To the Last Rock Travelogue"

" />
लोगों की राय

यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

320 पाठक हैं

"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"

रात। केप होटल का लॉन। अँधेरे में हिन्द महासागर को काटती कुछ स्याह लकीरें-एक पौधे की टहनियाँ। नीचे सड़क पर टार्च जलाता-बुझाता एक आदमी। दक्षिण-पूर्व के क्षितिज में एक जहाज़ की मद्धिम-सी रोशनी।

मन बहुत बेचैन था-बिना पूरी तरह भीगे सूखती मिट्टी की तरह। जगह मुझे इतनी अच्छी लगी थी कि मन था अभी कई दिन, कई सप्ताह, वहाँ रहूँ। पर अपने भुलक्कड़पन को वजह से एक ऐसी हिमाक़त कर आया था कि लग रहा था वहाँ से तुरन्त लौट जाना पड़ेगा। अपना सूटकेस खोलने पर पता चला था कि कनानोर में सत्रह दिन रहकर जो अस्सी-नब्बे पन्ने लिखे थे, वे वहीं मेज़ की दराज़ में छोड़ आया हूँ। अब मुझे दो में से एक चुनना था। एक तरफ़ था कन्याकुमारी का सूर्यास्त, समुद्र-तट और वहाँ की रेत। दूसरी तरफ़ अपने हाथ के लिखे काग़ज़ जो शायद अब भी सेवाय होटल की एक दराज़ में बन्द थे। मैं देर तक बैठा सामने देखता रहा-जैसे कि पौधे की टहनियों या उनके हाशिये में बन्द महासागर के पानी से मुझे अपनी समस्या का हल मिल सकता है।

कुछ देर में एक गीत का स्वर सुनाई देने लगा जो धीरे-धीरे पास आता गया। एक कान्वेंट की बस होटल के कम्पाउंड में आकर रुक गयी। बस में बैठी लड़कियाँ अँग्रेज़ी में एक गीत गा रही थीं जिसमें समुद्र के सितारे को सम्बोधित किया गया था। उस गीत को सुनते हुए और दूर जहाज़ की रोशनी के ऊपर एक चमकते सितारे को देखते हुए मन और उदास होने लगा। गहरी साँझ के सुरमई रंग में रंगी वह आवाज़ मन की गहराई के किसी कोमल रोयें को हलके-हलके सहला रही थी। लग रहा था कि उस रोयें की ज़िद शायद मुझे वहाँ से जाने नहीं देगी। लेकिन उससे भी ज़िद्दी एक और रोयाँ था-दिमाग के किसी कोने में अटका-जो सुबह वहाँ से जानेवाली बसों का टाइम-टेबल मुझे बता रहा था। गीत के स्वरों की प्रतिक्रिया में साथ टाइम-टेबल के हिन्दसे जुड़ते जा रहे थे-पहली बस सात पन्द्रह, दूसरी आठ पैंतीस, तीसरी...। थोड़ी देर में बस लौट गयी, गीत के स्वर विलीन हो गये और मन में केवल हिन्दसों की चर्खी चलती रह गयी।

ग्रेजुएट नवयुवक मुझे बता रहा था कि कन्याकुमारी की आठ हज़ार को आबादी में कम-से-कम चार-पाँच सौ शिक्षित नवयुवक ऐसे हैं जो बेकार हैं। उनमें से सौ के लगभग ग्रेजुएट हैं। उनका मुख्य धन्धा है नौकरियों के लिए अर्जियाँ देना और बैठकर आपस में बहस करना। वह ख़ुद वहाँ फ़ोटो-अलबम बेचता था। दूसरे नवयुवक भी उसी तरह के छोटे-मोटे काम करते थे। "हम लोग सीपियों का गूदा खाते हैं और दार्शनिक सिद्धान्तों पर बहस करते हैं," वह कह रहा था। "इस चट्टान से इतनी प्रेरणा तो हमें मिलती ही है।" मुझे दिखाने के लिए उसने वहीं से एक सीपी लेकर उसे तोड़ा और उसका गूदा मुँह में डाल लिया।

पानी और आकाश में तरह-तरह के रंग झिलिलाकर, छोटे-छोटे द्वीपों की तरह समुद्र में बिखरी स्याह चट्टानों की चोट से सूर्य उदित हो रहा था। घाट पर बहुत-से लोग उगते सूर्य को अर्ध्य देने के लिए एकत्रित थे। घाट से थोड़ा हटकर गवर्नमेंट गेस्ट-हाउस के बैरे सरकारी मेहमानों को सूर्योदय के समय की कॉफ़ी

पिला रहे थे। दो स्थानीय नवयुवतियाँ उन्हें अपनी टोकरियों से शंख और मालाएँ दिखला रही थीं। वे लोग दोनों काम साथ-साथ कर रहे थे-मालाओं का मोल-तोल और अपने बाइनाक्युलर्ज़ से सूर्य-दर्शन। मेरा साथी अब मोहल्ले-मोहल्ले के हिसाब से मुझे बेकारी के आँकड़े बता रहा था। बहुत-से कडल-काक हमारे आसपास तैर रहे थे-वहाँ की बेकारी की समस्या और सूर्योदय की विशेषता, इन दोनों से बे-लाग।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book