अतिरिक्त >> देवांगना देवांगनाआचार्य चतुरसेन
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आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का एक रोचक उपन्यास...
इसी समय उसे कुछ खटका प्रतीत हुआ। उसने आँखें उठाकर देखा तो दिवोदास नंगी तलवार लिए सम्मुख खड़ा था। सिद्धेश्वर उछलकर दूर जा खड़ा हुआ। उसने कहा-"तू यहाँ कैसे आया रे धूर्त भिक्षु?"
"इससे तुझे क्या?"
"क्या ऐसी बात?" उसने खूंटी से तलवार उठाकर दिवोदास पर आक्रमण किया।
दिवोदास ने पैतरा बदलकर कहा-"मेरी इच्छा तेरा हनन करने की नहीं हूँ।"
"परन्तु मैं तो तुझे अभी टुकड़े-टुकड़े करके भगवती चण्डी को बलि देता हूँ।"
सिद्धेश्वर ने फिर वार किया। परन्तु दिवोदास ने वार बचाकर एक लात सिद्धेश्वर को जमाई। सिद्धेश्वर औधे मुँह भूमि पर जा गिरा। दिवोदास ने ताम्रपट्ट उठाया और अपने वस्त्र में रख लिया।
सिद्धेश्वर ने गरजकर कहा-"अभागे, वह पत्र मुझे दे!"
"वह तेरे बाप की सम्पति नहीं है रे धूर्त।"
"तब ले मर", उसने अन्धाधुन्ध तलवार चलाना प्रारम्भ किया। दिवोदास केवल बचाव कर रहा था, इसी से वह एक घाव खा गया। इस पर खीझकर उसने एक हाथ सिद्धेश्वर के मोढ़े पर दिया। सिद्धेश्वर चीखकर घुटनों के बल गिर गया।
इसी समय माधव तलवार लेकर कक्ष में कूद पड़ा। उसने पीछे से वार करने को तलवार उठाई ही थी, कि सुखदास ने उसका हाथ कलाई से काट डाला। माधव वेदना से मूच्छित हो गया। इसी समय सुयोग पाकर दोनों भाग निकले। भागते-भागते सुखदास ने कहा-"वहाँ-कुंज में बिटिया छिपी बैठी है। तुम उसे लेकर और दीवार फाँदकर वाम तोरण के पीछे आओ, वहाँ अश्व तैयार है। मैं उधर व्यवस्था करता हूँ।"
यह कहकर सुखदास एक ओर जाकर अन्धकार में विलीन हो गया। दिवोदास उसके बताए स्थान की ओर दौड़ चला।
संकेत पाते ही मंजु निकल आई। दिवोदास ने कहा, "तुम्हारा कार्य हुआ?"
"हाँ! और तुम्हारा?"
"हो गया ?"
"‘तब चलो।"
"किन्तु वह वृद्ध?"
"उन्हें मैंने आगे भेज दिया है।"
"तब चलो।" दोनों काम तोरण के पृष्ठ भाग की ओर वृक्षों की छाया में छिपते हुए चले। दिवोदास एक वृक्ष पर चढ़ गया। उसने मंजु को भी चढ़ा लिया और दोनों दीवार फाँद गये। दिवोदास ने कहा-"यहाँ, अश्व तो नहीं है!"
"पर रुकना निरापद नहीं, हमें चलना चाहिए।"
"चलो फिर, अश्व आगे मिलेंगे।"
दोनों अन्धकार में विलीन हो गए।
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