जीवनी/आत्मकथा >> बसेरे से दूर बसेरे से दूरहरिवंशराय बच्चन
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आत्म-चित्रण का तीसरा खंड, ‘बसेरे से दूर’। बच्चन की यह कृति आत्मकथा साहित्य की चरम परिणति है और इसकी गणना कालजयी रचनाओं में की जाती है।
प्रबन्ध लिखने की मेरी प्रक्रिया यह थी : पहले मैं पेंसिल से एक रफ़ ड्राफ्ट तैयार करता, फिर उसको संशोधन कर कलम से साफ कापी बनाता। चूँकि मेरी हस्तलिपि पढ़ने में हफ को कठिनता होती इसलिए मैं उसे टाइप करा लेता। टाइपिंग का खर्च बहुत आता था : मैंने एक पोर्टेबल टाइपराइटर खरीद लिया कि सीखकर खुद टाइप किया करूँगा। सीख तो थोड़ा-बहुत मैंने लिया पर तेजी न पकड़ सका। उस पर बहुत-सा समय बर्बाद होते देख, मैंने बाहर की टाइपिंग की ही शरण ली। हफ की टिप्पणी जब लेख पर मिल जाती तो उनके सुझावों के प्रकाश में मैं उसे एक नये रूप में ढालता। उसकी तीन टाइप-कापियाँ बनवाता। एक मार्जरी बोल्टन को भेज देता, उसकी टिप्पणी के लिए उसने शुरू से मेरे काम में रुचि ली थी। एक अपने सहयोगी शोधार्थी को-केम्ब्रिज में ऐसी प्रथा है कि शोधार्थी एक-दूसरे के प्रबन्ध को पढ़कर उसकी त्रुटियों की ओर संकेत करते हैं। एक अपने पास रखता। जब मार्जरी और सहयोगी की टिप्पणियाँ और सुझाव आ जाते तो अपनी प्रति पर 'मास्टर कापी' तैयार करता। वही अन्तिम रूप से शोध प्रबन्ध में सम्मिलित की जाती।
शोध-विषय से सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन करना, उस पर नोट लेना, निर्देशक से चर्चा-विवाद करना, चिन्तन करना, यह सब अपनी जगह पर ठीक था, पर मुख्य बात तो यह थी कि उसको शोध-प्रबन्ध के अंग के रूप में कैसे प्रस्तुत किया जाये? मुझे यह देखकर सन्तोष था कि हफ एक व्यावहारिक दृष्टि से मुझसे काम करा रहे थे। उन्होंने विश्लेषणात्मक रीति से काम करने का सुझाव देकर मेरे लिए सुविधाजनक कर दिया था कि मैं एक बड़ी समस्या को अंशों में विभाजित कर उसका हल निकाल सकूँ। हेन का दृष्टिकोण संश्लेषणात्मक था, ईट्स का दिमाग पूरे का पूरा अपने उलझे-पुलझे रूप में जब मेरे सामने आता था तो मैं समझ नहीं पाता था कि किस ओर से उसे निरुवाना शुरू करूँ। यह बात भी मुझे हफ के निर्देशन से स्पष्ट हुई कि ईट्स के दिमाग की सुलझाहट कविता के सिरे से शुरू की जा सकती थी। दूसरे शब्दों में, ईट्स के चित्र-विचित्र दार्शनिक विचारों का उलझा-पलझापन सजन के, कला के, कविता के स्तर पर उतरकर सलझाहट में बदल जाता था। इसी में उनकी कविता का आकर्षण भी था, उनकी कविता की मौलिकता भी थी। हफ का निर्देशन एक तरह से मेरे लिए सौभाग्यपूर्ण ही रहा, बाद को मेरे शोध-प्रबन्ध के दो परीक्षकों में एक वे रखे गये।
जब हेन अपनी छुट्टी से वापस लौटे, तब फिर उन्होंने मुझे अपने निर्देशन में लिया। उन्होंने हफ़ द्वारा कराये गये काम के प्रति अपनी सहमति प्रकट की और उसी प्रकार कब्बाला, स्वीडेनबार्ग और जैकब बेहमेन पर अध्याय तैयार करने का आदेश मुझे दिया। ईट्स के दर्शन की संश्लिष्ट व्याख्या पर फिर भी उनका आग्रह बना रहा, यानी उनकी दर्शन पुस्तक A Vision पर। मुझे स्मरण आया कि प्रोफेसर सी० एम० बावरा ने भी मुझसे यह प्रत्याशा की थी कि मैं उक्त ग्रन्थ पर कुछ नया प्रकाश डाल सकूँगा। ईट्स के समालोचकों के लिए यह अद्भुत पुस्तक एक पहेली बनकर खड़ी थी। इस पुस्तक को, और इस पर जितना मैंने पढ़ा-सोचा था, और इसके रचयिता के दिमाग को जैसा मैंने समझा था, उससे मेरी यह धारणा बन गयी थी कि इसका उत्स मैडम ब्लावाट्स्की की थियोसोफी में है, पर इसे सिद्ध करने के लिए केवल थियोसोफिकल साहित्य का अवलोकन ही पर्याप्त न था, इसके लिए मुझे लन्दन और डबलिन की थियोसोफिकल सोसायटी से सम्पर्क करना था, उनके प्रारम्भिक रिकार्ड को देखने के लिए, और अगर सम्भव हो तो श्रीमती ईट्स से भी मिलना था, जो उस समय तक जीवित थीं और डबलिन में रहती थीं।
हेन मुझसे कहते कि 'इस काम के लिए तुम्हें एकाध महीने आयरलैण्ड में जाकर रहना भी पड़ सकता है-श्रीमती ईट्स के पास ईट्स के पुराने-से-पुराने कागद-पत्र सब सुरक्षित हैं, उनमें तुम्हारे काम की बहुत महत्त्वपूर्ण सामग्री मिल सकती है। A Vision के सम्बन्ध में एक स्थान पर ईट्स ने स्वयं कहा था कि वह श्रीमती ईट्स की 'आटोमेटिक स्क्रिप्ट' के आधार पर लिखी गयी थी। तुम्हें श्रीमती ईट्स आटोमेटिक स्क्रिप्ट दिखा सकती हैं, अगर वह वास्तव में हो। फिर अभी आयरलैण्ड में डबलिन की थियोसोफिकल सोसायटी के कुछ पुराने सदस्य जीवित मिल सकते हैं, जो ईट्स के यौवन के साथी थे और उनसे इस सम्बन्ध में बड़ी रहस्योद्घाटनकारी सूचनाएँ इकट्ठी की जा सकती हैं।'
शोध की पूर्णता के लिए आयरलैण्ड की यात्रा ज़रूरी।
यात्रा के लिए अतिरिक्त खर्च ज़रूरी।
मुझे चिन्ता बनी रहती, खर्च कहाँ से आयेगा, जब केम्ब्रिज में ही पूरा समय रहने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे।
मैंने इतने दिनों में यह हिसाब लगा लिया था कि मेरे रहने-खाने और कुछ ऊपर खर्च पर लगभग एक पौण्ड प्रतिदिन आता है। मैं हर रात कंजूस के समान अपने पौण्ड गिनता। कॉलेज की फीस के लिए आवश्यक राशि अलग करके देखता तो बस इतना ही बचता कि चार-पाँच महीने मुश्किल से चल सकता और रहना मुझे था बारह महीने और।
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