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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


भूख हड़ताल की यह खासियत होती है जहां इसका आयोजन किया जाए वहीं भूख से लड़ना मुमकिन होता है। हम जिस आरामदायक घर में आ ठहरे थे, वहां भूख दुश्मन नहीं, अपनी जरूरत महसूस हो रही थी। जैसे-जैसे हम उसे भूलने की कोशिश करते थे, वह और तकलीफदेह होती जा रही थी।

हमें लगने लगा रात बहत ज्यादा लंबी हो गई है और हम लोगों की बातचीत बेहद उखड़ी हुई और उबाऊ। भूख से बचने के लिए हम सोने की कोशिश करते रहे। इस बीच कटोरी देवी को हम बिल्कुल ही भूल गए थे। जाहिर है इस भीषण बारिश में चारपाई से ऊपर बहते पानी में आधी डूबती हुई वह उसी जगह रही होगी। पूरे डेढ़ बरस उसने वहीं इसी तरह मौसम और सत्ता का सामना किया होगा।

अगले रोज पानी सिर्फ कम हुआ, बंद नहीं हुआ था। हमें अब अपनी भूख हड़ताल समाप्त करने का अनुष्ठान निभाना था।

इस तरह के मौसम में न फूलमालाएं मिल पाईं और न ही फलों का रस। इसलिए हम लोगों ने एक-एक गिलास चाय पीकर भूख हड़ताल तोड़ी। जोर-शोर से नारे लगाए और रिक्शे लेकर भीगते हुए वापस आ गए।

कटोरी देवी की इतनी ही गाथा मैं सही ढंग से जानता रहा हूं। भूख हड़ताल के दौरान उसने मेरे प्रति जो श्रद्धा दिखाई थी, उसके कारण उसके प्रति मेरा क्षोभ तो समाप्त हो गया था लेकिन उससे कोई खास सहानुभूति फिर भी पैदा नहीं हुई। सच तो यह है कि मैं उसे पूरी तरह भूल गया।

इस बीच हमारी पार्टी में एक बार फिर गड़बड़ी पैदा हो गई। हम एक विरोधी दल के साथ मिलकर संयुक्त मोर्चा बनाने की कोशिश कर रहे थे। हमारी कई संयुक्त बैठकें भी हो चुकी थीं। यह मोर्चा भी एक अजीब हादसा साबित हुआ। दोनों ही पार्टियां घोषणा करती थीं कि संयुक्त मोर्चा बिना शर्त बन रहा है पर शर्ते हमें भी मालम थीं और दूसरे दल को भी। एक दिन हमने पाया कि हमें भारी धोखा दिया गया है। हमारी पार्टी में मुझे और एक उपाध्यक्ष को छोड़कर बाकी सारे लोग एकाएक दूसरे दल में शामिल हो गए।

इसी बीच एक दिन खरे आया। मैं उसे जल्दी-जल्दी अपनी स्थिति समझाने लगा पर उसने खास ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर मेरी बात सुनकर बोला, "भाई साहब, मैं एक खास काम से आया हूं।"

"बताओ?" मैंने हताश होकर कहा।

"कटोरी देवी की मृत्यु हो गई।"

"क्या? कैसे?"

"कैसे क्या साहब, बड़ी दिलेर औरत थी। पुलिस, ठेकेदार और मौसम की जो मार उसने सही थी, उसमें इतने बरस जी गई, यही बहुत है। उसने जान गंवा दी मगर डॉक्टर मन्न जी को ले डूबी। साला गैंगस्टर एक्ट में जेल में है। आपसे ज्यादा अच्छी तरह कटोरी देवी को कौन जानता है। तो मैं शाम को आऊं? आपसे लेख चाहिए।"

“ऐं? हां। आ जाओ।" मैंने कहा।

खरे के लिए कटोरी देवी पर अब जो लेख मैं लिखने बैठा हूँ उसमें फड़कते हुए पहले चंद वाक्यों के बाद मैं नहीं जानता क्या लिखें।

कटोरी देवी की मृत्यु हो गई। पर डॉक्टर मन्नू जी आज नहीं तो कल, छूटेंगे ही। मेरी टूट चुकी पार्टी के लिए अब मन्नू जी के अलावा और क्या उम्मीद हो सकती है।

“संदीपन!" सहसा मैं उठ गया। संदीपन टाइपराइटर की सफाई छोड़कर मेरी तरफ देखने लगा।

एक क्षण रुककर मैंने कहा, “देखो, मैं जा रहा हूं। शाम को खरे आए तो कह देना, एक बहुत जरूरी काम से मैं धनबाद चला गया।"

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