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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...


मैं देख रहा था, ज्यों-ज्यों समय निकट आ रहा था, त्यों-त्यों तुम्हारी आकृति में उदासी का भाव गहरा होता चला जा रहा था। तुम खोई-खोई-सी रहतीं, पता नहीं किस दुनिया में भटकती हुईं !

विमान-आरक्षण तथा सामान खरीदने का सिलसिला शुरू हो चुका था।

“हंगरी की सेतनेकी एग्नेस ने पार्टी में बुलाया है, उन्हें जो ट्राम्सो गए थे। तुम नहीं चल रहे हो?” तुमने कहा तो मैंने तुम्हारी ओर देखते हुए पलटकर पूछा, “तुम नहीं जा रहीं क्या?"

कहीं जाने को मन नहीं हो रहा है।” गहरा मौन तोड़ते हुए तुमने कहा, "अच्छा चलो, समुद्र तट की ओर चलें ! तुमने कितने दिनों से कॉफी नहीं पिलाई ! बहुत कंजूस हो गए हो।”

मैं बोला कुछ भी नहीं, मात्र मुस्कराता रहा। जिससे तुम भीतर ही भीतर कहीं चिढ़-सी रही थीं।

"आकेर बेग्गे के सागर तट पर बैठना मुझे बहुत अच्छा लगता है। रंग-बिरंगे जहाज़ों का आना-जाना। सीगल पंछियों का लहरों के ऊपर, लहरों को छू-छू कर उड़ना ! 'कांह-कांह' करते हुए आकाश में वृत्ताकार घूमना-मंडराना ! जाने से पहले एक बार उनसे भी मिल लें...!” तुम बहकी-बहकी-सी बोल रही थीं।

"सीगल तो तुम्हारे यहां भी होंगे...” मैंने संशय प्रकट करते हुए कहा।

'महिलाएं तो लाखों-करोड़ों होंगी, पर क्या दुनिया में कोई दूसरी बहिरा शफ़ीक़ होगीं? उसी तरह हर सीगल मात्र सीगल नहीं होता। हर किसी का कोई विकल्प नहीं हुआ करता....”।

हाथ जोड़ता हुआ मैं खड़ा हो जाता हूं। "चलिए, हुजूर, ऑकेर ब्रेग्गे ही चलिए। मिल लीजिए अपने सीगल पक्षियों से। फिर इनसे दोबारा भेंट नहीं होगी।

अब तुम चहकती हुई चल रही थीं, उड़ती हुई-सी। तुम्हारे चेहरे का अवसाद अब उतना गहरा नहीं था।

रेस्तरां में कॉफ़ी पीने के बाद तुमने कहा, “बाहर बैठे खुले में, सागर भी दिखेगा और सीगल भी।”

‘टाउन-हॉल' के प्रांगण में वर्गाकार पार्क में चार-पांच विशाल प्रतिमाएं थीं-मां और नन्हे शिशुओं की एकदम नग्न ! पर कहीं से भी अश्लीलता नहीं थी। आकृति से झलकता मां का ममत्व उन्हें एक नया आयाम दे रहा था।

“तुमने यहां कुछ लिखा नहीं?" तुमने मेरी ओर देखते हुए कहा।

"देख तो रही हो, सारा दिन भाग-दौड़। रात में कोई न कोई सांस्कृतिक या साहित्यिक कार्यक्रम या फिर देर रात तक चलने वाली पार्टियां...।”

"अच्छा बतलाओ, यहां के अनुभवों पर क्या कोई कहानी लिखोगे?"

"शायद..."

उसका अंत क्या रखोगे?" तुमने बच्चों जैसी जिज्ञासा से पूछा।

देर तक मैं चुप रहा। तुम गौर से देखती हुई, मेरे चेहरे पर पल-पल बदलते भावों को तौलती रहीं।

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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