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निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...



मेरा इन्तज़ार ख़त्म होने का वक़्त क़रीब आ पहुँचा।

शनिवार की सुबह, मैंने नये कपड़े पहने। हल्का-सा मेकअप किया। हल्की लिपस्टिक लगायी। कानों में, ड्रेस से मेल खाते हुए ईयरिंग! आँखों में काजल! भाई के कमरे से परफ्यूम ले कर, मैंने अपने कपड़ों और दुपट्टे पर छिड़क लिया। आईने के सामने खड़े होकर, बार-बार घूम-फिर कर अपने को निखरा-परखा। अपने को ही मैं ख़ासी खूबसूरत लगी। गुलाबी क़मीज, हल्की-नीली सलवार और आसमानी रंग का दुपट्टा! ख़ासी जंच रही थी मैं! मैंने बालों की चोटी बना ली।

मैंने तुलसी से पूछा, 'क्यों, कैसी लग रही हूँ, बता तो?'

'बे-हद, खूबसूरत!' इतना कह कर, उसने मेरे हाथ में एक खत सौंप कर, फुसफुसाहट भरी आवाज़ में कहा, 'जाते हुए, रास्ते में मृदुल'दा को दे देना।'

लेकिन मुझे उस घर में जाने की मनाही थी। अब्बू ने ही यह हुक्म जारी किया था। मृदुल'दा के हाथ में ख़त में ख़त थमाने के लिए, तुलसी मुझे उसी मृदुल'दा के घर में जाने को कह रही है? अगर कहीं, किसी को इस बात की खबर हो गयी, तो शर्तिया मैं मुसीबत में पड़ जाऊँगी। चलो, मुसीबत आयेगी तो आये, मैं जाऊँगी।

उन लोगों के घर का गेट खोल कर, मैं सीधे मृदुल'दा के कमरे में पहुंची। मृदुल'दा लेटे हुए थे। मुझे देख कर, वे हड़बड़ा कर उठ बैठे। उन्हें और ज़्यादा परेशान न करके-'आपका ख़त-' कहकर, मैंने वह ख़त उनके हाथ पर रखा और तेजी से वापस लौट आयी।

आज मुझे ढेरों काम है। यूनिवर्सिटी में भी आज मैं कोई क्लास नहीं करूँगी। आज मुझे मंसूर से मिलना है। आज वह मेरे लिए क्रिसेन्ट लेक के सामने खड़ा होगा, मेरा इन्तज़ार कर रहा होगा। मेरे लिए आज यूनिवर्सिटी की क्लास-क्लास, सब कुछ तुच्छ है। आज मेरे लिये एक ओर समूची दुनिया है, दूसरी ओर मंसूर! मैं मंसूर को ही चुनूँगी।

मंसूर का ख़त रातों को जाने कितनी ही बार पढ़ चुकी हूँ। हर रात, सोने जाने से पहले, ख़त को किताब में रख कर, किताब लिये-दिये मैं मसहरी में जा घुसती हूँ। देर रात तक ख़त के अक्षरों को छू-छूकर, मंसूर का प्यार परखती रही हूँ।

आज मैं एक भी क्लास नहीं करूँगी। बार-बार घड़ी देख रही हूँ। घड़ी में जब बारह बजेंगे, तभी मैं चल पढूंगी। मंसूर ने साढ़े बारह बजे का वक्त दिया है। आधे घण्टे में पहुँच जाया जायेगा। ग्यारह बजे से ही मेरे दिल की धक-धक तेज़ हो गयी। क्या करूँ? अगर अभी भी रवाना नहीं हुई और अगर साढ़े बारह बज गये और मंसूर मुझे वहाँ न पाकर, अगर लौट जाये, तो? इसके अलावा, अभी तो फूल भी ख़रीदना है।

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