विविध >> मनोविश्लेषण मनोविश्लेषणसिगमंड फ्रायड
|
286 पाठक हैं |
‘ए जनरल इन्ट्रोडक्शन टु साइको-अनालिसिस’ का पूर्ण और प्रामाणिक हिन्दी अनुवाद
पर मैं पहली विशेषता के आधार पर आश्रित एक दूसरी विशेषता की ओर आपका ध्यान
खींचना चाहता हूं, और वह यह है कि बचपन के आरम्भिक वर्षों की विस्मृति में
कुछ स्पष्ट रूप से रखी हुई स्मृतियां निकल आती हैं, जो अधिकतर सुघट्य
प्रतिबिम्बों के रूप में होती हैं, जिनके बने रहने के लिए कोई पर्याप्त कारण
नहीं मालूम होता है। बाद के जीवन में जो अनेक संस्कार पड़ते हैं, उन पर
स्मृति वरण, अर्थात् छंटाई के प्रक्रम से कार्य करती हैं-महत्त्वपूर्ण को रख
लेती है और महत्त्वहीन को छोड़ देती है, पर बचपन से याद बातों के बारे में यह
स्थिति नहीं है। आवश्यक नहीं है कि वे बातें बचपन के महत्त्वपूर्ण अनुभवों को
सूचित करती हों, यहां तक कि बहुत बार ये ऐसी चीजें भी नहीं होतीं जो बच्चे के
दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण मालूम हुई हों, बल्कि प्रायः अपने-आपमें इतनी
तुच्छ और अर्थहीन होती हैं कि हम अपने-आपसे आश्चर्य के साथ यही पूछ सकते हैं
कि यह विशेष घटना भूली क्यों नहीं! मैंने विश्लेषण की मदद से बचपन के
स्मृति-नाश की और उसमें से दीखने वाले स्मृति-खण्डों की समस्या हल करने की
कोशिश की है, और मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि चाहे उसके विपरीत कोई भी
प्रमाण मिले, पर असलियत यह है कि बड़ों की तरह बच्चा भी महत्त्व की बातें ही
स्मृति में कायम रखता है। पर जो चीज़ महत्त्वपूर्ण है वह (संघनन के, और विशेष
रूप से, विस्थापन के, जिन दोनों से आप परिचित हैं, प्रक्रमों द्वारा) स्मृति
में किसी ऊपर से मामूली दीखने वाली बात के रूप में निरूपित होती है। इस कारण
मैंने बचपन की इन स्मृतियों को पर्दे की स्मृतियां1 कहा है। पूरे विश्लेषण के
द्वारा उनसे वे सब बातें निकाली जा सकती हैं, जो भूल चुकी हैं।
मनोविश्लेषण द्वारा होने वाले इलाज में बचपन की स्मृतियों की खाली जगहों को
प्रायः भरना पड़ता है और वह इलाज जहां तक सफल होता है वहां तक हम उन आरम्भिक
वर्षों की विस्मृति के गर्त में गड़ी हुई वस्तु को सामने लाने में सफल होते
हैं। ये संस्कार असल में कभी भूले नहीं, बल्कि सिर्फ पहुंच से बाहर और गुप्त
हो गए थे, क्योंकि वे अचेतन का हिस्सा बन गए थे। पर कभी-कभी ऐसा होता है, कि
वे अचेतन से आपसे-आप निकल आते हैं और स्वप्नों के सिलसिले में ही ऐसा होता
है। स्पष्ट है कि स्वप्न-जीवन इन गुप्त तथा बचपन के अनुभवों पर लौटने का
रास्ता जानता है। इनके बहुत-से अच्छे उदाहरण मनोविश्लेषण-सम्बन्धी साहित्य
में मिल जाते हैं, और मैंने भी इस प्रकार के कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। एक
बार एक खास सिलसिले में मुझे एक ऐसे व्यक्ति का स्वप्न आया जिसने स्पष्टतः
मेरी कुछ सेवा की और जिसे मैंने स्पष्ट रूप में देखा। वह काना, छोटे कद का,
मोटा और ऊंचे कंधों वाला आदमी था। प्रसंग से मुझे यह पता चला कि वह डाक्टर
था। सौभाग्य से मेरी मां उस समय जीवित थी। मैंने उससे पूछा कि जहां मैं पैदा
हुआ था और जहां से मैं तीन वर्ष की आयु में चला आया था, वहां हमारा इलाज करने
वाले डाक्टर का ऊपरी रूप कैसा था। उसने मुझे बताया कि उसके सिर्फ एक आंख थी,
और वह नाटा, मोटा, ऊंचे कंधों वाला था। मुझे वह घटना भी बताई गई जिस पर उस
डाक्टर को बुलाया गया था और जिसे मैं भूल गया था। बचपन के शुरू के वर्षों की
भूली हुई सामग्री की यह सत्ता भी इस प्रकार स्वप्नों की एक आर 'अतिप्राचीन'
विशेषता है।
------------------------
1. Screen-memories
|