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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

"मियाँ अब्दुल जब्बार, तुमने बहुत अच्छी चीज़ें याद कर रखी हैं," मैंने कहा। "और इससे भी बड़ी बात यह है कि इस उम्र में भी तुम इतने रंगीनमिज़ाज हो...।"

"मर्दज़ाद हूँ साहब," वह बोला। "तबीयत की रंगीनी तो ख़ुदा ने मर्दज़ाद को ही बख़्शी है। जिसे यह चीज़ हासिल नहीं, वह समझ लीजिए कि मर्दज़ाद ही नहीं।"

"इसमें क्या शक है!" अविनाश हँसकर बोला। अपनी उम्र में तो काफ़ी गुलछर्रे उड़ाए होंगे तुमने।"

अब्दुल जब्बार मुस्कराया। सफ़ेद मूँछों के नीचे उसके होठों पर आयी मुस्कराहट में रसिकता भर आयी। "उम्र तो हुज़ूर बन्दे की अज़्ल के रोज़ तक रहती है" वह बोला। "मगर हाँ, जवानी की बहार जवानी के साथ थी। बहुत ऐश की, बेवक़ूफ़ियाँ भी बहुत थीं। मगर कोइ अफ़सोस नहीं है। वो दिन फिर से मिलें, तो वही बेवक़ूफ़ियाँ नये सिरे से की जाएँगी, और फिर भी कोई अफ़सोस नहीं होगा।"

"मतलब वैसे अब उस तरह की बेवक़ूफ़ियों की नौबत नहीं आती?" अविनाश ने पूछ लिया।

"अब हुज़ूर? हिम्मत में किसी मुर्दज़ाद से कम अब भी नहीं हूँ। कहिए जिस ख़बीस का खून कर दूँ। मगर जहाँ तक नफ़्स का सवाल है, उसकी मैं तौबा करता हूँ।...अच्छा, कुछ देर ख़ामोश रहकर ज़रा एक चीज़ सुनिए...।"

मैंने सकझा था कि वह कोई सूफ़ियाना क़लाम सुनाने जा रहा है। मगर वह बिना एक शब्द कहे चुपचाप नाव चलाता रहा। गहरी ख़ामोशी थी। चप्पुओं के पानी में पड़ने के सिवा कोई आवाज़ नहीं सुनाई दे रही थी। हम लोग उत्सुकता के साथ उसकी तरफ़ देखते रहे। वह मुस्करा रहा था। मगर अब उसकी मुस्कराहट में पहले की-सी रसिकता नहीं, एक संज़ीदगी थी। "सुन रहे हैं?" उसने कहा।

मेरी समझ में नहीं आया कि वह क्या सुनने को कह रहा है। "क्या चीज़?" मैंने पूछ लिया।

"यह आवाज़," वह बोला। रात की ख़ामोशी में चप्पुओं के पानी में पड़ने की आवाज़। शायद आपके लिए इसमें कोई ख़ास मतलब नहीं है। पहले मुझे भी इसमें कुछ खास नहीं लगता था। मगर तीन साल हुए एक रात में अकेला इस झील को पार कर रहा था। ऐसी ही रात थी, ऐसा ही अँधेरा था, और ऐसा ही ख़ामोश समाँ था। जब मैं झील के बीचोंबीच पहुँचा, तो यह आवाज़ उस वक़्त मुझे कुछ और-सी लगने लगी। हर बार जब यह आवाज़ होती, तो मेरे जिस्म में एक सनसनी-सी दौड़ जाती। मुझे लगता जैसे कोई चीज़ हलके-हलके मेरी रूह को थपथपा रही हो। फिर मुझे महसूस होने लगा कि वह चप्पुओं के पानी में पड़ने की आवाज़ नहीं, एक हल्की-हल्की खुदाई आहट है। मुझे उस वक़्त लगा कि मैं ख़ुदा के बहुत नज़दीक हूँ। मैंने दिल-ही-दिल सज्दा किया और आइन्दा के लिए गुनाहों से तौबा की क़सम खायी। उसके बाद से जब कभी मैं रात के वक़्त नाव लेकर झील में आता हूँ, तो मुझे यह आवाज़ फिर वैसी ही लगने लगती है। तब मैं अपनी उस तौबा को याद करता हूँ और अल्लाह का शुक्र मनाता हूँ कि उसने मुझे इस तरह तौबा का मौक़ा बख़्शा। फिर मैं नये सिरे से तौबा का अहद करता हूँ और अल्लाह से उसकी मेहर के लिए फ़रियाद करता हूँ।"

वह ख़ामोश हो गया। सिर्फ़ पानी से चप्पुओं के टकराने का शब्द सुनाई देता रहा। मैं बायीं करवट होकर हाथ की उँगली से पानी में उठती लहरों को छूने लगा। एक तीखी ठंडी चुभन नसों को बींधती सारे शरीर में फैल गयी। तभी मुझे उसकी कही ख़ून करने की बात याद हो आयी। एक तरफ़ वह सब गुनाहों से तौबा का अहद किए था और दूसरी तरफ किसी भी इन्सान का ख़ून कर देने को तैयार था।

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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