गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक भक्त बालकहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान् की महिमा का वर्णन...
कुन्तलपुरके अधीन चन्दनपुर नामक एक छोटी-सी रियासत थी। वहाँके राजाका नाम था कुलिन्दक। राज्य छोटा होनेपर भी धर्म और धन-धान्यसे पूर्ण था, अभाव था तो एक यही कि राजा पुत्रहीन था। प्रभुकी मायासे राजा कुलिन्दक किसी कार्यवश उसी वनसे जा रहा था, जिसमें चन्द्रहासको घातक छोड़ गया था। मधुर कीर्तन-ध्वनि सुनकर राजा उसके पास गया और बालककी मोहिनी मूर्ति देखते ही वह मुग्ध हो गया। राजाने लपककर बालकको गोदमें उठा लिया और अङ्गकी धूल झाड़कर उससे माता-पिताके नाम-धाम पूछने लगा। चन्द्रहासने कहा-
‘मम मातापिताकृष्णस्तेनाहं परिपालितः।'
माता-पिता श्रीकृष्ण हमारे उनसे ही मैं पालित हूँ।
राजाने सोचा, हरिने कृपाकर मेरे लिये ही इस वैष्णव देवशिशुको यहाँ भेजा है। उसने चन्द्रहासको छातीसे लगाकर घोड़ेपर चढ़ा लिया और घर लौट गया। रानीकी गोद भर गयी! राजाने दत्तक-ग्रहणकी घोषणा कर दी, नगरभरमें आनन्द छा गया!
चन्द्रहासने पहले तो कुछ पढ़ना नहीं चाहा; गुरु जब पढ़ाते तभी वह कहता कि मेरी जीभ हरिनामके सिवा और कुछ उच्चारण ही नहीं कर सकती! परंतु यज्ञोपवीत ग्रहण करनेके अनन्तर थोड़े ही कालमें वह चारों वेद और सभी विद्याओं में निपुण हो गया। अपने सद्गुणोंसे वह शीघ्र ही सारे राजपरिवार और प्रजाका जीवनाधार बन गया। राज्यमें धार्मिकता छा गयी। हरिगुण-गानसे छोटी-सी रियासत पूर्ण हो। गयी। घर-घर हरि-चर्चा होने लगी, सभी लोग एकादशीका व्रत और भगवान्की उपासना करने लगे। चन्द्रहासने प्रत्येक पाठशालामें हरि-गुण-गान अनिवार्य कर दिया। उसका सिद्धान्त था-
यस्मिञ्छास्त्रे पुराणे च हरिनाम न दृश्यते।
श्रोतव्यं नैव तच्छास्त्रं यदि ब्रह्मा स्वयं वदेत्॥
‘जिस शास्त्र-पुराणमें हरिनाम न हो वह ब्रह्माद्वारा रचित होनेपर भी श्रवण करनेयोग्य नहीं है।'
चन्दनपुर-रियासतकी ओरसे कुन्तलपुरको वार्षिक दस हजार स्वर्णमुद्राएँ कर-स्वरूप दी जाती थीं। चन्द्रहासने उन स्वर्णमुद्राओंके साथ ही और भी बहुत-सा धन, जो शत्रु-राज्योंपर विजय करके उसने प्राप्त किया था, कुन्तलपुर भेज दिया।
धृष्टबुद्धिने सुना, चन्दनपुर-राज्य धन-ऐश्वर्यसे पूर्ण हो गया है, वीर युवराजने बड़े-बड़े राज्योंपर विजय पायी है, वहाँकी प्रजा सब प्रकारसे सुखी है, सारी रियासतमें हरि-ध्वनि पूँज रही है। तब उसकी इच्छा हुई कि एक बार चलकर वहाँकी व्यवस्था देखनी चाहिये। धृष्टबुद्धि कुन्तलपुरसे चलकर शीघ्र ही चन्दनपुर आ पहुँचा।
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