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गीता प्रेस, गोरखपुर >> भक्त बालक

भक्त बालक

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :49
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 882
आईएसबीएन :81-293-0517-8

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भगवान् की महिमा का वर्णन...

इसीलिये श्रीहरिने उनका गुणगान करते हुए कहा है कि-

सालोक्यसार्टिसामीप्यसारूप्यैकत्वमप्युत।
दीयमानं न गृह्णन्ति विना मत्सेवनं जनाः॥
(श्रीमद्भा० ३। २९। १३)

‘मुझमें अनुरक्त भक्तगण मेरी सेवाको छोड़कर सालोक्य, सार्ष्टि, सामीप्य, सारूप्य और एकत्व-इन पाँच प्रकारकी मुक्तियोंको मेरे देनेपर भी ग्रहण नहीं करते। अतएव जबतक आप श्रीकृष्णकी अनुपम रूप-माधुरीको नहीं देखते तभीतक मुक्तिकी चाह करते हैं।

इसके सिवा पुरुषोंकी भाँति स्त्री पर-पुरुषोंके पास नहीं जाया करती। नहीं तो आपके चले जानेपर यदि मैं 'मोक्ष' के प्रति चली जाऊँ तो आप क्या कर सकते हैं? परन्तु विवेक नामक अदृश्य पुत्र निरन्तर मेरी रक्षा करता है? जिन स्त्रियोंके विवेक नामक पुत्र नहीं है, वे ही पर-पुरुषके पास जाया करती हैं। मुझे लड़कपनसे ही विवेक-पुत्र प्राप्त है, इसीसे हे आर्य! मुझे मोक्षके पास जानेमें संकोच हो रहा है।

पत्नीके मधुर, मार्मिक वचनोंका उत्तर देते हुए सुधन्वाने कहा-“हे शोभने! जब मैं श्रीकृष्णके साथ लड़नेको जा रहा हूँ तो तुम्हें मोक्षके प्रति जानेसे कैसे रोक सकता हूँ? तुम भी मेरे उत्तम वस्त्र, स्वर्ण-रत्नोंके समूह और इस शरीर तथा चित्तको त्यागकर चली जाओ। मैं तो यह पहलेसे ही जानता था कि तुम ‘मोक्ष' के प्रति आसक्त हो। इसीसे तो मैंने प्रत्यक्षमें विवेक-पुत्रके उत्पन्न करनेकी चेष्टा नहीं की?'

प्रभावतीने कहा-‘प्राणनाथ! आप अर्जुनसे लड़ने जा रहे हैं; पर मेरे हृदयमें विवेक नामक जो पुत्र है, मैं उसे नेत्रोंसे देखना चाहती हूँ। मैं चाहती हूं कि आपके चले जानेपर अञ्जलि देनेवाला सुपुत्र रहे।

सुधन्वा-‘श्रीकृष्ण और अर्जुनको जीतकर भी तो मैं तुम्हारे पास आ सकता हूँ।

प्रभावती-‘नहीं नाथ! जिसने श्रीकृष्णके दर्शन कर लिये हैं, वह फिर संसारमें कभी लौटकर नहीं आता।'

सुधन्वा-‘यदि तुम्हारा यही निश्चय है कि श्रीकृष्ण-दर्शन करनेपर पुनरागम नहीं होता तो फिर व्यर्थ ही अञ्जलि देनेवाले पुत्रकी इच्छा करती हो।'

प्रभावती-‘मेरी इच्छा भी तो आपको पूर्ण करनी चाहिये?'

सुधन्वा-‘कल्याणी! क्या तुम कठिन शासनकर्ता महाराजको नहीं जानती। तनिक-सी देर होनेपर ही तप्त तेलका कड़ाह तैयार है। सारे वीर चले गये हैं, एक मैं ही शेष हूँ।'

अनेक प्रकारसे प्रश्नोत्तर हुए। अन्तमें इस धर्म-संकटमें पतिव्रता प्रभावतीकी विजय हुई। सुधन्वा फिरसे स्नान-प्राणायाम कर युद्धके लिये रथपर सवार होकर चले।

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    अनुक्रम

  1. गोविन्द
  2. मोहन
  3. धन्ना जाट
  4. चन्द्रहास
  5. सुधन्वा

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