विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
पर अचानक ही ऐसी दिशा से एक संकेत मिलता है जिसकी ओर हमने आज तक ध्यान नहीं
दिया। बोलचाल की भाषा, जो निश्चित रूप से अचानक नहीं बन गई है, बल्कि मानो
प्राचीन ज्ञान का खजाना है पर इस बात को बहत तल न देना चाहिए-हमारी भाषा एक
ऐसी चीज़ का अस्तित्व मानती है, जिसे हमने 'दिवास्वप्नों' का नाम दे रखा है;
यह नाम भी विचित्र ही है। दिवास्वप्न कल्पना होते हैं (कल्पना से उत्पन्न
होते हैं)। वे आमतौर से होते रहते हैं, और रोगियों की तरह स्वस्थ व्यक्तियों
में भी दिखाई देते हैं, और उनका अध्ययन भी माध्यम (पात्र) द्वारा स्वयं आसानी
से किया जा सकता है। इन कल्पना से उत्पन्न सृष्टियों के बारे में सबसे
विचित्र बात यह है कि उन्हें 'दिवास्वप्नों' का नाम दिया गया है, क्योंकि
उनमें स्वप्न की दो व्यापक विशेषताओं में से कोई भी बात नहीं है। उनके नाम से
ही स्पष्ट है कि नींद से उनका कोई सम्बन्ध नहीं; और जहां तक दूसरी व्यापक
विशेषता का सम्बन्ध है, उनमें कोई अनुभव या मतिभ्रम भी नहीं होता; सिर्फ इतना
होता है कि हम कुछ बातों की कल्पना कर लेते हैं। हम जानते हैं कि वे कल्पना
से पैदा होते हैं, कि हम देख नहीं रहे, बल्कि सोच रहे हैं। ये दिवास्वप्न
वयःसन्धि, अर्थात् जवानी के शुरू में या बचपन के अन्त में दिखाई देते हैं, और
पक्की उम्र होने तक बने रहते हैं। पक्की उम्र में या तो वे छूट जाते हैं या
जीवन-भर साथ रहते हैं। इन कल्पनासृष्टियों की वस्तु एक बहुत सूक्ष्म प्रेरक
कारण से उत्पन्न होती है। ऐसे दृश्य या घटनाएं इनकी प्रेरक होती हैं जो या तो
आकांक्षा की अहंकारमूलक लालसाओं को, या सत्ता की लिप्सा को, अथवा पात्र की
कामुक इच्छाओं को तृप्त करती हैं। नौजवानों में आकांक्षा से पूर्ण कल्पनाएं
मुख्य होती हैं; स्त्रियों में, जिनकी आकांक्षा प्रेम-सम्बन्धी सफलता पर
केन्द्रित होती है, कामुक कल्पनाएं मुख्य होती हैं; पर पुरुषों में भी कामुक
भावना प्रायः छिपी हुई देखी जा सकती है। वास्तव में, उनके सारे वीरता के
कार्यों और सफलताओं का एकमात्र आशय स्त्रियों का हृदय जीतना होता है। अन्य
दृष्टियों से इन दिवास्वप्नों में बड़ी भिन्नता होती है, और उनका अन्त भी
भिन्नभिन्न प्रकार से होता है। या तो वे सब कुछ समय बाद छूट जाते हैं, और
उनके स्थान पर कोई नया स्वप्न आ जाता है; अथवा वे बने रहते हैं, और उनके
चारों ओर लम्बी-लम्बी कहानियां लिपट जाती हैं और उन्हें जीवन की बदलती हुई
परिस्थितियों के अनुकूल बना लिया जाता है। वे ज़माने के साथ आगे बढ़ते हैं,
और उन पर मानो डेट-स्टाम्प या तारीख की मोहरें लगती जाती हैं, जिनसे नई-नई
स्थिति के असर का पता चलता है। वे काव्य-रचना का उपादान बन जाते हैं, क्योंकि
लेखक अपने दिवास्वप्नों का रूप बदलकर या उन्हें छोटा-बड़ा करके उनमें से ही
वे स्थितियां पैदा करता है जो वह अपनी कहानियों, उपन्यासों और नाटकों के रूप
में पेश करता है, पर दिवास्वप्न का नायक सदा माध्यम (पात्र) स्वयं होता है-वह
या तो प्रत्यक्ष रूप में कल्पित होता है, और या किसी और के साथ प्रायः एकरूप
हो जाता है।
शायद दिवास्वप्नों का यह नाम पड़ने का कारण उनका यथार्थता से स्वप्न जैसा
सम्बन्ध होता है। इससे यह बात सूचित होती है कि उनकी वस्तु को उसी तरह यथार्थ
नहीं माना जा सकता, जिस तरह स्वप्न की वस्तु को; पर यह भी सम्भव है कि उन्हें
स्वप्न की किसी ऐसी मानसिक विशेषता के कारण 'स्वप्न' शब्द से पुकारा गया हो
जिसे हम अभी नहीं जानते, पर जिसे खोजने की हम कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, यह
भी हो सकता है कि नाम के सादृश्य को हमाग महत्त्वपूर्ण समझना बिलकुल गलत हो।
इस प्रश्न का उत्तर बाद में ही दिया जा सकता है।
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1. Hallucination
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