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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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बहुआयामी रचनाकार मोहन राकेश का यात्रावृत्तान्त

सूर्य का गोला पानी की सतह से छू गया। पानी पर दूर तक सोना-ही-सोना ढुल आया। पर वह रंग इतनी जल्दी-जल्दी बदल रहा था कि किसी भी एक क्षण के लिए उसे एक नाम दे सकना असम्भव था। सूर्य का गोला जैसे एक बेबसी में पानी के लावे में डूबता जा रहा था। धीरे-धीरे वह पूरा डूब गया और कुछ क्षण पहले जहाँ सोना बह रहा था, वहाँ अब लहू बहता नजर आने लगा। कुछ और क्षण बीतने पर वह लहू भी धीरे-धीरे बैज़नी और बैज़नी से काला पड़ गया। मैंने फिर एक बार मुड़कर दायीं तरफ़ पीछे देख लिया। नारियलों की टहनियाँ उसी तरह हवा में ऊपर उठी थीं, हवा उसी तरह गूँज रही थी, पर पूरे दृश्यपट पर स्याही फैल गयी थी। एक-दूसरे से दूर खड़े झुरमुट, स्याह पड़कर, जैसे लगातार सिर धुन रहे थे और हाथ-पैर पटक रहे थे। मैं अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ और अपनी मुट्ठियाँ भींचता-खोलता कभी उस तरफ़ और कभी समुद्र की तरफ़ देखता रहा।

अचानक खयाल आया कि मुझे वहाँ से लौटकर भी जाना है। इस खयाल से ही शरीर में कँपकँपी भर गयी। दूर सैंड हिल की तरफ देखा। वहाँ स्याही में डूबे कुछ धुँधले रंग हिलते नजर आ रहे थे। मैंने रंगों को पहचानने की कोशिश की, पर उतनी दूर से आकृतियों को अलग-अलग कर सकना सम्भव नहीं था। मेरे और उन रंगों के बीच स्याह पड़ती रेत के कितने ही टीले थे। मन में डर समाने लगा कि क्या अँधेरा होने से पहले मैं उन सब टीलों को पार करके जा सकूँगा? कुछ क़दम उस तरफ़ बढ़ा भी। पर लगा कि नहीं। उस रास्ते से जाऊँगा, तो शायद रेत में ही भटकता रह जाऊँगा। इसलिए सोचा बेहतर है नीचे समुद्रतट पर उतर जाऊँ-तट का रास्ता निश्चित रूप से केप होटल के सामने तक ले जाएगा। निर्णय तुरन्त करना था, इसलिए बिना और सोचे मैं रेत पर बैठकर नीचे तट की तरफ फिसल गया। पर तट पर पहुँचकर फिर कुछ क्षण बढ़ते अँधेरे की बात भूला रहा। कारण था तट की रेत। यूँ पहले भी समुद्र-तट पर कई-कई रंगों की रेत देखी थी-सुरमई, खाकी, पीली और लाल। मगर जैसे रंग उस रेत में थे, वैसे मैंने पहले कभी कहीं की रेत में नहीं देखे थे। कितने ही अनाम रंग थे वे, एक-एक इंच पर एक-दूसरे से अलग और एक-एक रंग कई-कई रंगों की झलक लिये हुए। काली घटा और घनी लाल आँधी को मिलाकर रेत के आकार में ढाल देने से रंगों के जितनी तरह के अलग-अलग सम्मिश्रण पाये जा सकते थे, वे सब वहाँ थे-और उनके अतिरिक्त भी बहुत-से रंग

थे। मैंने कई अलग-अलग रंगों की रेत को हाथ में लेकर देखा और मसलकर नीचे गिर जाने दिया। जिन रंगों को हाथों में नहीं छू सका, उन्हें पैरों से मसल दिया। मन था कि किसी तरह हर रंग की थोड़ी-थोड़ी रेत अपने पास रख लूँ। पर उसका कोई उपाय नहीं था। यह सोचकर कि फिर किसी दिन आकर उस रेत को बटोरूँगा, मैं उदास मन से वहाँ से आगे चल दिया।

समुद्र में पानी बढ़ रहा था। तट की चौड़ाई धीरे-धीरे कम होती जा रही थी। एक लहर मेरे पैरों को भिगो गयी, तो सहसा मुझे ख़तरे का एहसास हुआ। मैं जल्दी-जल्दी चलने लगा। तट का सिर्फ़ तीन-तीन चार-चार फ़ुट हिस्सा पानी से बाहर था। लग रहा था कि जल्दी ही पानी उसे भी अपने अन्दर समा लेगा। एक बार सोचा कि खड़ी रेत से होकर फिर ऊपर चला जाऊँ। पर वह स्याह पड़ती रेत इस तरह दीवार की तरह उठी थी कि उस रास्ते ऊपर जाने की कोशिश करना ही बेकार था। मेरे मन में ख़तरा बढ़ गया। मैं दौड़ने लगा। दो-एक और लहरें पैरों के नीचे तक आकर लौट गयीं। मैंने जूता उतारकर हाथ में ले लिया। एक ऊँची लहर से बचकर इस तरह दौड़ा जैसे सचमुच वह मुझे अपनी लपेट में लेने आ रही हो। सामने एक ऊँची चट्टान थी। वक़्त पर अपने को सँभालने की कोशिश की, फिर भी उससे टकरा गया। बाँहों पर हल्की खरोंच आ गयी, पर ज्यादा चोट नहीं लगी। चट्टान पानी के अन्दर तक चली गयी थी-उसे बचाकर आगे जाने के लिए पानी में उतरना आवश्यक था। पर उस समय पानी की तरफ़ पाँव बढ़ाने का मेरा साहस नहीं हुआ। मैं चट्टान की नोकों पर पैर रखता किसी तरह उसके ऊपर पहुँच गया। सोचा नीचे खड़े रहने की उपेक्षा वह अधिक सुरक्षित होगा। पर ऊपर पहुँचकर लगा जैसे मेरे साथ एक मज़ाक किया गया हो। चट्टान के उस तरफ़ तट का खुला फैलाव था-लगभग सौ फ़ुट का। कितने ही लोग वहाँ टहल रहे थे। ऊपर सड़क पर जाने के लिए वहाँ से रास्ता भी बना था। मन से डर निकल जाने से मुझे अपना-आप काफ़ी हल्का लगा और मैं चट्टान से नीचे कूद गया।

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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