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वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से



राजू ने पुनः एक बार दर्पण में झाँका, अब तक आंटी घूम चुकी थी। आंटी ने राजू से कहा, "अब तुम खेलने जाओ" और उसे अपने कमरे से बाहर भगा दिया। राजू बाहर निकल कर पुनः अपने खेल का आनन्द लेने लगा। उसके जाने के बाद कामिनी ने सबसे पहले तो दरवाजा अंदर से बंद किया और पुनः तौलिया हटा दिया। एक बार फिर अपने संपूर्ण नग्न शरीर का दर्पण में प्रतिबिम्ब देखकर वह स्वयं पर ही रीझ गई। दर्पण में देखते हुए उसकी उंगलियों ने पहले तो लंबे बालों को ऊपर से नीचे तक सराहा, उसके बाद उसकी दायीं तर्जनी हल्की संवेदना से पहले माथे, फिर नाक के अग्रभाग से होती हुई उसके अधरों पर थोड़ी देर के लिए रुक गई। दर्पण के सामने खड़े होते हुए भी कामिनी ने अपनी आँखे बंद कर लीं। वह निश्चित रूप से किसी और संसार में थी। फिर उसने अपने दोनो हाथों में अपने दोनो उभारों को थाम लिया, एक बार के लिए आँखें खोलीं और फिर अपने शरीर की यात्रा में मग्न हो गई। थिरकती हुई उसकी उंगलियाँ पहले पेट और फिर वहाँ से उतरती हुई नाभि के ऊपर कुछ देर रुकी रहीं। नाभि से नीचे की यात्रा तो उसकी उंगलियों ने लगभग धीरे-धीरे पदचाप की तरह की। नीचे तक पहुँचते-पहुँचते धीरे-धीरे उसकी टाँगों के बीच की दूरी बढ़ने लगी। वह कुछ देर खड़े हुए ही अपनी बीच की तीनों उगलियों से बालों के झुरमुट की धीरे-धीरे ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर की यात्रा करती रहीं।

कुछ देर के बाद कामिनी दर्पण के सामने से हटी और फिर उसने दरवाजे की झिरी के पीछे आँख लगाकर बाहर बैठे राजू पर दृष्टि डाली। राजू दरवाजे के ठीक सामने न होकर थोड़े तिरछे कोण पर बैठा था। वह बड़ी ही तल्लीनता से खेल में लगा हुआ था। राजू का दायाँ हाथ गेम कंट्रोलर दक्षता से आगे-पीछे नाच रहा था। एक दो मिनट तक देखने के बाद कामिनी वहाँ से अपनी दृष्टि हटा ली। दरवाजे से हटते ही कामनी वापस बिस्तर की और घूम ही रही थी कि वह अचानक चौंक पड़ी और पुनः उसने अपनी आंखें दरवाजे की झिरी में लगा दीं। लगभग तुरंत ही उसने लगभग इस तरह सिर हिलाया और बहुत धीरे-से बुदबुदायी। "तो ये मस्ती हो रही है।" वहीं खड़े-खड़े उसके हाथ पुनः अपने यौवन की गहराइयों में प्रवेश करने लगे।

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