कहानी संग्रह >> मुद्राराक्षस संकलित कहानियां मुद्राराक्षस संकलित कहानियांमुद्राराक्षस
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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...
साइकिल रखकर अंदर घुसते हुए बोला, "बड़ी दूर जाना पड़ा। बेल्डिंगवाला बहुत
बदमाश था। जरा से काम के पांच रुपए मांगने लगा।" उसने दरवाजे की मशीन और जैक
फर्श पर रख दिए। सामान रखकर सीधे खड़े होते-होते उसने भाप लिया कि उसकी
अनुपस्थिति में हमने क्या सोचा था। हंसता हुआ बोलो, “सब मिस्तरी एक जैसे नहीं
होते। मैं काम ईमादारी से करता हूं, औरों की तरह नहीं हूं कि एक पेच लगाया,
दूसरा हैंडल खोलकर बेच लिया।"
उसने यह बात इस तरह मेरी तरफ देखते हुए कही, जैसे उस पर इल्जाम मैं ही लगाता
रहा था। मजे की बात यह है कि मैं उसे यह नहीं बता सकता था कि चोरी का शक
मैंने नहीं, मेरी बीवी ने किया था। मैं शायद माफी ही मांगने लग जाता कि मेरी
बीवी ने पांसा पलट दिया।
"तुमने तो हद ही कर दी।" वह उसे धमकाती हुई वाली, "तुम्हें कहकर जाना चाहिए
था। बताओ, तुमने तो हद ही कर दी। तुम चले गए। यहां सामान की नुमाइश लगा गए।
अब हम इसकी रखवाली करें! कोई कुछ उठाकर चलता बने, तो तुम कहोगे, साहब ने रख
लिया..."
उसका यह दांव अद्भुत था-तुम्हारे सामान की हम रखवाली कब तक करें!
बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं, जो इतने आत्मविश्वास से दोनों तरफ से हमला कर
सकें। सच तो यह है कि ऐसे लोग हमला ही हमला करने के लिए बने होते हैं, उन्हें
आत्मरक्षा की कभी जरूत ही नहीं पड़ती। अपनी बीवी के इस चमत्कारी स्वभाव का
असर मैंने उस मिस्तरी पर भी देखा। जिस तत्परता से वह मुझे जवाब दे रहा था, वह
तत्परता मेरी बीवी के सामने एकदम गायब हो गई और वह आदमी क्षमायाचक बन गया,
"हां मेम साहब, ये बात आपने सही कही। पहले मैंने सोचा, फिर लगा, आपके आराम
में खलल पड़ जाएगा।"
"बिना पूछे ये क्यों ले गए?" उसने जैक की तरफ इशारा करते हुए मिस्तरी को और
ज्यादा शर्मिंदा करने के लिए पूछा।
मिस्तरी लज्जित होकर बोला, "मेम साहब, मैं क्या बताऊं, मगर जैक के लिवरवाला
छेद चटक गया था। मैंने सोचा, जब मशीन जुड़वानी है, तो इसमें भी टांका लगवा
दूं।"
उसकी इस कर्तव्यनिष्ठा का भी बीवी पर खास असर नहीं हुआ, "तुमने तो हद ही कर
दी। बिना पूछे डिक्की का ताला भी खोल डाला!"
इसके बाद मिस्तरी ने पूरी तरह हथियार डाल दिए। उसके एकदम चुप हो जाने से जीत
का जो सुख मेरी बीवी को मिला वह उसके चेहरे से साफ झलक रहा था। सहसा उसमें एक
अप्रत्याशित परिवर्तन हो गया। उसने पूछा, “पानी पियोगे?"
"पी लिया था मेम साहब, लेकिन थोड़ा और मिल जाता तो..."
"ठीक है, भिजवाती हूं। कुछ खाया है?"
मिस्तरी बेशर्मी से हंसने लगा, “सवेरे चाय पी थी मेम साहब। कोई बात नहीं...!"
वह निहायत धूर्त है, मैंने सोचा, मगर बीवी ने वैसा नहीं सोचा। थोड़ी ही देर
में अंदर से डबल रोटी की फांकें और आलू की सब्जी आ गई, जिसे उसने नदीदेपन के
साथ खाया और हालांकि मैं वहीं खड़ा था, उसने ऊंची आवाज में मेम साहब को दुआएं
दीं। पानी पीकर डकार ली और काम में जुट गया।
गोकि उस आदमी ने अपनी ईमानदारी सिद्ध कर दी थी, पर अब मैं किसी न किसी बहाने
वहां चक्कर काटने लगा।
"देखिए साहब, इसके दांत देखिए।" उसने शीशा चढ़ानेवाली मशीन दिखाते हुए कहा,
"इसके दांत घिस गए थे। मैंने इसे भी ठीक करा दिया है। अब यह नई से ज्यादा
अच्छा काम देगी। क्या फायदा था, आप महीने-भर बाद ही दरवाजा फिर खुलवाते..."
अपने बेढंगे औजारों और टेढ़ी-मेढ़ी उंगलियों की मदद से वह शाम ढले तक दरवाजा
ठीक करता रहा। इसके बाद उसने मुझे भी दरवाजे के बारे में इत्मीनान कर लेने को
कहा। मैंने शीशा उतारा-चढ़ाया। वह जरूरत से ज्यादा ही कस गया था। दरवाजा बंद
किया, तो ताला बंद हो गया, पर खोलने में खुद उसे भी खासी मेहनत करनी पड़ी।
"कोई बात नहीं साहब, अभी ठीक करता हूं। जब तक ठीक न हो जाए, मैं पैसे नहीं
लूंगा। पचास बार खोलना पड़ा, तो पचास बार खोलूंगा।" कहकर वह ताला ठीक करने
में फिर जुट गया।
इस बीच अंदर से मेरे लिए चाय आई, तो एक कप उसके लिए भी आ गई।
यह बीवी की विचित्र आदतों मे से एक थी। अगर मैं किसी को पानी पिलाने के लिए
भी कह दूं तो वह चिढ़ जाएगी। लेकिन उस पर वह खासी मेहरबान हो जाती है, जिसकी
उसने मरम्मत की हो।
दरवाजे का ताला एक बार फिर दुरुस्त हुआ। वह बंद हो जाता था, पर खुलता मुश्किल
से था। पर मिस्तरी ने समझाया, "थोड़ा-सा इस्तेमाल करेंगे, तो अपने-आप ठीक हो
जाएगा।"
इसके बाद उसने लोहे का एक अजीब-सा टुकड़ा मुझे देते हुए कहा, “ये मैंने निकाल
दिया है। रख लीजिए।"
“निकाल दिया है? मगर ये है क्या?" मैंने पूछा।
"टेक है साहब। शीशा पूरी तरह नीचे न गिर जाए, इसलिए लगता है।"
"मगर इसे निकाल क्यों दिया?"
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