जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
हफ हेन से उम्र में कुछ कम ही होंगे, कद-काठी में उनसे उन्नीस नहीं, बल्कि पन्द्रह-सोलह। पिछले महायुद्ध में वे पूर्वी मोर्चे पर बन्दी बना लिये गये थे और उन्हें कई वर्षों तक जापानियों को कैद में रहना पड़ा था, जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ा था, उनके दिमाग-स्वभाव पर भी। उनके सिर पर असमय गंज आ गयी थी और उनके चेहरे पर झुर्रियाँ। वैसे वे ऐंग्लो-सैक्सन रेस के थे जो अपनी प्रकृति से ही अपने मंप खिंचे और अपने अन्दर ही सिमटे रहने में एक प्रकार के गर्व का अनुभव करते हैं। उनका-मेरा सम्बन्ध निर्देशक-शोधार्थी की औपचारिक सीमा से कभी ऊपर न उठ सका।
उनके सम्पर्क में आने से पहले ही मैं अपने शोध-विषय की सीमाएँ बना चुका था। भारतीय प्रभाव ईट्स पर पड़ा ही था, इसके अतिरिक्त उन पर मुख्य प्रभाव थे-कब्बाला के, स्वीडेनवार्ग के और जैकब बेहमेन के। मडाम ब्लावाट्स्की की थियोसोफी के प्रभाव में वे अपनी युवावस्था में ही आ गये थे, पर अपनी बढ़ती उम्र के साथ उसके सम्बन्धों से वे बराबर इनकार करते रहे, हालाँकि मेरा ऐसा अनुमान था कि अपने दर्शन के मूल तत्त्व उन्होंने मडाम ब्लावाट्स्की से ही लिये थे। इसे सिद्ध करने के लिए मुझे सबूत खोजने थे। इस दर्जे तक मैं अपना ध्यान इसी पर केन्द्रित कर रहा था कि इन तत्त्वों से ईट्स के मस्तिष्क का निर्माण किस रूप में हुआ था या उनकी विचार-प्रक्रिया किन तन्तुओं को पकड़कर चलती थी। मैं अपने पाठकों को याद दिला दूँ कि मैंने W. B. Yeats : His Mind and Art (डब्ल्यू० बी० ईट्स-उनका मनस् और उनकी कला) पर शोध आरम्भ किया था। और इस आरम्भिक चिन्तन के कारण, अब भी मेरा मुख्य आकर्षण ईट्स के 'माइंड' की ओर था।
हालाँकि हफ को मालूम था कि वे केवल चार महीने के लिए मेरे निर्देशक नियुक्त हुए हैं, फिर भी उन्होंने मेरे कार्य में पूरी तरह रुचि ली। उन्होंने सबसे पहले मेरे शोध-प्रबन्ध की रूप-रेखा माँगी और इलाहाबाद में किये गये मेरे काम को भी देखने की इच्छा व्यक्त की।
उनकी राय थी कि मैंने अपने शोध की समस्या को साहित्यिक रखने के बजाय मनोवैज्ञानिक बना दिया है। उन्होंने मुझसे कहा कि हम ईट्स की कद्र इसलिए नहीं करते कि उन्हें गुह्य या रहस्य में रुचि थी, और न इसलिए कि उन्हें किसी प्रकार की पराभौतिक शक्ति में विश्वास था या वह उन्हें प्राप्त थी-ऐसा दावा उन्होंने कभी-कभी किया भी था बल्कि इसलिए कि उसके द्वारा या उसके प्रभाव में उन्होंने उच्च कोटि की कविता कैसे लिखी, एक नयी तरह की कविता, एक नयी अभिचेतना (Sensibility) जगाने वाली कविता। मुझे पता नहीं कि हेन मुझे किस दिशा में ले जाते, पर हफ के अभिमत ने निश्चय ही मेरे शोध को एक नया मोड़ दिया और मैं ईट्स की चित्र-विचित्र अभिरुचि और उनके सृजन में सम्बन्ध देखने की ओर अधिक उन्मुख हुआ।
हफ ने मेरे शोध-विषय के शीर्षक पर भी आपत्ति की। और इसके लिए उनके पास कुछ अकाट्य तर्क थे। अतार्किकता के अन्तर्गत मैं भारतीय प्रभावों को भी रख रहा था, जिसमें उपनिषद् भी अनिवार्यतः सम्मिलित थे। पुरोहित स्वामी के सहयोग से ईट्स ने दस उपनिषदों का अनुवाद किया ही था। हफ का कहना था कि हम उपनिषदों को अतार्किकता के अन्तर्गत कैसे रख सकते हैं-वे तो तर्क की सबसे ऊँची उड़ानों से उच्चरित हुए हैं। मैं यह बता दूं कि अपने बन्दी जीवन में हफ को बौद्ध और हिन्दू दर्शन पर पढ़ने को कुछ किताबें मिल गयी थीं। उन्हीं के सुझाव पर, मैंने अपने शोध-शीर्षक को बदलकर W. B. Yeats and Occultism (डब्ल्यू० बी० ईट्स के साहित्य में निगूढ़ तत्त्व) किया।
हफ के ही निर्देशन में मैंने W. B. Yeats and India (डब्ल्यू० बी० ईट्स और भारत) पर अपना पहला निबन्ध लिखा, जिसे बाद को मैंने दो में विभाजित किया।
(i) Yeats and Mohini Chatterji and Tagore.
(ईट्स और मोहिनी चटर्जी तथा टैगोर)
(ii) Yeats and Purohit Swami and the Upanishads.
(ईट्स और पुरोहित स्वामी तथा उपनिषद्)
आगे चलकर यही मेरे शोध-प्रबन्ध के दो अध्याय बने।
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