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मनोविश्लेषण

सिगमंड फ्रायड

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :392
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8838
आईएसबीएन :9788170289968

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‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद


(क) वह अपने मकान में अपने हाल में से गुजर रही थी कि उसका सिर एक नीचे लटकते हुए फानूस से इतने जोर से टकराया कि खून निकल आया। इस घटना से उसे ऐसी किसी बात का ध्यान नहीं आया जो सचमुच हुई हो; उसका कथन बिलकुल दूसरी दिशा में जाता था, 'आप देखते हैं कि मेरे बाल कितनी बुरी तरह. झड़ रहे हैं। कल मेरी मां ने मुझसे कहा था : बेटी, यदि ऐसे ही चलता रहा तो तेरा सिर शीघ्र ही तेरे नितम्ब की तरह केशहीन हो जाएगा।' यहां हम देखते हैं कि सिर शरीर के दूसरे सिरे का सूचक है। फानूस के प्रतीक को समझने के लिएऔर किसी मदद की ज़रूरत नहीं; लम्बे हो सकने वाले सब पदार्थ पुरुष-लिंग के प्रतीक होते हैं। इस प्रकार, स्वप्न का वास्तविक विषय शिश्न के संस्पर्श से शरीर के निचले सिरे पर होने वाला रक्तस्राव है। इसके और भी अर्थ हो सकते हैं। स्वप्नद्रष्टा के और साहचर्यों से पता चलता है कि इस स्वप्न का इस धारणा से सम्बन्ध है कि मासिक धर्म पुरुष के साथ सम्भोग करने से पैदा होता है-यौन विषयों में यह धारणा कच्ची उम्र की लड़कियों में आमतौर पर मिल जाती है।

(ख) स्वप्नद्रष्टा ने देखा कि एक अंगूरों के बाग में एक गहरा गड्ढा है जिसके बारे में वह जानती थी कि वह एक पेड़ के उखड़ने से बना है। इस मामले में उसने बताया कि 'पेड़ गायब था', जिसका अर्थ यह हुआ कि उसने स्वप्न में पेड़ नहीं देखा। परन्तु इन्हीं शब्दों से एक दूसरा विचार भी प्रकट होता है जिससे हमें इसके प्रतीकात्मक निर्वचन के बारे में कोई सन्देह नहीं रहता। यह स्वप्न यौन विषयों में एक और बालकों की सी धारणा, अर्थात् इस धारणा का निर्देश करता है कि शुरू में लड़कियों की जननेन्द्रियां लड़कों जैसी ही थीं, और इस अंग का बाद वाला रूप लिंग-विच्छेद (पेड़ उखड़ने) से बना है।

(ग) स्वप्नद्रष्टा अपनी मेज़ की दराज़ के आगे खड़ी थी जिसे वह इतनी अच्छी तरह जानती है कि यदि कोई छुए तो उसे तुरन्त पता चल जाएगा। मेज़ की दराज़ भी और सभी दराजों, तिजोरियों और सन्दूकों की तरह स्त्री जननेन्द्रिय की प्रतीक है। वह जानती थी कि सम्भोग (या उसके अनुसार कोई भी संस्पर्श) होने पर जननेन्द्रिय इस बात के कुछ संकेत प्रकट करती है और उसे बहुत समय से इस बात की दोषी समझे जाने का भय था। मैं समझता हूं कि इन तीनों स्वप्नों में मुख्य बल जानने पर है। उसके मन में वह समय था जब वह यौन विषयों में बालबुद्धि से खोजबीन किया करती थी, जिसके परिणामों पर उसे उस समय बड़ा अभिमान था।

5. प्रतीकात्मकता का एक और उदाहरण देखिए; पर इस बार मैं उस मानसिक स्थिति का भी संक्षेप में उल्लेख करूंगा जिसमें वह स्वप्न पैदा हुआ। एक पुरुष और स्त्री ने, जो एक-दूसरे से प्रेम करते थे, एक रात इकट्ठे गुज़ारी; पुरुष ने उसका स्वभाव मातृत्वपूर्ण बताया। वह उन स्त्रियों में से थी जिनकी सन्तान-प्राप्ति की इच्छा आलिंगनों के समय बलात् प्रकट हो जाती है, परन्तु उनकी मिलन की अवस्थाओं में यह सावधानी रखना आवश्यक था कि वीर्य को गर्भ में जाने से रोका जाए। अगले दिन सवेरे उठने पर उसने यह स्वप्न सुनाया :

एक लाल टोपीधारी अफसर गली में उसका पीछा कर रहा था वह बचकर भागी और सीढ़ियों पर चढ़ गई और पीछे-पीछे वह भी आ गया। वह दम साधे अपने कमरे में पहुंची और उसने अपने पीछे के दरवाजे को बन्द करके ताला लगा दिया। वह आदमी बाहर रहा और उसने दरवाजे के छेद से झांककर देखा कि वह बाहर बेंच पर बैठा रो रहा था।

लाल टोपीवाले अफसर का पीछा करना और इसका दम साधे हुए सीढ़ियों पर चढ़ जाना, जैसा कि आप जानते हैं, सम्भोग-कार्य को निरूपित करता है। स्वप्न देखने वाली का दरवाज़ा बन्द करके अपना पीछा करने वाले को बाहर रोक देना अपरिवर्तन या विस्थापन की युक्ति का एक उदाहरण है, जिसका स्वप्नों में इतना अधिक प्रयोग होता है, क्योंकि वास्तव में पुरुष ही सम्भोग-कार्य पूरा होने से पहले हटा था। इसी प्रकार, उसने अपने मन के दुःख की भावना को अपने साथी पर डाल दिया है, क्योंकि वही स्वप्न में रोता है, साथ ही उसके आंसू वीर्य का भी निर्देश करते हैं।

आपने यह बात निश्चित ही कभी-न-कभी सुनी होगी कि मनोविश्लेषण के अनुसार सारे स्वप्न मैथुनार्थक होते हैं। अब आप इस निन्दा के झूठ होने के बारे में स्वयं अपनी राय बना सकते हैं। आप इच्छापूर्ति-स्वप्नों के बारे में, जिनमें प्राथमिक आवश्यकताओं-भूख, प्यास और आजादी की चाह-की सन्तुष्टि होती है, सुविधास्वप्नों और अधैर्य-स्वप्नों तथा ऐसे स्वप्नों के बारे में जो स्पष्टतः लोभ और अहंकार सचित करते हैं, सन चुके हैं। पर यह बात आप निश्चित रूप से याद रख सकते हैं कि मनोविश्लेषण के परिणामों के अनुसार वे स्वप्न जिनमें विपर्यास की मात्रा काफी होती है मुख्यतः (पर यहां भी अनन्यतः नहीं) मैथुन सम्बन्धी इच्छाओं को प्रकट करते हैं।

6. स्वप्नों में प्रतीकों के उपयोग के बहुत-से उदाहरण मैं एक विशेष विचार से दे रहा हूं। अपने पहले व्याख्यान में मैंने यह कठिनाई बताई थी कि मेरे कथनों को इस तरह प्रत्यक्ष प्रदर्शित नहीं किया जा सकता कि आपको मनोविश्लेषण की जांच के परिणामों पर विश्वास हो जाए और अब तक आप मुझसे निःसन्देह सहमत हो गए होंगे। परन्तु मनोविश्लेषण की अलग-अलग स्थापनाएं फिर भी इतने घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं कि किसी भी प्रश्न पर विश्वास और निश्चय हो जाने पर सारे सिद्धान्त के अधिकतर भाग को आसानी से स्वीकार कर लिया जाता है। मनोविश्लेषण के बारे में यह कहा जा सकता है कि यदि आप इसे अपनी कनिष्ठिका पकड़ाएंगे तो शीघ्र ही यह आपका पहुंचा पकड़ लेगा। यदि गलतियों की व्याख्या को आप सन्तोषजनक मानते हैं तो तर्क का तकाज़ा है कि बाकी सारी बातों में भी आप अविश्वास न करें। स्वप्न-प्रतीकात्मकता भी इसी तरह इन बातों को स्वीकार करने में सहायता पहुंचाती है। मैं आपको एक गरीब वर्ग की औरत का स्वप्न सुनाऊंगा, जो प्रकाशित हो चुका है। इस औरत का पति चौकीदार था, और हम निश्चयपूर्वक मान सकते हैं कि उसने स्वप्न-प्रतीकात्मकता और मनोविश्लेषण का नाम भी कभी नहीं सुना था। तब आप स्वयं यह फैसला कर सकते हैं कि यौन प्रतीकों की मदद से निकाले गए अर्थ को मनमाना या खींचतान से निकाला गया कहना उचित है या नहीं।

'तब कोई सेंध लगाकर मकान में घुस आया और उसने डर के मारे चौकीदार को आवाज लगाई, पर चौकीदार दो आवारागर्दों के साथ एक चर्च में चला गया था, जिसमें कई सीढ़ियां चढ़कर जाया जाता था। चर्च के पीछे एक पहाड़ था, और पहाड़ पर एक घना जंगल। चौकीदार ने लोहे का टोप, गले का कवच और चोगा पहन रखा था और उसकी भूरी दाढ़ी लहरा रही थी। उसके साथ जो दो आवारागर्द शान्तिपूर्वक गए थे, वे चोगे पहने हुए थे, जो उनके धड़ों पर बोरों की तरह लिपटे हुए थे। एक पगडंडी चर्च से पहाड़ की ओर जाती थी और उसके दोनों ओर ऊंची-ऊंची घास और झाड़ियां थीं जो अधिकाधिक घनी होती जाती थीं और पहाड़ की चोटी पर बाकायदा जंगल था।'

आप यहां उपर्युक्त प्रतीकों को बिना परेशानी के पहचान जाएंगे। पुरुषलिंग तीन व्यक्तियों के दीखने से निरूपित हुआ है और स्त्री के यौन अंग चर्च, पहाड़ और जंगल से युक्त दृश्य से निरूपित हुए हैं और सीढ़ियों पर चढ़ने का कार्य यहां भी सम्भोग-कार्य का प्रतीक है। शरीर का जो भाग स्वप्न में 'पहाड़' कहा गया है, उसे शरीर-शास्त्र में भी कामाचल (Mons veneris) कहते हैं।

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