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निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...


यह ख़त नहीं था। इसे ख़त नहीं कहते। यह तो स्वर्ग से आयी हुई खुशखबरी है। मेरे लिए क्लास में मन लगाना मुश्किल हो आया। पिछले दरवाज़े से मैं चुपचाप बाहर निकल आयी। कॉरीडोर में अकेली खड़ी रही। उफ़! सब कुछ कितना भला लग रहा है! हरे-हरे पेड़ों पर इतनी ज़्यादा हरियाली, मैंने पहले कभी नहीं देखा। आसमान भी बेहद उदार और बेहद नज़दीक लगा। यूनिवर्सिटी की दीवारें, क्लासरूम, अपराजेय बांगला, छात्र-छात्राएँ, प्रोफ़ेसर-सभी बेहद अपने लगने लगे। रेलिंग पर टिक कर मैंने नीचे की तरफ़ झाँका। नीचे सड़क पर दो दरिद्र बच्चे खेल रहे थे। उस वक़्त वे दोनों भी मुझे निहायत अपने जान पड़े।

‘एइ, सुन!' मैंने आवाज़ दी!

उन दोनों ने ऊपर की ओर देखा।

'ले, पकड़!' मैंने अपने पर्स से दस का एक नोट निकाला और मोड़ कर नीचे की तरफ़ फेंक दिया।

रुपये पा कर, वे दोनों क्या खुश! रुपये उठा कर वे दौड़ पड़े। मैं भी बेहद खुश! आज मैं कोई क्लास नहीं करूँगी। हालाँकि इसके बाद ही अहमद की क्लास है। उनका लेक्चर मुझे पसन्द है। लेकिन, आज उनकी क्लास में भी जाने का मन नहीं हुआ। चलो, टी. एस. सी. चलें। चाय पीने के लिए मैं अकेली-अकेली ही कैंटीन में आ खड़ी हुई। अपने सामने अपनी उपार्जित आज़ादी रख कर, मैंने चाय की चुस्की ली और किताब के अन्दर रखी हुई चिट्ठी, छू-छू कर महसूस करती रही। अहा, मन में इतनी पुलक क्यों जाग उठी है? मेरे एहसासों में इतना सुख क्यों लहर उठा है? आज, टी. एस. सी. में जमघट लगाये लड़के-लड़कियों के प्रति, मैं मन-ही-मन बुदबुदा उठी-'सुखी रहो!'

मेरे पहचान के दो-एक छात्र-छात्रा मेरी बग़ल में आ बैठे।

'क्यों, क्लास नहीं है?' उन्होंने पूछा।

'है, मगर करूँगी नहीं-' मैंने हँस कर जवाब दिया।

मेरा मन तो ख़त में पड़ा हुआ था। मैंने वह ख़त दुबारा पढ़ा फिर पढ़ा। लिखावट ख़ासी सुन्दर है, काग़ज़ भी। पारुल को मैं अभी तक धन्यवाद नहीं दे पायी थी। मेरा मन हुआ, उसे गले लगा कर, चूम लूँ। मन-ही-मन, पारुल के गाल पर चुम्बन आँक कर मैं बुदबुदा उठी, 'पारुल, तू खुश रह। आज मेरे लिए भी बेहद सुखद दिन है।'

उसके बाद मैं जिससे भी मिली उससे कहा, 'आज मेरे लिए बेहद सुखद दिन है।'

नर्गिस नामक एक लड़की, जो मुझसे ऊँची क्लास में थी, उसने पूछा, 'क्यों शीला, यहाँ क्यों बैठी हो? मन उदास है?'

मैंने हँस कर जवाब दिया, 'नहीं, नर्गिस आपा, आज मेरा मूंड बहोत अच्छा है।'

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