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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

बेडरूम के दरवाजे के पीछे कमरे के अंदर कामिनी की उंगलियाँ अपने गुप्तांग पर घूम रहीं थीं और बाहर राजू का दायाँ हाथ गेम कंट्रोलर पर और बायाँ हाथ पैंट के अंदर घुसा हुआ एक लय में आगे-पीछे हो रहा था।

लगभग 4-5 मिनटों के बाद ही राजू का दायाँ हाथ अचानक रूक गया और उसका सारा ध्यान पेंट कें अंदर घुसे बायें हाथ पर ही केंद्रित हो गया। पेंट के अंदर हाथ का पंजा डालकर अपने शरीर के साथ खेलने में राजू को मजा तो आ रहा था, पर कुछ अड़चन भी हो रही थी, एक बार फिर उसने अपनी गर्दन घुमाकर कामिनी के बेडरूम की ओर देख कर पक्का किया कि कामिनी बाहर निकलने वाली तो नहीं है। कामिनी उसे देखते हुए अपने शरीर की घाटी की गहराइयों पर धीरे-धीरे रगड़ रही थी। थोड़ी देर तक राजू को खेलते और अपने शरीर को सहलाते देखने के बाद कामिनी ने अचानक बेडरूम के दरवाजे को इस तरह हिलाया कि जिससे लगे के वह बाहर निकलने ही वाली है। दरवाजे की आवाज सुनते ही राजू का ध्यान टूटा और खेल में उसका खिलाड़ी चोट खा गया। झल्लाकर टीवी की स्क्रीन को देख रहे राजू को देखते हुए कामिनी ने दरवाजा खोलने का इरादा त्याग दिया और दरवाजे से हटकर वह फिर से बिस्तर पर आकर दर्पण के सामने बैठ गई। लेकिन वह वहाँ बैठी ही न रही, बल्कि वह पुनः उठकर बड़ी अलमारी के सामने गई अलमारी के दरवाजे को इस तरह खोल दिया कि अलमारी का दर्पण और ड्रेसर का तीन पाटों वाला दर्पण आमने-सामने हो गये। अब बिस्तर पर लेटकर अपने शरीर के उत्तेजना देने वाले हिस्सों के देखते सहलाते हुए मजे लेती रही।

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