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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

"यह तो बहुत ही अच्छी बात है," वह बोला। "मैं चार-पाँच रोज़ में वापस पंजाब जा रहा हूँ। मगर जितने दिन यहाँ हूँ, उतने दिन मेरे लिए कोई भी सेवा हो, तो बताने से संकोच न करें। दास हर वक़्त हर सेवा के लिए हाज़िर है।"

"देखिए, कोई ऐसी ज़रूरत हुई तो ज़रूर बताऊँगा," मैंने कहा।

"मैं यहाँ एक साल से हूँ। हैंडलूम का व्यापार करने आया था..." कहता हुआ वह कुर्सी पर बैठ गया और मुझे शुरू से अपना इतिहास सुनाने लगा। मैंने अपने काग़ज़ हटाकर एक तरफ़ रख दिये और हथेलियों पर चेहरा टिकाये सामने बैठकर उसकी बात सुनने लगा। वह घंटा-भर गला थकाकर मुझे बतला गया कि उसका नाम नन्दलाल कपूर है, उसका घर लुधियाना में है, उसके दो बच्चे हैं और दोनों ही बहुत खूबसूरत हैं क्योंकि दोनों उसी पर गये हैं, उसकी बीवी उसकी पसन्द की नहीं है, हैंडलूम का बाज़ार बहुत मन्दा है, कनानोर में साँप बहुत निकलते हैं, मलयालम में अंडे को मुट्टा कहते हैं और शाम को वहाँ फ़िल्म 'अनहोनी' दिखायी जा रही है जिसे मिस नहीं करना चाहिए।

"जब कभी अकेलापन महसूस हो, मेरे कमरे में चले आइएगा," उसने उठकर छाती के पास से कुर्ते को ख़ुजलाते हुए कहा। "उसे भी आप अपना ही कमरा समझें। किसी तरह के, तकल्लुफ़ में नहीं रहिएगा।"

वह चला गया तो मैंने सोचा कि अच्छा है जो पहली ही भेंट में वह अपने बारे में सब कुछ बतला गया-अब न तो मेरे पास कुछ पूछने को बचा है, न ही उसके पास बतलाने को। आमने-सामने होने पर ख़ैर-ख़ैरीयत पूछ लिया करेंगे, बस।

मेरे सामने सवाल था कि खाने की क्या व्यवस्था की जाए। बाज़ार दूर था और रोज़ दोपहर को धूप में सवा मील जाना मुश्किल था। मैं वहाँ पास में ही कहीं प्रबन्ध कर लेना चाहता था। दिन में मैंने होटल के चौकीदार को इस सम्बन्ध में बात करने के लिए बुला लिया। वह पहले वहाँ बटलर था और अब भी अपना परिचय बटलर के रूप में ही देता था। वह "वेल मास्टर, वट मास्टर" कहता कमरे के बाहर आ खड़ा हुआ। मैं भी बरामदे में निकलकर उससे आसपास के होटलों और ढाबों के विषय में पूछताछ करने लगा। बटलर ने अपनी बटलरी अँग्रेज़ी में बतलाना शुरू किया कि कहाँ किस होटल में 'वैरी गुड फ़ूड' मिलता है और कहाँ किस में 'डैम चीप फ़ूड'। तभी एक सोलह-सत्रह साल का दुबला-सा नवयुवक मेरे पास आकर बोला, "सर, साहब आपको उधर बुला रहे हैं।"

"कौन साहब बुला रहे हैं?" मैंने पूछा।

"कपूर साहब।"

"वे यहीं पर हैं?" मुझे आश्चर्य हुआ। मेरा ख़याल था कि वह तब तक अपने काम पर चला गया होगा।

"कमरे में हैं," लड़के ने कुछ लजाते हुए कहा।

"काम पर नहीं गये?"

"उनका दफ्तर यहाँ कमरे में ही है।"

"दिन-भर वे यहीं रहते हैं?"

इससे पहले कि लड़का जवाब देता, कपूर लुँगी-बनियान पहने अपने कमरे से बाहर निकल आया और वहीं खड़ा-खड़ा बोला, "आओ न बादशाहो! दास हर वक़्त सेवा के लिए यहीं हाज़िर रहता है।"

न जाने क्यों उसके फैले हुए निचले होठ को देखकर मुझे उलझन-सी हुई। लगा जैसे उस होठ की वजह से ही मेरा मन उसकी घनिष्ठता से बचना चाहता हो।

"मैं खाना खा आऊँ, अभी थोड़ी देर में आता हूँ," मैंने उससे कहा।

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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