लोगों की राय

उपन्यास >> निमन्त्रण

निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

235 पाठक हैं

तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...


किसी दिन भी किसी को यह अन्दाज़ा नहीं लग सका कि भाई के दिल में तुलसी को ले कर भाग जाने की हद तक प्यार पल रहा है। मंसूर का चरित्र भी काफ़ी कुछ भाई जैसा है! वैसे वह चेहरे-मोहरे में भाई से हज़ार गुने ज़्यादा सुन्दर है। लेकिन, अपने प्यार के बारे में किसी को अन्दाज़ा न लगने देने, अकेले-अकेले अपने ही एहसासों में डूबे रहने जैसी खूबी, हर किसी में नहीं होती। अब मुझे ही लें, जब तक सैंकड़ों लोगों को यह न बता दूं कि मैं प्यार में गिरफ़्तार हूँ, मेरा नहीं चलता। मंसूर ने बेशक, यह बात किसी को न बतायी हो। किसी दिन वह मुझे लाल साड़ी पहना कर अपने घर ले जायेगा और सबको चौंका देगा। हाँ, वह समूचे दुनिया-जहान में यह घोषणा करके सबको चौंका देगा कि मैं शीला को प्यार करता हूँ। मैंने शीला से विवाह किया है। यह ख़याल आते ही, मुझे अपना आपा कैसा तो रंगीन लगने लगता है! लेकिन कहीं से अवश होने का एहसास भी जाग उठता है। मंसूर को क्या चूमना आता है? मैं तो यह सोच कर ही अवश होने लगती हूँ कि वह मुझे चूम रहा है। भाई ने भी ज़रूर तुलसी को चूमा होगा। तुलसी जानती है कि चुम्बन कैसा एहसास देता है। मुझे भी यह एहसास होने लगा है कि मंसूर मुझे कितनी गहराई से प्यार करता है। कैसी मोहक शैली में उसने कहा-आइ एम सॉरी! उसे सच ही अफ़सोस है। आखिर कितने लोग इतने आकर्षक अन्दाज़ में ‘आइ एम सॉरी' कह पाते हैं? उसका अंग्रेज़ी उच्चारण भी कितना मोहक है! सिर्फ़ जुबान से ही नहीं, उसने सच्चे मन से 'सॉरी' कहा है। मैंने गौर से देखा है, उसके चेहरे पर सचमुच अफ़सोस का भाव था। वह भाषा जुबान पर ही नहीं थी, आँखों में भी थी। धूप के चश्मे के पीछे छिपी आँखें साफ़ नज़र आ रही थीं, आँखों का वह दुख महसूस तो किया जा सकता था। उसने मेरे लिए गाड़ी का दरवाजा खोल दिया। मुझे अपने क़रीब बिठाया। इतने स्मार्ट तरीके से क्या सभी लोग गाड़ी चला सकते हैं? गाड़ी ज़रा भी धचके नहीं खा रही थी, अचानक ब्रेक कसने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी। रिक्शों की भीड़-भड़क्के वाली गन्दगी काट कर, मंसूर हौले-हौले उस जंजाल से बाहर निकलता जा रहा था। लग रहा था, गाड़ी की बॉडी उन सवको छू रही है, लेकिन बिल्कुल भी नहीं छू रही थी। मंसूर में अदभुत क्षमता है। अचानक दो मुसाफ़िर गाड़ी के सामने से गुज़रने लगे। वह उन दोनों को ‘मोटी बुद्धि' कह कर गाली भी दे सकता था। लेकिन, उसने कुछ नहीं किया, बल्कि उन दोनों को निश्चिन्त भाव से सड़क पार कर जाने दिया। हालाँकि अन्यान्य गाड़ियाँ तेज़ रफ़्तार से दौड़ती जा रही थीं। बस, इसी बात से मैं समझ गयी कि मंसूर के मन में इनसानों के प्रति कैसी असाधारण ममता है! खैर, जो लड़का गाता है, उसमें माया-ममता तो होती ही हैं। उसकी कोमल-सुकुमार वृत्तियों को इसी तरह मैं ज़रा-ज़रा करके आविष्कार करना चाहती हूँ। मंसूर अपने बारे में कुछ भी न बताये...कुछ भी नहीं बताने से आविष्कार का सुख नष्ट हो जाता है। मैं उसे ज़िन्दगी भर आविष्कार करना चाहती हूँ। उसके अद्भुत सुन्दर, उदार मन के क़रीब, इसी तरह थोड़ा-थोड़ा करके, हौले-हौले पहुँचना चाहती हूँ। मंसूर क्या जानता है कि मैं उसे कितना प्यार करती हूँ? क्या उसे अन्दाज़ा है कि मैं उस पर कितना भरोसा करती हूँ। भरोसा करती हूँ, इसीलिए तो उसके साथ चली आयी। वह मुझे चाहे जहाँ भी...जितनी भी दूर ले जाये, मैं जाऊँगी। मंसूर के अलावा मेरा और कोई गंतव्य नहीं है। अच्छा, मैं क्या अन्धी हूँ? हाँ! अन्धी ही हूँ! मंसूर के लिए अन्धी हो जाने में, मुझे ज़रा भी एतराज नहीं है। ऐसा भी तो होता है कि किसी-किसी के लिए इन्सान कुछ भी कर सकता है। वैसे मुझे थोड़ा-थोड़ा डर भी लगता है, मंसूर अगर अभी ही विवाह करना चाहे, तो क्या होगा? अब्बू तो विश्वविद्यालय पास किये बिना, अभी तो ब्याह का नाम भी उच्चारण नहीं करने देंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book