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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक

भक्त बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 882
आईएसबीएन :81-293-0517-8

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भगवान् की महिमा का वर्णन...

बालक धन्नाके आनन्दकी सीमा नहीं है, वह अपने भगवान्को कभी मस्तकपर रखते हैं, कभी छातीसे लगाये घूमते हैं। धन्नाकी पूजाका ठाट बढ़ चला। धन्नाने तमाम खेल-कूद छोड़ दिया, वह रात रहते ही उठकर स्नान करने लगे। तदनन्तर भगवान्को स्नान कराकर धन्नाजी चन्दनके बदलेमें नयी मिट्टी लाते, उससे भगवान्के तिलक करते। तुलसीदलकी जगह किसी भी वृक्षके हरे पत्ते भगवान्पर चढ़ा देते। बड़े प्रेमसे पूजा करके भक्तिभरे हृदयसे साष्टाङ्ग दण्डवत् करते। माता जब खानेको बाजरेकी रोटी देती, तब धन्नाजी उस रोटीको भगवान्के आगे रखकर आँखें मूंद लेते। बीच-बीचमें आँखें खोलकर यह देखते जाते कि अभी भगवान्ने भोग लगाना शुरू किया या नहीं, फिर थोड़ी देरके लिये आँखें बंद कर लेते। इस तरह बैठे-बैठे जब बहुत देर हो जाती, तब वह देखते कि भगवान्ने अबतक रोटी नहीं खायी, तब उन्हें बहुत दुःख होता और वह बारम्बार हाथ जोड़कर बालकोचित सरल स्वभाव और सरल वाणीसे अनेक प्रकार विनयानुरोध करते। इसपर भी जब वह देखते कि भगवान् किसी प्रकार भी भोग नहीं लगाते, तब वह निराश होकर यह समझते कि भगवान् मुझसे नाराज हैं, इसीसे मेरी पूजा और भोग स्वीकार नहीं करते, परन्तु भगवान् भूखे रहें और मैं खाऊँ, यह कैसे हो सकता है। यह विचारकर वह रोटी जंगलमें फेंक आते और भूखे रह जाते। दूसरे दिन फिर इसी तरह करते। इस प्रकार जब कई दिन अन्न-जल बिना बीत गये; तब धन्नाजीका बल एकदम घट गया, शरीर सूख गया, चलने-फिरनेकी शक्ति जाती रही। शारीरिक क्लेशकी उन्हें इतनी परवा नहीं थी जितना उन्हें इस बातका दुःख था कि ठाकुरजी मेरी रोटी नहीं खाते। इसी मार्मिक दुःखके कारण उनकी आँखोंसे सर्वदा आँसुओंकी धारा बहने लगी।

अब तो भगवान्का आसन हिला, सरल बालककी बहुत कठिन परीक्षा हो गयी, भक्तके दुःखसे द्रवित होकर भगवान् प्रकट हुए। 'अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययम्' सच्चिदानन्दघन जो योग-समाधि और ज्ञाननिष्ठासे भी दुर्लभ हैं, वह परब्रह्म नारायण धन्नाजीके प्रेमाकर्षणसे अपूर्व मनमोहिनी मूर्ति धारणकर भक्तके सामने प्रकट हुए और उस ‘प्रयतात्मनः' प्रेमी भक्तकी ‘भक्त्युपहृतम्' रोटी बड़े प्रेमसे भोग लगाने लगे। जब आधी रोटी खा चुके तब महाभाग धन्नाने उनका हाथ पकड़ लिया और कहने लगे कि ‘ठाकुरजी! इतने दिनोंतक तो आये नहीं, मुझे भूखों मारा, आज आये तब अकेले ही सारी रोटी लगे उड़ाने, तुम्हीं सब खा जाओगे, तब क्या आज भी मैं भूखों मरूँगा, क्या मुझको जरा-सा भी नहीं दोगे?'

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    अनुक्रम

  1. गोविन्द
  2. मोहन
  3. धन्ना जाट
  4. चन्द्रहास
  5. सुधन्वा

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