उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
माँ ने भाई की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, 'बेटा फ़रहाद, अब तुलसी को ज़रा नमाज़, कलाम पढ़ना सिखाओ। अब से उसका नाम फ़रज़ाना सुलताना होगा। यह नाम मैंने पसन्द किया है।'
भाई सर झुकाये बैठे रहे।
'ठीक है, माँ, देखा जायेगा। भाई ने जवाब दिया।
इस बीच तुलसी चाय ले आयी।
'यहाँ तो आओ, बहू!' माँ ने उसे पास बुलाया।
भाई और तुलसी, दोनों को अगल-बग़ल खड़ा करके, माँ ने जाने क्या-क्या बुदबुदा कर, उनके चेहरे-आँखों पर फूंक मारी।
अन्त में उन्होंने हिदायत दी, 'बेटा, अब से तुम बहूरानी को फ़रज़ाना नाम से बुलाना-'
मैंने देखा, भाई सिर झुकाये खड़े रहे। फ़रज़ाना नाम से बुलाने के हुक्म के विरोध में उन्होंने जूं तक नहीं किया। तुलसी भी चुप! दोनों प्राणियों ने माँ का आशीर्वाद लिया।
काफ़ी देर खड़ी रह कर, मैं भी अपने कमरे में चली आयी।
मैंने सेवा-सेतु से कहा, 'भाभी को तुम लोग खूब-खूब प्यार करना। ठीक है? भाभी काफ़ी लक्ष्मी-बेटी है।'
सेतु-सेवा ने कहा, 'लेकिन, माँ ने तो कहा है कि भाई के कमरे में मत जाना।
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