उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
'यह है, चिश्ती-'
बदन मासहीन, घुघराले बाल, आँखों पर चश्मा!
'इसका नाम, महमूद है।'
काफ़ी स्वस्थ देह, काला रंग। उसने हँस कर हैंडशेक के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया।
मैंने मंसूर की तरफ़ देखा।
उसने हँसकर बढ़ावा दिया, 'शर्म की क्या बात है? हाथ बढ़ा दो।'
इसके बावजूद मैं हाथ समेटे रही।
महमूद ने कहा, 'इट्स ओ के! नो प्रॉब्लम!'
मेरी अभ्यर्थना करके, एक-एक करके, वे पाँचों नौजवान बग़ल के कमरे में वापस लौट गये।
मैं पलकें झुकाये, नाखून खुरचती रही।
मंसूर क़रीब आ कर बैठ गया।
'क्या बात है? तुमने उन लोगों से कोई बात ही नहीं की। वे लोग क्या सोचेंगे, बताओ तो?'
उस वक़्त मुझे अपने पर ही बेतरह गुस्सा आने लगा। वाक़ई, मैं निरी गँवार और अनकल्चर्ड लड़की हूँ। अगर लड़के-लड़के हाथ मिला सकते हैं, तो लड़के-लड़की हाथ मिलाएँ, तो क्या हाथ में छाले पड़ जायेंगे? मुझे हाथ बढ़ा देना चाहिए था। मुझे उनसे थोड़ी-बहुत बात करनी चाहिए थी। लगता है, उन लोगों को मैं पसन्द नहीं आयी।
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