अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
|
6 पाठकों को प्रिय 174 पाठक हैं |
बड़ी बेगम...
टीपू ने जब यह सुना तो मराठों से सुलह करने लगा। कार्नवालिस इससे बेखबर नहीं था। उसने प्रत्येक सम्भव उपाय से मराठों को भी अपनी तरफ कर लिया। टीपू की एक न चली। मराठों और निजाम दोनों से कार्नवालिस ने यह वादा किया कि जो इलाका टीपू को जीतकर प्राप्त होगा, वह दोनों में बराबर-बराबर बाँट दिया जाएगा। इंग्लैण्ड से कार्नवालिस को इस काम के लिए 5 लाख पौण्ड और कुछ गोरी फौज भी भेज दी गयी थी। इतना ही नहीं, पार्लियामेण्ट ने लार्ड कार्नवालिस को कुछ विशेषाधिकार भी दिये थे, जो दूसरे किसी गवर्नर को प्राप्त न थे। कार्नवालिस के भारत रवाना होने के समय पार्लियामेण्ट ने एक नया कानून बना दिया था, जिसके द्वारा गवर्नर जनरल को अपितु सब गवर्नर को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वे अपनी कोन्सिलों की राय के विरुद्ध या बिना उनके पूछे ही चाहे जो काम कर सकता था। इसके अलावा कुछ ऐसे कानून बना दिये गये थे जिनसे कम्पनी के डायरेक्टरों के अधिकार कम हो गये थे और भारत का शासन-सूत्र बहुत कुछ पार्लियामेण्ट और ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल के हाथों में आ गया था।
करने और न करने योग्य प्रत्येक उपाय द्वारा, जो राजनीति में उचित माने जाते हैं, टीपू को पराजय का मुख देखना पड़ा। उसके वे यूरोपियन नौकर जिनके कौशल
और वीरता से उसने और उसके पिता ने विजय पर विजय प्राप्त की थी, टीपू के लिए काल बन गये। यही नहीं, उसके वे सरदार भी जिन्हें उसने जागीर और रुतबा दिया था, नमकहराम हो चुके थे।
बंगलौर का पतन हो चुका था और अंग्रेज़ी सेना धावा मारती हुई रंगपट्टनम की ओर बढ़ी चली आ रही थी। टीपू ने फलों से भरे हुए जो ऊँट सुलह की इच्छा से कार्नवालिस के पास भेजे थे, उन्हें उसने तिरस्कारपूर्वक लौटा दिया था। अब भी रंगपट्टनम के बचने का कोई मार्ग न रह गया था।
सन्धि हुई। टीपू का आधा राज्य कम्पनी, निजाम और मराठों ने परस्पर बाँट लिया। इसके सिवाय टीपू को तीन सालाना किस्तों में 3 करोड़ 30 हज़ार रुपया दण्डस्वरूप देते रहने का वादा करना पड़ा और इसकी अदायगी तक अपने 10 और 8 साल के दो बेटों को गिरवी रखना पड़ा।
महावीर टीपू का हृदय इस अपमान से फट गया। उस दिन से उसने पलंग और बिस्तर पर सोना छोड़ दिया। वह मोटी खादी के एक टुकड़े की ज़मीन पर डालकर सो जाता था।
|