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मुद्राराक्षस संकलित कहानियां

मुद्राराक्षस

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :203
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7243
आईएसबीएन :978-81-237-5335

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कथाकार द्वारा चुनी गई सोलह कहानियों का संकलन...


एक दिन वह एक जंगली लतर से वे काली मोटी फलियां तोड़कर लौट रहा था जिनके ऊपर चिपके रोएं बेहद खुजली पैदा करते थे। वह खुजली पैदा करनेवाले उन तंतुओं को महज एक शरारत के लिए ला रहा था। तभी उसने रज्जन को एक बिल्कुल नए रूप में देखा था। वह खासी शराव पिए हुए था और गुड़ में चने की दाल मिलाकर बनाई मिठाई का भारी-सा टुकड़ा अंगोछे में बांधे था जिसका एक सिरा सायास विज्ञापन की तरह बाहर झांक रहा था। रज्जन को उस दिन पहली अच्छी आमदनी हुई थी। हालांकि यह आमदनी आसान नहीं थी फिर भी वह बहुत खुश था।

उससे सिर्फ तीन दिन पहले यह सिलसिला शुरू हुआ था। रज्जन एक दोस्त। की बारात से लौट रहा था। उसने कुर्ते के ऊपर पहननेवाली सदरी राधे से मांग ली थी और कुर्ते-धोती को भरसक धो लिया था।

उसने जूते में घोड़े की जैसी नाल जड़ी हुई थी, जिसकी वजह से चलते वक्त बड़ी शानदार आवाज होती थी। सिर पर टोपी लगाने के बाद उसने एक लाठी भी ले ली थी। इस तरह चलते हुए वह अपने को खासा महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझने लगा था। नौबन लौटते वक्त रात हो गई थी। सड़क के दोनों तरफ खड़े काले दरख्तों के बीच से छनकर चांदनी के छोटे-बड़े धब्बे सड़क पर दूर तक छितराए हुए थे। उस सूनी सड़क पर चांदनी के वे धब्बे कुचलते हुए आगे बढ़ने पर जूतों से जो आवाज होती थी उसकी ताल पर वह गाना भी गाने लगा था।

उसकी आत्मविभोर मनःस्थिति बहुत ही बेदर्दी से टूटी। बहुत बदतमीजी से उसे ललकारते हुए अपने चेहरे लपेटे जिन एक दर्जन लोगों ने उसे अचानक घेर लिया था उन्होंने न सिर्फ उसे गालियां ही दीं बल्कि उनमें से एक ने उसकी कमर के पास लाठी भी दे मारी। उस हमले में चोट से ज्यादा अपमान के कारण वह रो पड़ा।

उसे घेरनेवाले लोग डकैत थे। अपनी हैसियत बताने के बाद उन्होंने उसे और पीटा और जब अपनी कारगुजारी से संतुष्ट हो गए तो उन्होंने उससे कहा कि उसके पास जो कुछ भी हो चुपचाप हवाले कर दे।

हवाले करने लायक रज्जन के पास सिर्फ डेढ़ रुपया था। कुछ मिठाई भी थी।

इतनी लूट से डकैत बहुत ज्यादा चिढ़ गए और उन्होंने उसे फिर पीटा। बल्कि उनमें से एक चिल्लाया, "मारकर फेंक दो साले को।"

रज्जन रोता हुआ बोला, "मुझे मारकर क्या मिलेगा दादा।"

“अबे तो फिर किसको मारकर मिलेगा, ऐं?"

इसी संवाद से रज्जन के लिए एक नया रास्ता खुल गया। उसने मुन्ना साहू का पता दे दिया और यह भी बता दिया कि पैसे उधार लेने के लिए लोग जो जेवर गिरवी रखते थे उन्हें वह भूसेवाली कोठरी में रखता था।

“साले, अगर वहां कुछ न मिला तो काटकर फेंक देंगे।" उन्होंने जाते-जाते
उसे धमकी दी और थोड़ा-सा और पीटा।

निश्चय ही डाकुओं को मुन्ना साहू के यहां खासा माल मिला होगा क्योंकि थोड़े ही अरसे बाद उन्हीं में से दो ने जाने कैसे उसे फिर खोज लिया था। रज्जन डरकर दुबारा पिटने के लिए साहस जुटा रहा था कि उन्होंने अपना प्रस्ताव रख दिया।

सही सूचना देने और उस सूचना से लाभ होने पर बीस रुपए मिलते थे और देशी शराब के साथ उम्दा खाना।

और यह सारी ऐयाशी, नए रोजगार की सारी बारीकियां नौबन के हर आदमी को मालूम हो गई थीं। इन्हीं से खीझकर एक दिन नत्थू ने यह सब कुछ पुलिस को बता देने का फैसला कर डाला था।

बहाना बनाकर लंबी यात्रा करने के बाद जब नत्थ थाने पहंचा तो उसे लगा वह वहां नाहक आ गया था। पुलिस के पास जाने की बात सोचना उसके लिए आसान था पर उससे सामना करते वक्त वह सचमुच घबरा गया। उसे लगा रज्जन वह खद था और अपने-आपको यहां सौंपने आया था। थाने का छोटा दारोगा उसे सामने ही खड़ा मिल गया था। वह खाना खाकर उठा था और दांत खोदने के बाद पेड़ के नीचे चारपाई पर थोड़ी देर सो लेने की तैयारी में था। उसके सामने पड़ते ही नत्थ की शक्ल किसी अपराधी जैसे हो गई और उसका गला बिल्कुल खुश्क हो गया।

"कौन है बे? यहां क्या कर रहा है?" दारोगा ने दांत से निकली साग की पत्ती जोर से थूकी।

"हुजूर, आपकी खिदमत में आया था।" नत्याने ने उसे तीखी निगाहों से घूरा, फिर चिल्लाकर मिट्टी पर पानी छिड़कते सिपाही से बोला. “अबे. इसे देख तो उधर ले जाकर। खासी हरामी चीज लग रहा है।"

सिपाही ने भी उसे उसी तरह घूरा था। थोड़ी देर बारीकी से उसका मुआयना करने के बाद बांह के पिछले हिस्से पर पजा गड़ाकर वह उसे अंदर की तरफ ले गया था। अंदर पहुंचते ही नत्थू के कुछ कहने से पहले सिपाही ने उसे अपनी तरफ पुतले की तरह घुमाया और छाती के बीचोबीच इस तरह बिना कोई उत्तेजना दिखाए घंसा मारा गोया वह किसी बालू के बस्ते पर चूंसेबाजी का अभ्यास कर रहा हो। घुसा मारने के साथ ही उसने उल्टे हाथ से उसकी कनपटी पर एक थप्पड भी मारा। नत्थ थोडा झक गया था पर थप्पड़ पड़ते ही उलटकर दीवार के पास जा गिरा था।

यह रज्जन या नत्थू ही नहीं नौबन के हर छोटे आदमी को मालम था कि शहजोर से संवाद शुरू होने की भाषा आम तौर पर यही होती थी। इसलिए पहली मार की घबराहट पर उसने जल्दी ही काबू पर लिया, “हुजूर, दारोगा साहब, मैं तो बड़ी जरूरी खबर देने आया था।"

इस पर सिपाही कुछ हिचका लेकिन एक जोरदार ठोकर और मार लेने के बाद ही उसने पूछा, “साला खबर लाया है। क्या खबर लाया है, ऐं?"

“हुजूर, वो डकैत..."

"डकैत? क्या डकैत?"

"हुजूर, डकैत हरीराम कल डाका डालनेवाला है।"

"इसकी सुनो!" सिपाही जैसे दीवारों से ही बोला, "तेरे पास साले है ही क्या कि हरीराम तुझे लूटेगा। मक्कारी करता है! साला किसी बेगुनाह को फंसाना चाहता है! तेरी तो...।" यह कहकर सिपाही ने उसे थोड़ा और पीटा।

“मगर मेरी बात तो सुन लीजिए हुजूर। बाद में फांसी पर चढ़ा दीजिएगा। हरीराम कुंदन को लूटने आएगा।" नत्थू ने किसी तरह कहा। यह सूचना भी उसे खुद रज्जन की हरकतों से मिल गई थी।

सिपाही ने उसे इस बार पीटा नहीं सिर्फ कुछ फोहश-सी गालियां दीं और धक्का देकर दारोगा के पास ले आया।

“अब क्या तकलीफ हो गई जी?" दारोगा खीझ गया।

"ये हरामी कहता है कि हरीराम कल रात कंदन के घर पर डकैती डालेगा।"

"मारो साले को और बंद कर दो!" दारोगा ने हुक्म दिया।

नत्थू सचमुच ही थोड़ा और पिटा और हवालात में बंद कर दिया गया। लेकिन दूसरी रात डकैती पड़ गई। डकैती बहुत बुरी तरह पड़ी। उस रात कुंदन का साला भी आया हुआ था। वह खामपुर के थाने में मुंशी था। उसने डकैतों से थोड़ी-सी पुलिस की शेखी मारने की कोशिश कर दी। बल्कि हरीराम के एक साथी को पकड़कर पटक भी दिया। इसके बाद हरीराम फिल्मोंवाला डकैत बन गया। उसने बुरी तरह लूटा भी और चलते-चलते कतार से खड़ा करके घर के चार मर्दो को गोली भी मार दी। मरनेवालों में वह मुंशी भी था।

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