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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...

चिरकुट


पुरानी मोटर में उसके दरवाजे कुछ ज्यादा ही परेशानी पैदा करते हैं। यह मोटर, जिसे मैं बहुत शान से 'कार' कहता था, एक तो पहले से ही पुरानी थी, ऊपर से कई बरस मेरे पास रहकर और ज्यादा पुरानी हो गई थी। लिहाजा यह सहज था कि उसके दरवाजे भी परेशानी पैदा करते। एक बार उसका दाहिना दरवाजा बंद हुआ, तो फिर खुला ही नहीं। बड़ी मुश्किल से बायां दरवाजा खुला और दो दिन तक सवारी के लिए मोटर में मुझे बाएं दरवाजे से घुसना पड़ा था। कभी उसके शीर्श चढ जाते. तो उतरने का नाम नहीं लेते थे। एक बार एक दरवाजा बहुत दिन तक जोर से बंद करने के बावजूद गाड़ी चलने पर लय-ताल के साथ बजना शुरू कर देता था और हमें ऐसा लगता था, जैसे उस तरफ किसी पाजी लड़के ने कोई डिब्बा लटका दिया हो।

एक बार तो हद ही गई। बाईं तरफ मेरी बीवी बैठी थी। मोटर दाहिने घुमाने पर दरवाजा बड़े मजे में झूलकर खुला और बीवी लुढ़क गई। पता नहीं, आप जानते हैं या नहीं, बीवी खुद गिरे, तो भी वह आप पर ही नाराज होती है और आप गिरा दें, तो भी। अगर कोई दूसरा गिरा दे, तब भी वह आप पर ही नाराज होगी। पता नहीं, बीवियों को कैसे यह शंका बनी रहती है कि उनके साथ होने वाले इस तरह के हादसे के पीछे आपका ही हाथ है। और कुछ नहीं, तो बीवी को यह विश्वास तो हो ही जाता है कि आप उसके गिरने का मजा ले रहे हैं, भले ही आप कितने ही गंभीर क्यों ने बने रहें। अगर उस वक्त आप उससे सहानुभूति दिखाते हुए उसे उठाने की कोशिश करें, तो वह इस तरह झिड़केगी, गोया आप उसे दोबारा धकेलने जा रहे हों। अगर इस झिड़की को आप याद रखें और उसके दोबारा गिरने पर आप उसे उठाने के बजाय दूर खड़े रहें, तो भी आप झिड़की खाएंगे, क्योंकि बीवी आपको भावनाशून्य मानकर और ज्यादा नाराज होगी। बहुत-से लोग आपको ऐसी स्थितियों का सफलतापूर्वक सामना करने की बहुत-सी तरकीबें बताएंगे। पर मैं दावे से कह सकता हूं कि मुसीबत के वक्त इनमें से कोई काम नहीं आएगी।

खैर, इस हादसे के बाद मैंने फैसला किया कि दरवाजा जल्दी ठीक करा लूंगा।

यहां यह भी बता दूं कि आप मोटर का दरवाजा ठीक करा लेने से न तो वीवी को गिरने से शर्तिया तौर पर बचा सकते हैं, न अपने-आपको इस घटना से जुड़ी झिड़कियों से, क्योंकि वीवी ने अक्सर मोटर के दरवाजे के अलावा भी गिरने के साधन खोज रखे होते हैं। वह वाथरूम में फिसलकर गिर सकती है और बाथरूम गीला करने का दोष आप पर डाल सकती है। रसोई में अलमारी के ऊपर रखी चीज उतारने की कोशिश में स्टूल से गिर सकती है और आपको यह याद दिलाया जा सकता है कि अलमारी के ऊपर रखी चीज आपने ज्यादा पीछे खिसका दी थी। वह अपनी ही सैंडिल से उलझकर गिर सकती है और जुर्म आप पर आयद हो सकता है। एक बार मेरे एक कवि मित्र की बीवी तो एक फुटपाथ से ही गिर पड़ी और उसका पैर टूट गया। कवि मित्र से बाकी बात मैंने पूछी नहीं।

तो हमने फैसला किया कि मोटर का दरवाजा ठीक करा लिया जाएगा।

यह इतना आसान काम नहीं था। अगर मोटर किसी ट्रक से लड़ गई होती या उसकी धुरी टूटकर पहिया दूर जा गिरा होता, तो मिस्तरी ज्यादा तत्परता से मोटर ठीक करता। दरवाजा ठीक करने में उसे मेहनताना बहुत थोड़ा मिलना था, इसलिए एक-दो हथौड़े मारकर उसने फुरसत के वक्त लाने को कहा।

इस फुरसत का इंतजार मैंने कई दिन किया। इस बीच एक दिन वह अजीब-सा आदमी आया, जिसका बयान मैं करनेवाला हूं-

उसने एक घिसी हुई और जगह-जगह से फटी पतलून के ऊपर उससे भी ज्यादा फटी कमीज और तेल से चीकट हुई वास्कट पहन रखी थी। उसके जूते बहुत मोटे और वजनी थे, क्योंकि उनकी बहुत बार मरम्मत हो चुकी थी और मैल की परत ने उन्हें एक बिल्कुल अजूबा बना दिया था। उसके पैर जूते में इस तरह घुसे हुए थे, जैसे सूराखों में सूअर के बच्चे दुबक गए हों। उसकी बहुत घनी भौंहों के नीचे आंखें बहुत छोटी, लेकिन चमकीली थीं और नाक किसी आधी खुली छतरी की तरह चमड़े के थैले जैसे मुंह को ढके हुए थी। उसके सिर पर लंबे बाल थे, अगर उन्हें बाल कहा जा सके, क्योंकि बाल से ज्यादा वे मैली रस्सियों के गच्छे लगते थे। शायद जन्म के बाद उस आदमी ने मृत्यु से पहले कभी न नहाने का फैसला किया हुआ था।

उसकी साइकिल भी बिल्कुल उसी की जैसी अजूबा थी। उसके पिछले पहिए की बगल में वह डिब्बा लगा हुआ था, जिसे मोटरसाइकिलों में कुछ जरूरी सामान रखने के लिए अलग से लगवा लिया जाता है। आगे के हैंडल के साथ एक ढक्कनदार टोकरी थी। साइकिल का फ्रेम बहुत बार बहुत जगह से टूटा होगा, क्योंकि वह जगह-जगह पर जोड़ा गया था और जोड़ के निशान उसके दांतों की तरह चमक रहे थे। टायर में हर तरफ थेगलियां थीं। फ्रेम के बीचोबीच दोनों पैरों के दरम्यान लकड़ी की एक चपटी पेटी टंगी हुई थी। साइकिल पर हर तरफ फटे थैले लटके थे। इस अजीब-से आदमी को एक नजर में देखकर लगता था, वह आदमी से ज्यादा कवाड़ का एक ढेर है। उसने अपनी मुस्कुराहट को भरसक और ज्यादा चौड़ी करते हुए मुझे अभिवादन किया और पूछा, “ये कार आपकी ही है?"

"हां, क्यों?" जाने क्यों उसके सवाल से मैं थोड़ा चिढ़ गया।

"बहुत अच्छी गाड़ी होती है साहब।" वह अपनी साइकिल की गद्दी पर कुहनी टेककर बोला, "इसका इंजन तो लाजवाब होता है।"

इस तारीफ से थोड़ा नरम होने के बावजूद मैं समझ नहीं पा रहा था कि उसकी नीयत क्या है, इसलिए मैं चुप रहा।

अब उसने अपनी साइकिल स्टैंड पर खड़ी कर दी और फाटक पर आ गया। मोटर को गौर से देखते हुए बोला, “इसकी बाईं तरफ की ब्रीडिंग उखड़ रही है साहब। और उखड़ी तो कहीं रास्ते में गिर जाएगी।"

"हूं।" मैं अब भी उसे उसी संदेह से देखे जा रहा था।

इन निगाहों का उस पर कोई असर नहीं हुआ। आसमान की तरफ आंखें मिचमिचाते हुए बोला, "बड़ी गरमी है साहब। ठंडा पानी पिलाइए साहब, फ्रिज का पानी पीकर तबीयत खुश हो जाती है।"

उसकी इस बात पर मुझे और गुस्सा आया। जिस ढंग से उसने पानी की फरमाइश की थी, उससे लग रहा था, पानी सामने आने पर वह कहेगा, साहब, कुछ पुलाव मिल जाएगा? मेज पर बैठकर पुलाव खाने में बहत मजा आता है।

गुस्से के बावजूद उसकी पानी की मांग न मानना ठीक नहीं लगा। जब तक उसके लिए पानी था, उसने मजबूत पार से बने दो छोटे-छोटे एसजे अपने थले से निकाल लिए। उन्हें दिखाता हुआ बोला, “ये देखिए, दो ही थे और आपकी ब्रीडिंग के भी दो ही लॉक खराब हुए हैं। ये मत सोचिएगा साहब कि मैं इनके पैसे ले लूंगा। भगवान् ने चाहा, तो आप ही मुझे किसी बड़े काम के लिए पैसे देंगे।"

अब वह फाटक के अंदर भी आ गया। लॉक लगाने से पहले उसने दोनों तरफ से मोटर का कुछ ऐसे मुआयना किया, जैसे उसमें निकलनेवाले मांस का अंदाज लगा रहा हो।

पानी आ गया, मगर उसने गिलास की तरफ अपनी काली हथेली दिखाकर कहा, “जरा ठहरो!"

इसके बाद बिना ब्रीडिंग उखाड़े उसने उसमें दोनों लॉक लगा दिए। सांप के फन की तरह उभर आई वह रूपहली पत्ती बड़े सलीके से चिपककर बैठ गई।

"पानी दो।" उसने बच्ची के हाथ से गिलास ले लिया। थोड़ा-सा पानी पीने के बाद उसने कहा, "साहब, पानी को खाना चाहिए। धीरे-धीरे एक-एक बूंट करके।"

उसने मेरी खीझ बढ़ाते हए सचमुच इसी तरह पानी पिया। खीझ उतारने का चूंकि और कोई तरीका नहीं था, इसलिए मैंने पूछा, "कितने पैसे हुए?"

उसने बहुत नाटकीय अप्रसन्नता दिखाई। बोला, “देखिए साहब, अब ऐसे मेरी बेइज्जती न कीजिए। आप क्या सोचते हैं, मैं इस जरा-सी खिदमत के लिए आपसे पैसे ले लूंगा!"

वह आदमी गंदगी का एक अजीव मसखरा पुतला लग रहा था, लेकिन उसके आत्मविश्वास को देखकर उसे खारिज करना जरा मुश्किल काम था। मेरी खीझ ज्यादा देर वनी नहीं रह पाई, क्योंकि मुझे याद आया कि खराव तालेवाले दरवाजे के रूप में मेरी मोटर में बीवी को गिरानेवाली एक संभावना कई रोज से बनी हुई है। मेरे. मैकेनिक के पास अभी फुरसत नहीं है। इस बीच वीवी को मोटर में बैठने की जरूरत कभी भी पड़ सकती है।

वह आदमी जरूर मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञाता रहा होगा, क्योंकि मुझे घूरता हुआ बोला, “मेरी शक्ल पर मत जाइए जनाव, मैंने किसी जमाने में अंग्रेजों की मोटरें ठीक की थीं।"

"इसके दरवाजे का ताला ठीक नहीं है। ठीक कर सकते हो?" मैंने पूछा।

“अब साहब, इम्तहान तो लीजिए नहीं। पहले मुझे काम करने दीजिए। अगर मेरा काम दूसरों से इक्कीस न निकले, तो जो जुरमाना लगाएं, दूंगा।" वह मोटर की तरफ बढ़ता हुआ बोला, "किधर का लॉक खराब है?"

"बाईं तरफ का।"

“हूं।" उसने दरवाजा खींचा। वह खुल गया। ताला देखने के लिए उसने दरवाजे को कई बार बंद किया और खोला। इसके बाद शीशा नीचे किया। पूरी तरह नीचे कर देने के बाद शीशा फिर चढ़ाया। इसके बाद दरवाजे को किसी अनुभवी डॉक्टर की तरह घूरता हुआ बोला, "शीशा चढ़ानेवाली मशीन के दांते भी घिस गए हैं।"

“अरे वो छोड़ो।" मैंने कहा, "वैसे तो बहुत कुछ घिस गया है। तुम ताला ठीक कर दो, बस।"

“आप हुक्म तो करिए साहब, ये ताला क्या चीज है..." कहते हुए उसने अपनी साइकिल पर बंधे औजारों के थैले उतारना शुरू कर दिए।

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