665
आईएसबीएन :9788170282853

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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।


ईट्स अपने एक कथन को अक्सर दुहराते थे कि कविता मन्त्र है-Incantation। एक दिन, मुझे याद है, हेन से इसी पर चर्चा चल पड़ी। हेन की यह धारणा मात्र नहीं, स्वयं उनकी खोज थी कि ईट्स यह मन्त्र-प्रभाव शब्दों की अन्तर्ध्वनि से उत्पन्न करते थे-बिना उनके अर्थों से किसी प्रकार का समझौता किये। उदाहरण के लिए उन्होंने ईट्स की वे पंक्तियाँ सुनायीं, जो उन्होंने अपनी कब्र पर खुदवाने के लिए लिखी थी-

Cast a cold eye
On life, on death
Horseman, pass by!
कास्ट ए कोल्ड आई
आन लाइफ, आन डेथ,
हार्समन, पास बाई!

फिर इनमें प्रयुक्त शब्दों की अन्तर्ध्वनि को उभारने के लिए, उन पर बल देने के लिए, उन्होंने इन पंक्तियों को इस प्रकार पढ़ा-

कास ए को
आई आन
लाई आन
डेथ हास
मन पास
बाई...

जब उन्होंने पंक्तियाँ समाप्त की तो ऐसा लगा कि जैसे अब कोई उनमें 'छू:' जोड़ दे तो तत्काल कोई जादू खड़ा हो जायेगा। वास्तव में उस सन्ध्या को ईट्स की पंक्तियों में मन्त्र (Incantation) खोजने का स्वयं एक मन्त्र मुझे मिल गया था।

हेन के पास ईट्स के काव्य-पाठ के कुछ रिकार्ड भी थे-उन्हीं के स्वर में। ईट्स अपनी सभी कविताएँ स्वर-लयबद्ध कर पढ़ते थे, जिसे अपने यहाँ कहेंगे, तरन्नुम के साथ। कभी-कभी हेन उन्हें मुझे सुनाते, एक पुरानी चाल के ग्रामोफोन पर बजाकर। ईट्स की कुछ कविताएँ अच्छे गायकों के स्वर में भी रिकार्ड की गयी थीं, विशेष याद है इस गीत की 'O, who could have foretold that the heart grows old.' (किसने यह समझा था कि हृदय भी वृद्ध हो जाता है!) इस गीत की हू-ब-हू नकल मिसेज़ हेन अपनी आवाज़ में कर सकती थी और एकाध बार इसे उनसे सुनने का अवसर भी मुझे मिला था। उनके एक गीत पर बैण्ड-ध्वनि भी बाँधी गयी थी। गीत था-'Down by the sally garden my love and I did meet.' (मिली प्रेयसी मेरी मुझको उस सैलानी बाग में।)

ईट्स के सम्बन्ध में मैं बहुत-सी पुस्तकें, पत्रिकाएँ पढ़ रहा था, पर उन सबसे, मैं नि:संकोच कहना चाहूँगा, मुझे ईट्स को समझने में उतनी सहायता न मिली थी, जितनी हेन के साथ उनकी चर्चा में बिताई सन्ध्याओं से। शोध की प्रक्रिया से गुज़रे हुए सभी लोग इस बात की हामी भरेंगे कि यह काम बहुत नीरस हो सकता है। कम-से-कम अपने शोध के सम्बन्ध में मुझे जो 10-12 घण्टे रोज़ पढ़ना पड़ता था, वह तो महा नीरस था। वह तो ऐसा ही था, जैसे रेगिस्तान में सफर करना-इसी शीर्षक से मैंने केम्ब्रिज में एक कविता* लिखी थी, शायद वह उसी अनुभव से प्रेरित हुई हो।
* देखिये 'रेगिस्तान का सफर' शीर्षक कविता, मेरे काव्य-संग्रह 'बुद्ध और नाचघर' में।

सुनते हैं, रेगिस्तान के यात्रियों का यह अनुभव है कि महाबंजर, बालुए मैदानों के बीच में भी कहीं-कहीं हरियाली होती है, छायादार वृक्ष होते हैं, पानी के चश्मे होते हैं, जिन्हें oasis या शाद्वल भूमि कहते हैं। मैं अपने रेगिस्तान के सफर की शाद्वल भूमियाँ उन सन्ध्याओं को कहना चाहूँगा, जो मैंने मि० हेन के सान्निध्य में गुज़ारी थीं।

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