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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

राजपूत ने अपनी गम्भीरता नहीं त्यागी, वह उसी गम्भीर स्वर में शान्ति से बोला-"अब तो तुम गालियाँ भी दे चुके। अब कहो तो हम चले जाएँ।”

डाकू सरदार स्तब्ध रह गया। वह चुपचाप खड़ा कुछ सोचने लगा। यह निर्भीक उत्तर और अकम्पित स्वर क्या कायरों का हो सकता है? उसने कहा - "तुमने आपस में क्या संकेत किया था-उसका भेद बताओ।”

राजपूत ने उसी सहज शान्त स्वर में कहा- "उससे तुम्हें क्या मतलब है? अब और कुछ हमारे पास देने को नहीं है।”

"पर वह भेद बिना बताये जाने न पाओगे।”

राजपूत ने स्वामी की ओर देखा। उन्होंने मन्द मुस्कान के साथ अनुमति दे दी।

राजपूत ने कहा- "ये नागौर के कुँवर अमरसिंह है, राठौर-पति महाराज गजसिंह के ज्येष्ठ

पुत्र। महाराज ने इन्हें देश-निष्कासन दिया है। अब यह दिल्लीपति शाहजहाँ के पास आगरे जा रहे हैं। वहाँ शहज़ादा औरंगजेब से युद्ध होने की अफवाह है, उसीमें सम्मिलित होकर दो-दो हाथ दिखाने की इनकी इच्छा है। तुमने बीच में विघ्न डाल दिया है। तुम्हारी इस धृष्टता पर पहले मुझे क्रोध आ गया था और मैंने स्वामी से पूछा कि तलवार तब निकाली जाए या अब। स्वामी ने आज्ञा दी कि ये पहाड़ी चूहे-जो समाज से मुँह छिपाकर जंगली में हिंसक जन्तुओं की भॉति पड़े रहते हैं और पथिकों को असहाय पाकर लूटते हैं-ये हमारी तलवार के पात्र नहीं-हमारी राठौरी तलवार तो बादशाहों और शहज़ादों के मुकाबले में निकलेगी। इन कुत्तों को टुकड़ा फेंक दी और आगे बढ़ी। यही मैंने किया।”

डाकू-सरदार आगे बढ़ा। उसने घुटनों के बल बैठकर अमरसिंह का अभिवादन किया और अपनी तलवार उसके चरणों में रखकर कहा-

"स्वामिन्, आपकी वीरता और ओज का मुकाबला करने की सामर्थ्य राजपूताने में किसकी है, जो कोई आपके सामने वीरता का दावा करे। परन्तु महाराज, मैं भी कुलीन राजपूत हूँ, और अब आपकी रकाब के साथ सेवा में हूँ। इससे मेरे सब पापों का प्रायश्चित हो जाएगा। मेरे साथ पाँच हजार योद्धा हैं। वे सब ऐसे हैं कि जब तक एक बून्द भी रक्त उनके शरीर में रहे-खड़े रहेंगे। वे सभी आपके पसीने के स्थान पर प्राण देंगे। इनके सिवा इस दास के पास असंख्य धन-रत्न भी हैं। महाराज, हमें शरण में लीजिए।”

घृणा और तिरस्कार का जो मन्द हास्य अमरसिंह के मुँह पर था, उड़ गया। उनके नेत्रों में आँसू झलक आये। उन्होंने आगे बढ़कर कहा, "मैंने तुम्हें तुच्छ समझा था, पर तुम प्रकृत वीर हो।” यह कहकर उसे छाती से लगा लिया और तलवार उसकी कमर में बाँधकर कहा-

"यह यहाँ शोभा और यश प्राप्त करेगी। तुम्हारे वीर मेरे सगे से भी अधिक हुए।”

इस छोटी-सी वीर टोली ने आगरे में क्या-क्या रंग दिखाये यह इतिहास के पुराने पन्नों में अभी जीवित है।

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