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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
1. सिर्फ दो छोटे चित्रों वाला स्वप्न; स्वप्नद्रष्टा का चाचा सिगरेट पी रहा
था, हालांकि उस दिन शनिवार था-एक स्त्री स्वप्नद्रष्टा को लाड़-प्यार कर रही
थी जैसे वह उसी का बच्चा हो।
पहले चित्र के विषय में स्वप्नद्रष्टा (एक यहूदी) ने कहा कि मेरा चाचा बड़ा
धर्मात्मा आदमी है, जिसने पवित्र दिनों में सिगरेट पीने जैसा पाप का काम न
कभी किया है और न कभी करेगा। दूसरे चित्र वाली स्त्री के साथ एकमात्र साहचर्य
स्वप्नद्रष्टा की माता का था। ये दोनों चित्र या विचार अवश्य एक-दूसरे से
सम्बन्धित होने चाहिए, पर किस रूप में? क्योंकि उसने साफ तौर से इस बात का
खण्डन किया कि उसका चाचा स्वप्न का कार्य कभी सचमुच करेगा, इसलिए शर्तसूचक
'यदि' शब्द लगा देने से इसका अर्थ सूझने लगेगा, 'यदि मेरा चाचा, जो इतना
धार्मिक आदमी है, शनिवार को सिगरेट पीने लगे तो मुझे भी मेरी माता लाड़-प्यार
कर सकती है।' स्पष्ट है कि इसका अर्थ यह हुआ कि माता द्वारा लाड़ किए जाने का
उतना ही सख्त निषेध था जितना धर्मात्मा यहूदी के लिए पवित्र दिन पर सिगरेट
पीने का। आपको मेरा यह कथन याद होगा कि स्वप्न-विचारों के सब आपसी सम्बन्ध
लोप हो जाते हैं, विचार टूटकर मूल वस्तु के रूप में आ जाते हैं, और निर्वचन
करते हुए हमारा कार्य है कि जो सम्बन्ध लुप्त हो गए हैं, उन्हें फिर से
जोड़ें।
2. स्वप्नों के विषय में मैंने जो कुछ लिखा है उसके कारण मैं इस विषय में आम
जनता का सलाहकार-सा हो गया हूं और बहुत वर्षों से मेरे पास बड़े दूर-दूर के
स्थानों से पत्र आते हैं, जिनमें स्वप्न लिखे रहते हैं, या मेरी राय पूछी
होती है। स्वभावतः मैं उन लोगों का आभारी हूं जिन्होंने मुझे अपने स्वप्नों
के साथ इतनी काफी सामग्री भी दी कि उनका निर्वचन हो सके या जिन्होंने स्वयं
निर्वचन पेश किए हैं। म्युनिख के एक मेडिकल विद्यार्थी का 1910 का निम्नलिखित
स्वप्न इसी तरह का है, जिसे मैं आपको सुना रहा हूं, इसलिए कि आपकी यह समझ में
आ जाए कि साधारणतया तब तक स्वप्न को समझना कितना कठिन है जब तक स्वप्नद्रष्टा
स्वयं इसके बारे में जो कुछ बता सकता है, वह न बता दे। कारण कि मुझे शक है कि
अपने मन में आप सोच रहे हैं कि प्रतीकों का अनुवाद कर देना निर्वचन का आदर्श
तरीका है और मुक्त साहचर्य की विधि आप छोड़ देना पसन्द करेंगे, इसलिए ऐसी
घातक गलती को मैं आपके मन से निकाल देना चाहता हूं।
13 जुलाई, 1911 सवेरे के समय मुझे यह स्वप्न आया : मैं टीविनजेन की एक गली
में साइकल चलाता जा रहा था कि एक भूरा कुत्ता मेरे पीछे दौड़ता हुआ आया और
उसने मेरी एक एड़ी पकड़ ली। मैं कुछ दूर और चलकर साइकल से उतर गया और एक
सीढ़ी पर बैठकर कुत्ते को भगाने लगा, क्योंकि उसने अपने दांत मेरी एड़ी में
अच्छी तरह गड़ा दिए थे। (कुत्ते के मुझे काटने से और इस सारे दृश्य से मुझे
कुछ बुरा नहीं मालूम हुआ।) दो अधिक उम्र की महिलाएं सामने बैठी हंसती हुई
मेरी ओर देख रही थीं। इसके बाद मैं जाग उठा, और जैसा कि पहले बहुत बार हुआ
है, जाग जाने पर भी सारा स्वप्न मुझे स्पष्ट याद था।
इस उदाहरण में प्रतीकात्मकता से हमें कोई लाभ नहीं हो सकता, और स्वप्नद्रष्टा
हमें स्वयं आगे बताता है : 'हाल में ही सड़क पर एक लड़की को देखनेमात्र से
मेरा उससे प्रेम हो गया था, पर मेरे पास उससे परिचय करने का कोई उपाय नहीं
था। मैं उसके कुत्ते को माध्यम बनाकर उससे आसानी से परिचय प्राप्त कर सकता
था, क्योंकि मैं स्वयं कुत्तों का बड़ा प्रेमी हूं और यह देखकर ही उसकी ओर
आकृष्ट हुआ था कि वह भी कुत्तों से प्रेम करती है।' आगे वह कहता है : 'मैंने
कई बार लड़ते हुए कुत्तों को बड़ी चतुराई से अलग किया है, जिससे देखने वाले
चकित हो जाते थे।' अब हमें पता चलता है कि जो लड़की उसकी नज़रों में चढ़ी है,
वह सदा इसी कुत्ते के साथ घूमती दिखाई देती थी, पर व्यक्त स्वप्न में वह नहीं
है; सिर्फ उसके साहचर्य में रहने वाला कुत्ता है। शायद वे बुजुर्ग महिलाएं,
जो उसकी ओर देखकर हंस रही थीं, उस लड़की को निरूपित करती हैं, पर वह और जो
कुछ बताता है, उससे वह बात स्पष्ट नहीं होती। वह स्वप्न में साइकल चला रहा था
यह बात उस स्थिति को ही सूचित करती है, जो उसे याद थी, क्योंकि वह कुत्ते के
साथ उस लड़की से जब मिला, तब वह साइकल ही चला रहा था।
3. जब किसी आदमी का कोई प्रिय व्यक्ति मर जाता है, तब काफी दिनों बाद उसे एक
विशेष तरह का स्वप्न आता है, जिसमें उसके इस ज्ञान का कि वह व्यक्ति मर चुका
है, और उसकी उसे पुनः जीवित देखने की इच्छा का बड़ा अजीब मिश्रण हो जाता है।
कभी-कभी मृत व्यक्ति स्वप्न में मृत और साथ ही जीवित दिखाई देता है-जीवित
इसलिए क्योंकि वह यह नहीं जानता कि वह मर चुका है; मानो वह तव ही सचमुच मरेगा
जब वह इस बात को जान लेगा। कभी-कभी वह आधा मरा और आधा जिन्दा होता है, और इन
दोनों दशाओं के सूचक चिह अलग-अलग दिखाई देते हैं। आप इन स्वप्नों को निरे
अर्थहीन नहीं कह सकते, क्योंकि परियों की कहानियों की तरह, जिनमें मरने के
बाद फिर जिन्दा हो जाना बिलकुल आमबात है, स्वप्नों में भी यह अग्राह्य नहीं
हो सकता। जहां तक मैं ऐसे स्वप्नों का विश्लेषण कर सका हूं, मुझे यह प्रतीत
हुआ कि उनकी तर्कसंगत व्याख्या की जा सकती है, कि मृत व्यक्ति को वापस बुलाने
की पवित्र इच्छा बड़े अजीबो-गरीब रूपों में अपने-आपको प्रकट करती है। मैं
आपके सामने इस तरह का एक स्वप्न पेश करूंगा जो निश्चित ही बड़ा अजीब और
बेतुका लगता है और जिसके विश्लेषण से हमारे सिद्धान्त-विवेचन में पहले आई हुई
बहुत-सी बातें स्पष्ट हो जाएंगी। स्वप्नद्रष्टा का पिता कुछ वर्ष पहले गुजर
गया था :
मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी, पर उसे ज़मीन में गाड़ दिया गया था और वह
बीमार दिखाई देता था। वह जीवित रहा और मैंने भरसक कोशिश की कि वह यह बात न
देख सके। इसके बाद स्वप्न में और बातें आ जाती हैं, जिनका कोई सीधा सम्बन्ध
पहली बातों से नहीं मालूम पड़ता।
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