उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
मैंने सेवा-सेतु से कहा, 'सुन, दोनों मिल कर अक़्ल भिड़ाओ और चाल फेंको। अगर मैं जीत गयी, तो समझ लेना, भाई आज जीत जायेंगे।'
असल में, खेल में मेरा बिल्कुल मन नहीं था। मेरा मन तो उस तरफ़ पड़ा हुआ था। अब्बू अन्त में क्या फ़ैसला लेंगे?
कुछ देर बाद, भाई और तुलसी को ड्रॉइंगरूम में तलब किया गया। मैंने खेल-वेल बन्द कर दिया और उन लोगों की बातें सुनने के लिए, मैं साँस रोक कर बैठ गयी। तुलसी से मिलने का एक बार भी मौक़ा नहीं मिला था। माँ ने सख्ती से मना कर दिया था-'ख़बरदार, उस कमरे में मत जाना। और रात को उन दोनों को झुण्ड भर अभिभावकों के सामने, पारिवारिक दरबार में पेश होना पड़ा है। तुलसी ज़रूर मन-ही-मन बेतरह डरी-डरी होगी।
सबसे पहले बड़े मामा ने सवाल किया, 'फ़रहाद, तुमने माफ़ी माँगी?'
मैंने दरवाज़े से झाँक कर देखा, भाई सिर झुकाये खड़े हैं, पीछे तुलसी!
बड़े मामा ने ही अगला वाक्य जोड़ा, 'तो फिर माँगो माफ़ी, अपने बाप से माफ़ी माँगो।'
भाई जस के तस खड़े ही रहे।
दोलन फूफी ने भाई को पकड़ कर अब्बू के सामने ला खड़ा किया और उन्हें धकेल कर उकहूँ की मुद्रा में झुका दिया।
भाई कमरा भर लोगों के सामने ज़रा भी उकडूं नहीं हुए!
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