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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
इसलिए हमें यह मानने के लिए तैयार रहना चाहिए कि स्वप्नों में भीतरी उद्दीपक
वही कार्य कर सकते हैं जो बाहरी उद्दीपक। बदकिस्मती से इस तथ्य के महत्त्व पर
भी वे ही एतराज़ किए जा सकते हैं। बहुत सारे उदाहरणों में, कायिक उद्दीपनों
के कारण, स्वप्न होने की बात अनिश्चित ही रहेगी या प्रमाणित नहीं की जा
सकेगी। कुछ स्वप्नों से ही यह सन्देह पैदा होता है, सबसे नहीं, कि भीतरी
अंगों से आने वाले उद्दीपनों का उन स्वप्नों के पैदा होने से कुछ सम्बन्ध है;
और अन्तिम बात यह है कि जैसे बाहरी संवेदनात्मक उद्दीपन से स्वप्न पर होने
वाली उसकी सीधी प्रतिक्रिया की ही व्याख्या होती है, उसके और किसी अंश की
नहीं, वैसे ही भीतरी कायिक, उद्दीपन से भी और किसी बात की व्याख्या नहीं
होती। स्वप्न के शेष सारे हिस्से के उद्गम का कुछ भी पता नहीं चलता।
पर अब हमें स्वप्न-जीवन की एक ऐसी विशेषता की ओर ध्यान देना है जो इन
उद्दीपनों की क्रिया पर विचार करते समय सामने आती है। स्वप्न उद्दीपन को फिर
वैसे का वैसा पेश नहीं कर देता, बल्कि उसे स्पष्ट करता है, बदलता है, एक
सिलसिले में जमा देता है, या उसके स्थान पर कोई और चीज़ ला रखता है।
स्वप्न-तन्त्र का यह पहलू हमें अवश्य दिलचस्प लगेगा, क्योकि सम्भव है कि यह
हमें स्वप्न के सच्चे स्वरूप के अधिक नज़दीक पहुंचा दे। मनुष्य के उत्पादन का
क्षेत्र ज़रूरी तौर से उस वातावरण तक सीमित नहीं होता, जिसमें वह किया जाता
है। उदाहरण के लिए, शेक्सपियर का 'मैकबेथ' उस राजा के गद्दी पर बैठने पर एक
सामयिक नाटक के रूप में लिखा गया था, जिसने तीन राज्यों के राजमुकुटों को एक
साथ धारण किया था, पर क्या यह ऐतिहासिक अवसर नाटक की सारी कथावस्तु में
व्यापक है, या उसकी भव्यता और रहस्यमयता की व्याख्या करता है? शायद इसी तरह,
सोने वाले में क्रिया कर रहे बाहरी और भीतरी उद्दीपन स्वप्न के अवसर-मात्र
हैं और उनके हमें इसके सच्चे स्वरूप का दर्शन नहीं होता।
सब स्वप्नों में मिलने वाली दूसरी बात, अर्थात् मानसिक जीवन में उनकी विशेषता
या विलक्षणता को, एक ओर तो, पकड़ना बड़ा कठिन है और दूसरी ओर, इससे आगे
जांच-पड़ताल के लिए कोई रास्ता मिलता नहीं मालूम होता। स्वप्नों में हमारे
अधिकतर अनुभव नेत्रगोचर प्रतिबिम्बों के रूप होते हैं। क्या उद्दीपकों से
इनकी व्याख्या की जा सकती है? क्या वास्तव में हम उद्दीपकों को ही अनुभव करते
हैं? यदि ऐसा है तो अनुभव नेत्रगोचर अर्थात् आंख से ग्रहण किया जाने वाला
क्यों होता है? जबकि ऐसा बहुत ही कम उदाहरणों में हो सकता है कि हमारी आंख पर
किसी उद्दीपक ने क्रिया की हो? अथवा, क्या यह सिद्ध किया जा सकता है कि जब हम
बोलने का स्वप्न देखते हैं तब कोई बातचीत या बातचीत से मिलती-जुलती ध्वनि
हमारे कानों में पड़ी होती है? मैं बिना किसी दुविधा के इसे असम्भव कहता हूँ।
अब, यदि हम स्वप्नों की सामान्य विशेषताओं से विचार शुरू करके और आगे नहीं
बढ़ सकते, तो आइए, अब उनकी भिन्नताओं पर विचार करने की कोशिश करें। प्रायः
स्वप्न अर्थहीन, मिले-जुले, खिचड़ी-से और बेतुके होते हैं, पर फिर भी कुछ
स्वप्न समझदारी वाले, संयत और तर्कसंगत होते हैं। यह देखना चाहिए कि ये
समझदारी वाले स्वप्न उन स्वप्नों को स्पष्ट करने में हमारी कुछ सहायता कर
सकते हैं या नहीं जो अर्थहीन हैं। मैं आपको सबसे ताज़ा तर्कसंगत स्वप्न
सुनाऊंगा, जो मुझे एक नौजवान ने सुनाया है, 'मैं कार्टनरस्ट्रासे में घूमने
गया और वहां क्ष महाशय से मिला। कुछ देर उसका साथ देने के बाद मैं एक चायघर
में गया। दो महिलाएं और एक सज्जन और मेरी मेज़ पर बैठ गए। पहले मैं परेशान
हुआ, और मैंने उनकी ओर न देखा, पर बाद में मैंने उनकी ओर नज़र डाली और देखा
वे बहुत अच्छे थे।' इस पर स्वप्न देखने वाले ने यह बताया कि पिछली शाम को वह
सचमुच कार्टनरस्ट्रासे में, जो उसका आमतौर से जाने का रास्ता है, घूम रहा था,
और वहां वह क्ष महाशय से मिला था। स्वप्न का दसरा हिस्सा किसी बात का सीधा
स्मरण नहीं था, पर कुछ समय पहले की एक घटना से थोड़ा मिलता-जुलता था। अब एक
और सादा स्वप्न देखिए, जो एक महिला का है। उसका पति उससे कहता है, 'क्या
तुम्हारी राय में हमें पियानो की 'ट्यूनिंग' (समस्वरण) नहीं करा लेना चाहिए?'
और वह उत्तर देती है, 'बिलकुल बेकार है, क्योंकि चाभियों1 पर नया चमड़ा लगाना
ज़रूरी है।' यह स्वप्न उस बातचीत की आवृत्ति है, जो उसमें और उसके पति में
स्वप्न से पहले दिन लगभग इन्हीं शब्दों में हुई थी। तो इन दो भावनाहीन
स्वप्नों से हमें क्या पता चलता है? सिर्फ इतना ही, कि उनमें दैनिक जीवन की
या उससे सम्बन्धित बातों की स्मृतियां होती हैं। यदि यह बात निरपवाद रूप से
सब स्वप्नों के बारे में कही जा सकती, तो वह भी कुछ महत्त्व की होती, पर उसका
कोई सवाल ही नहीं है। यह विशेषता भी बहुत ही थोड़े स्वप्नों में होती है।
अधिकतर स्वप्नों में पहले दिन की बातों से कोई सम्बन्ध नहीं होता, और अर्थहीन
तथा बेतुके स्वप्नों पर भी इससे कोई रोशनी नहीं पड़ती। हम इतना ही जानते हैं
कि हमारे सामने एक नई समस्या आ गई है। इतना ही नहीं कि हम स्वप्न का अर्थ
जानना चाहते हैं, बल्कि यदि यह स्पष्ट हो, जैसा कि हमारे उदाहरणों में है, तो
हम यह भी जानना चाहते हैं कि जो बात हमें मालूम है और हाल में ही हमारे साथ
हुई है, उसे हम किस कारण और किस उद्देश्य से स्वप्न में दोहराते हैं।
मैं समझता हूं कि यहां तक हमने जिस तरह की कोशिशें की हैं, उन्हें आगे जारी
रखने से जैसे मैं ऊब गया हूं वैसे ही आप भी ऊब गए होंगे। इससे यही प्रकट होता
है कि अधिक-से-अधिक दिलचस्पी होने पर भी हम किसी समस्या को तब तक हल नहीं कर
सकते, जब तक हमारे सामने समाधान पर पहुंचने के लिए अपनाए जाने वाले रास्ते की
भी कुछ कल्पना न हो। अब तक हमें वह रास्ता नहीं मिला। प्रायोगिक मनोविज्ञान
ने इस दिशा में सिर्फ इतना ही किया है कि स्वप्न के पैदा होने में उद्दीपनों
के महत्त्व के विषय में कुछ बहुत कीमती जानकारी दी। दर्शन से हम कुछ आशा नहीं
कर सकते, वह तो बड़प्पन दिखाता हुआ यही बात दोहरा सकता है कि हमारा उद्देश्य
बौद्धिक दृष्टि से तिरस्कार योग्य है, और रहस्यमय विज्ञानों से हम कोई बात
लेना ही नहीं चाहते। इतिहास और जनता के फैसले से हमें पता चलता है कि
स्वप्नों का अर्थ और महत्त्व होता है, और वे भविष्य के सूचक होते हैं। पर इस
बात को स्वीकार करना कठिन है, और निश्चित ही, इसे प्रमाणित नहीं किया जा
सकता। तो इस प्रकार, हमारे पहले प्रयत्न पूरी तरह विफल हो जाते हैं।
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1. Hammers
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