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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

"दो हफ्ता हुआ चाय-फ़ैक्टरी का मज़दूर लोग फ़ैक्टरी के मैनेजर को पकड़ लिया था," उसने बताया।

"क्यों?"

"उन लोग का माँगें मैनेजर ने नहीं माना था। बहुत गड़बड़ हुआ। पुलिस भी आया।"

"फिर?"

"अभी तो मामला चलता है। मज़दूर लोग का माँग मैनेजर को मानना पड़ेगा। नहीं मानेगा, तो मज़दूर लोग काम नहीं करेगा।"

हम लोग एक मोड़ पर आ गये थे। वहाँ रुककर गोविन्दन् ने थोड़ी दूर आगे इशारा करते हुए कहा, "कॉफ़ी का एक बगीचा उधर है। मुझे जाकर काम करना है, नहीं तो मैं तुम्हारे साथ चलता।...पर कोई बात नहीं। मैं तुम्हें वहाँ तक छोड़ आता है।"

"तुम रहने दो," मैंने कहा। "तुम्हारे काम का हर्ज़ होगा। वह सामने ही तो है, मैं चला जाऊँगा।"

"हर्ज़ क्या होगा?" वह चलता हुआ बोला। "मैं अपने हिस्से का काम जा के पूरा करेगा।" और वह मुझे फ़ैक्टरी के बारे में, वहाँ की उपज के बारे में और मज़दूरों की ज़िन्दगी के बारे में कई और बातें बतलाने लगा। एक जगह उसने मुझे एक खट्टे फल का पेड़ दिखाया और बताया कि वे लोग उस फल के साथ मछली

पकाकर खाते हैं। फिर एक पेड़ के पास रुककर उसने कहा, "यह हिन्दुस्तान का सबसे होनहार पेड़ है-इसे पहचानता है?"

"कौन-सा पेड़ है यह?" मैंने पूछा।

"काजू का-जो हर साल कितना-कितना डालर कमाता है।"

"पेड़ मैंने रास्ते में भी देखा है," मैंने कहा। "पर इसमें काजू कहाँ लगे हैं?"

"अभी मौसम का शुरू है, अभी इसमें फल नहीं निकला। मौसम में इसमें पीला-पीला लाल-लाल फल लगेगा। तुम लोग की तरफ़ फल नहीं जाता, सिर्फ़ दाना जाता है। हर फल के साथ एक दाना उगता है।...ठहरो, वह एक फल लगा है। मैं अभी तुमको उतारकर देता है।"

वह पेड़ पर चढ़ गया। फल पेड़ की सबसे ऊँची टहनी पर था। पक्की डाल पर खड़े होकर उसका हाथ फल तक नहीं पहुँचा। उसने एक पैर कच्ची डाल पर रख दिया, फिर भी हाथ नहीं पहुँचा।

"रहने दो," मैंने कहा। "डाल टूट जाएगी।"

"तुम कितना दूर से आया है," वह बोला। "मैं एक पैर और नहीं चढ़ सकता?" उसने दूसरा पैर भी कच्ची डाल पर रख दिया। डाल बुरी तरह लचक गयी, मगर उसने फल तोड़कर नीचे फेंक दिया। मैंने फल उठा लिया। ज़रा मरोड़ने से नीचे लगा दाना अलग हो गया। उसे जेब में रखकर मैं फल खाने लगा।

गोविन्दन् नीचे उतर आया, तो मैंने उससे पूछा, "मौसम में यह फल यहाँ खूब खाया जाता है?"

"खाया भी जाता है और फेंका भी जाता है," वह बोला। "पहले इसका शराब बनता था, पर अब शराब निकालने का मना है। निकालने वाला अब भी निकालता है, पर बहुत-सा फल ऐसे ही जाता है। आज़ाद मुल्क में ऐसा-ऐसा चीज़ का कौन परवाह करता है?"

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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