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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


इस उधेड़बुन में थोड़ी देर के लिए मेरा ध्यान बाहर से हट गया। दोबारा मैकेनिक की याद आने पर मैंने फिर परदा हटाकर झांका। वह नहीं था। उसके कुछ अजीब-से औजार वहां पड़े थे, पर वह नहीं था। मैंने मोटर की तरफ की खिड़की से भी झांका, वह उधर भी नहीं दीखा। शायद वह मोटर के दूसरी तरफ लेटकर कुछ कर रहा हो, पर उसकी भी आहट नहीं मिली।

मैं संकोच छोड़कर बाहर निकल आया। वहां मैकेनिक नहीं था। उसकी साइकिल भी नहीं थी। कुछ टूटे-फूटे पुरजे और बेढंगे-से औजार जमीन पर बिखरे हुए थे। मोटर के दोनों दरवाजे खुले हुए थे और उनके हत्थे निकले हुए गद्दी पर रखे थे।

मैंने घबराहट में डिक्की खोली। उसमें स्टेपनी मौजूद थी, मगर जैक गायब था।

हो गया कबाड़ा! मैंने सोचा। नुकसान से जयादा मैं बीवी से डर गया। उसका खयाल था कि मैं पतियों में सबसे ज्यादा बेशऊर और बेढंगा पति था, जो इत्तफाक से उसके हिस्से आ गया था। अगर वह ध्यान न रखे, तो मैं घर को लुटवाने और खुद लुटने में बहुत आसानी से कामयाब हो जाऊं। मैंने अनुमान लगाने की कोशिश की कि गायब जैक कितने का होगा। शायद सौ-डेढ़ सौ का, या दो-तीन सौ का। जैक मैंने कभी खरीदा ही नहीं था। वह मोटर के साथ ही मिला था।

ठीक इसी वक्त मुझे घबराहट में डालती हुई मेरी बीवी भी वहां पहुंच गई। किसी चोर को चोरी करते वक्त सीधे थानेदार द्वारा दबोचे जाने पर जो अनुभव होता होगा, वही मुझे भी हुआ। मैंने डिक्की फौरन बंद कर दी।

बीवी ने एक शातिर पुलिस अफसर की तरह सवाल किया, "मैकेनिक कहां है?"

“मैकेनिक! वो शायद रोटी खाने गया हो।"

"रोटी खाने! अभी आया, अभी भूख भी लग गई? बताकर क्यों नहीं गया?"

"हां, कहकर तो जाना चाहिए था।" मैंने उसका भरपूर, मगर खोखली आवाज में समर्थन किया।

"ये लोग तो खाना बांधकर निकलते हैं। ये क्या किसी होटल में खाता है? साइकिल भी नहीं है।"

"हां, साइकिल भी नहीं है। साला औजार छोड़ गया है।" मैंने यह साबित करने की कोशिश की कि उसकी भी जमानत तो यहां है।

पर बीवी ने तीखेपन से मुझे धूरा, “औजार! ये औजार हैं? दो रुपए किलो का लोहा है। दस रुपए का भी नहीं होगा।" उसका रद्दीवाले कवाड़ियों से बहस करके अर्जित ज्ञान भी उसी की मदद में जा खड़ा हुआ।

उसकी बात सही थी। उसने सहसा पूछा, “स्टेपनी है?"

"हां, वो तो देख ली है।"

मेरे चेहरे पर इस बीच जरूर कोई गड़बड़ी हो चुकी होगी, जो बड़ी बेशर्मी से चुगली कर रही थी। बीवी मेरी बात पर विश्वास नहीं किया। लगभग छीनकर चाभी लेते हुए उसने डिक्की फिर खोल ली। स्टेपनी सही सलामत थी, पर मुझे और ज्यादा घबराहट में डालते हुए उसने पूछा, “यहां जो मशीन रखी रहती थी, वह कहां है?"

अब मैं पूरी तरह चित हो चुका था। उसे जैक का नाम नहीं मालूम था, लेकिन उसके अधिकार में कहां क्या है, यह उसे बखूबी पता था।

"हां, बात तो सही है।" मैंने उस खाली जगह को इस तरह घूरा, जैसे पहली बार मुझे खयाल आया हो।

यह चालाकी भी काम नहीं आनी थी, बल्कि इससे मेरी दुर्दशा में वृद्धि का एक कारण और जुड़ गया। बीवी नाराजी से घूरती हुई बोली, “तुम किसी चीज का कोई खयाल नहीं रखते हो। तुम्हें नुकसान की परवाह ही नहीं है।"

इसी तरह के कुछ और फिकरे वह मेरे चेहरे पर पटकती हुई खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गई। इस बात पर उसी ने ध्यान दिया कि बायें दरवाजे का शीशा चढ़ानेवाली मशीन भी गायब है। "और ये देखा है? तुम क्या देखोगे! इसमें यहां से सारे पुरजे गायब हैं।" उसने कहा।

मैं दरवाजे को भी झुककर उस चोर की तरह मासूमियत से घूरने लगा, जिसकी पिटाई और इकबालिया बयान के बाद पुलिस खुद उसी की खोदी सेंध दिखा रही हो।

"तुमने तो हद ही कर दी। अरे, वो कुछ भी घर से उठा ले जाता। वो, देखो गैराज के अंदरवाला दरवाजा खुला पड़ा है। मजे से अंदर घुसकर लॉकर पर हाथ साफ कर जाता। पर तुम्हें क्या, तुम तो तब भी इसी तरह खड़े हो जाते।"

"लेकिन यह तो सोचो, उस बदमाश ने जो चोरी की है, उसकी पुलिस रिपोर्ट भी क्या की जाए!"

"क्यों नहीं की जा सकती!" उसका तर्क था कि चोरी चाहे जितनी छोटी हो, चोरी ही होती है। चोर को सजा दिलवाना ज्यादा जरूरी होता है।

मैं बुरी तरह फंस चुका था। पकड़े जाने पर जैक चुराकर भागनेवाले मैकेनिक की भी इतनी दयनीय स्थिति नहीं हो सकती थी, जितनी मेरी थी।

"और ये सामान! ये किस काम का!" लगा, वह उन टूटे-फूटे पुरजों को उठाकर सड़क पर फेंक देगी। उसकी आवाज अब तक जरूर खासी ऊंची हो चुकी होगी, क्योंकि आस-पड़ोस के बरामदों में कुछ पड़ोसी जाहिरा तौर पर अपने को व्यस्त दिखाते हुए नजर आने लगे थे। विवाहित पड़ोसी बहुत दुष्ट चीज होते हैं और जो लोग यह नहीं जानते, उन्हें अपने को बहुत भाग्यवान नहीं मानना चाहिए। संस्कृत में मित्र की परिभाषा से विवाहित पड़ोसी बिल्कुल उल्टे होते हैं। मित्र तो छुपाने योग्य बातों को छुपाता है और गुणों का प्रचार करता है, पर विवाहित पड़ोसी बहुत घूर्त होता है। वह छुपाने योग्य बात को नमक-मिर्च लगाकर फैलाता है और आपके गुणों के बारे में एकदम मासूम बन जाता है।

मेरी बीवी की आवाज जल्दी ही अब कुछ और ऊंची होनेवाली थी और पड़ोसियों के कान पूरी क्षमता से काम करने को तैयार हो रहे थे कि तभी वह आदमी फाटक के पास बरामद हो गया, अपनी साइकिल और हमारी मोटर के जैक सहित।

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