उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
गुलशन के एक मकान के सामने मंसूर ने गाड़ी रोक दी। अरे, हाँ, उसका मकान तो गुलशन में ही है? वह क्या अपने सभी घरवालों से मेरा परिचय करायेगा?
मैंने दरयाफ़्त किया, 'यह तुम्हारा मकान है?'
'ना-'
'आओ!' उसने बेहद शान्त आवाज़ में उतरने को कहा।
मैं उसके पीछे-पीछे चली आयी।
दो बड़े-बड़े कमरे पार करके, मैं एक छोटे-से कमरे में दाखिल हुई। बग़ल के कमरे में अंग्रेज़ी गीत बज रहा था। कई लोगों की आवाजें भी सुनाई दीं। एक बड़ा-सा बिस्तर, एक सोफा सेट, एक मेज़, क़रीब ही एक रिवॉल्विंग कुर्सी, फर्श पर लाल रंग की क़ालीन, दीवार पर दो तैल-चित्र-बस, उस कमरे में यही कुछ था, जहाँ मंसूर ने मुझे बैठने को कहा।
'यह मेरे दोस्त का घर है. समझीं?'
'ओ अच्छा !'
'तुम यहाँ आराम से तो हो?'
मैंने सिर हिला कर सहमति जतायी।
मंसूर बग़ल के कमरे में चला गया। गाने की आवाज़ धीमी हो गयी। करीब दस मिनट बाद, वह लौट आया। अपने पीछे-पीछे पाँच और नौजवान भी ले आया था।
उसने हँस कर कहा, 'ये सब मेरे दोस्त हैं। तुम्हें देखने के लिए उतावले बैठे थे।'
जो लड़के खड़े थे, उनके चेहरों पर सलज्ज मुस्कान!
'इसका नाम, लाबू है-'
सिर पर कच्चे-पक्के बाल, काले रंग के उस युवक ने सिर हिलाया।
'इसका नाम है, संगम!'
दुबले-पतले जबड़ों वाला नौजवान मुस्कराया।
'यह है, मुफ़ख्खर-'
गोरा-चिट्टा, देखने में सुदर्शन, मोटे-मुटल्ले नौजवान ने सिर हिलाया।
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