उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
मैंने पूछा 'रवीन्द्रसंगीत नहीं है?'
'न्ना! लगता है तुम्हें कवि गुरु रवीन्द्रनाथ के गाने पसन्द हैं?'
मंसूर के इस सवाल ने मुझे विस्मित किया।
'क्यों? तुम्हें नहीं पसन्द हैं?' मैंने पूछा।
मंसूर हँस पड़ा, 'तुम्हारी जुबान से 'तुम' सम्बोधन बेहद प्यारा लग रहा है।'
गाड़ी गुलशन की तरफ़ बढ़ रही थी।
मैंने तो सोचा था कि बातों का कलकल झरना बहा दूंगी। मन में सैकड़ों बातें जमा थीं, लेकिन बोल नहीं पा रही थी। मैं अपनी डायरी साथ ले आयी थी। अगर वह देखना चाहे, तो उसे थमा दूंगी। वह भी देख ले, उसके बारे में सोचते-सोचते, कितने लम्बे-लम्बे दिन, कितनी लम्बी-लम्बी रातें गुज़ारी हैं मैंने। मेरे आकाश पर कुल एक सितारा है।
मंसूर को यह पता होना चाहिए कि वह कौन-सा सितारा है! उसका नाम क्या है! वह बात क्यों नहीं कर रहा है? उसके चेहरे की सारी हँसी, सारी मुस्कान मेरे लिए ही तो है। मंसूर सिर्फ मेरे लिये है। मेरा मंसूर! यह सब सोचते हुए, मेरे हाथ-पाँव, अंग-अंग अवश हो आये। लगता है, मैं बेहोश हो जाऊँगी। मंसूर मुझे प्यार करता है। मंसूर किसी दिन मुझे बेहद-बेहद प्यार करेगा...!
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