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धर्म एवं दर्शन >> हमारे पूज्य देवी-देवता

हमारे पूज्य देवी-देवता

स्वामी अवधेशानन्द गिरि

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :208
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8953
आईएसबीएन :9788131010860

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’देवता’ का अर्थ दिव्य गुणों से संपन्न महान व्यक्तित्वों से है। जो सदा, बिना किसी अपेक्षा के सभी को देता है, उसे भी ’देवता’ कहा जाता है...

सिद्धिदात्री

मां दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम 'सिद्धिदात्री' है। ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व-ये आठ सिद्धियां होती हैं। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण' के श्रीकृष्ण जन्मखंड में ये सिद्धियां अठारह बताई गई हैं। जिनके नाम इस प्रकार हैं-अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वासिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि।

मां सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ हैं।'देवी पुराण के अनुसार शंकर जी ने इनकी कृपा से इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकंपा से श्री शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वह लोक में अर्द्धनारीश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल-पुष्प पर आसीन होती हैं। इनके दाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बाईं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल-पुष्प है।

नवरात्र पूजन के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की ही उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है। उसके लिए सृष्टि में कुछ भी अगम्य नहीं रह जाता। उसमें ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य आ जाती है। अत: प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि वह मां सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। इनकी कृपा से मनुष्य अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ मोक्ष प्राप्त कर सकता है।

मां भगवती का परम सान्निध्य ही साधक का सर्वस्व है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। मां के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए हमें निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी साधना-उपासना करनी चाहिए। मां भगवती का स्मरण, ध्यान और पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है।

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