जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
केम्ब्रिज में मुझे भी इस प्रकार के दौरे कई बार आये, हालाँकि कारण मेरे लिए केम्ब्रिज का लगातार निवास ही नहीं था। और मैंने बीच-बीच में ब्रिस्टल, मानमथ, ब्लैकपूल, लेक डिस्ट्रिक्ट, स्टोक्स (जहाँ मर्जरी बोल्टन का घर था) और हेक्सम (जहाँ वह काम करती थी) की यात्रा की। अधिक के लिए न मेरे पास पैसे थे, न मेरे पास समय था, और न शायद मेरी आवश्यकता ही थी। 'केम्ब्रिजाइटिस' से त्राण दिलाने के लिए निश्चय मेरी कविता-कल्पना की यात्राएँ कम सहायक नहीं सिद्ध हुई होंगी-
हर रात तुम्हारे पास चला मैं आता हूँ।
जब घन अँधियारा तारों से ढल धरती पर
आ जाता है,
जब दर-परदा-दीवारों पर भी नींद-नशा
छा जाता है,
तब यन्त्र-सदृश अपने बिस्तर से हो बाहर
चुपके-चुपके
हर रात तुम्हारे पास चला मैं आता हूँ।
समतल भू-तल, बत्ती की पाँतों के पहरे
में सुप्त नगर,
अंबर को दर्पण दिखलाते सरवर, सागर,
मधुबन, बंजर,
हिम तरु-मंडित, नंगी पर्वत-माला, मरुथल,
जगल, दलदल,
सबकी दुर्गमता के ऊपर मुसकाता हूँ।
हर रात तुम्हारे पास चला मैं आता हूँ।
केम्ब्रिज से बाहर पाँव रखते ही मेरा कार्य मुझे पीछे खींचने लगता था और मैं जल्दी-से-जल्दी वापस लौटने के लिए आतुर हो उठता था, सिवा इसके कि जब मैं लन्दन जाता था, क्योंकि वहाँ जाना सिर्फ तफरीह के लिए नहीं होता था, बल्कि ब्रिटिश म्यूज़ियम के पुस्तकालय में काम करने के लिए।
कई तरह के मानसिक व्याघातों के बीच भी मैं अपना शोध-कार्य एक सन्तोषजनक ढर्रे पर चलाये जा रहा था, पर दुर्भाग्यवश उसके रास्ते में भी एक बाहरी अवरोध आकर खड़ा हो गया। मुझे हेन का निर्देशन पाँच-छह महीने ही मिला था कि उनके लिए अमरीका से एक व्याख्यान-परियात्रा (Lecture tour) का निमन्त्रण आ गया और वे युनिवर्सिटी से चार महीने की छुट्टी लेकर चले गये। उनके जाने के समाचार से मैं बड़ा दुखी हुआ। उससे निश्चय मेरे काम में बाधा पड़नी थी। जब मुझे दो वर्ष के अन्दर अपने शोध की लम्बी यात्रा तय कर लेनी थी, तब मेरे लिए उनके एक-एक दिन के पथ-प्रदर्शन का मूल्य था और हेन 120 दिनों के लिए मुझे बीच रेगिस्तान में दिगविमढ़ छोड़कर य० एस० ए० चले जा रहे थे! पर उन्हें मैं रोक भी कैसे सकता था ! युनिवर्सिटी की ओर से उनके स्थान पर मि० ग्राहम हफ मेरे निर्देशक नियुक्त हुए। हेन के बाद वही केम्ब्रिज में ईट्स के सबसे बड़े विशेषज्ञ माने जाते थे। वे क्राइस्ट कॉलेज (जिसमें किसी समय मिल्टन रहा करते थे) के फेलो और युनिवर्सिटी में अंग्रेजी साहित्य के लेक्चरर थे। हेन जाते समय मुझे आश्वस्त कर गये थे कि उन्होंने हफ को मेरे कार्य की दिशा और प्रगति से अवगत कर दिया है और वे मेरे काम को आगे बढ़ाने में समुचित सहायक होंगे।
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