उपन्यास >> निमन्त्रण निमन्त्रणतसलीमा नसरीन
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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...
'चाय के अलावा तो इस घर में कुछ है भी नहीं! मुफ़ख्खर के अब्बा-अम्मी खुलना गये हुए हैं। मुफ़ख्खर ठहरा चरम बोहेमियन जीव! अपनी चाय वह खुद बना कर पी लेता है और एक लड़का है, जो खाना ख़रीद कर पहुंचा जाता है। तुम खाना पकाना जानती हो?'
'थोड़ा-थोड़ा!'
'किसी दिन पका कर खिलाओगी?'
मैं बेतरह लजा गयी।
'मुझे खाना पकाना नहीं आता। मेरा पकाया हुआ खाना भला खाया जा सकता है?' मैंने हँस कर जवाब दिया।
'हूँऽऽ! लेकिन खाऊँगा किसी दिन!'
मंसूर ने एक सिगरेट सुलगा ली। सिगरेट के धुएँ के छल्ले बना कर, उसने हवा में छोड़ दिये।
'पकड़ों तो यह छल्ले! पकड़ सकती हो?'
एक बात मैं बखूबी समझ गयी कि मंसूर के मन में कोई रूढ़ि नहीं है। मैं उसकी प्रेमिका हूँ, उसकी निजी सम्पत्ति नहीं हूँ-वह इस बात पर विश्वास करता है, इसीलिए तो मुझे उसने अपने दोस्तों से भी बातचीत करने को कहा। मैंने हाथ नहीं मिलाया, इस बारे में शिकायत भी की। खैर, धुएँ के छल्ले बना कर, बच्चों से खेला जाता है, मुझ जैसी सयानी लड़की से नहीं, मंसूर मुझे अपना वही शैशव देना चाहता है। शायद वही चिर-आकांक्षित किशोर उम्र! मैं जो-जो चाहती हूँ, वह मुझे इतना ज़्यादा मिल रहा है। यह देख कर मुझे बेहद भला लगा। प्यार की शुरुआत में ही बदन पर हाथ लगाना-वगाना बेहद फूहड़ बात है। मैंने कहानी-उपन्यासों में प्रेम-प्यार के बारे में काफ़ी पढ़ा है। ऐसा भी वक़्त गुज़रा है, जब सारी-सारी रात शरतचन्द्र को पढ़-पढ़ कर, खूब-खूब रोयी हूँ। प्यार बिल्कुल अलग चीज़ है। प्यार में कोई स्वार्थ और देह नहीं जुड़ा होना चाहिए।
मंसूर मेरे सपनों का वही पुरुष था, जिसके लिए शायद मेरा जन्म हुआ है। जिसकी वजह से ही, मेरा यह जीवन सार्थक है।
मंसूर ने अचानक अपनी घड़ी पर नज़र डाली और हड़बड़ा कर, कुर्सी छोड़ कर उठ खड़ा हुआ।
'अचानक एक ज़रूरी काम आ पड़ा है। अभी, इसी वक़्त मुझे 'साभार' जाना होगा। वहाँ हमारे कारखाने के श्रमिक-कर्मचारियों में कोई फ़साद हो गया है। वैसे ये सब झमेले, तुम नहीं समझोगी। उसके वाद, मुझे एयरपोर्ट जाना है, कुछेक विदेशी सामान आने वाला है।'
मंसूर ड्रॉइंगरूम की तरफ़ चला गया, जहाँ उसके दोस्त बैठे-बैठे गपशप कर रहे थे।
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