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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

शहज़ादी कुछ देर फूलों के एक गुलदस्ते को उछालती रही। कुछ देर बाद उसने दस्तक दी।

चाँदनी खूब चटख रही थी और बेगम अंगूरी शराब के नशे में मस्त थी। उसका शरीर मसनद पर अस्तव्यस्त पड़ा था। आँखें नशे में झूम रही थीं। उसकी प्यारी विश्वासिनी बांदी हुस्नबानू और खास ख्वाजासरा रुस्तम उसकी खिदमत में हाज़िर थे। इस समय आधी रात बीत रही थी और ठण्डी सुगन्धित हवा चल रही थी। उसने एक बार घूर्णित नेत्रों से इधर-उधर देखा और रुस्तम की ओर रुख कर कहा :

"वह हिन्दू राजा चौकी पर मुस्तैद है न?”

“जी हाँ खुदावन्द!”

"तो उसे हमारे रू-ब-रू हाजिर कर। अपनी मेहरबानियों से हम उसे सरफराज किया चाहती हैं।”

रुस्तम सिर झुकाकर चला गया। बेगम ने गर्दन झुकाकर हुस्नबानू की ओर तिरछी नज़र से देखा और कहा, "क्या तू उस हिन्दू राजा की बाबत कुछ जानती है?”

"सिर्फ इतना ही कि वह एक दयानतदार और नेक रईस है।”

"बस ?''

"खूबसूरत और बाँका भी एक ही है।”

"हरामजादी, क्या तेरी तबीयत उसपर मायल है?” बेगम ने उत्तेजित होकर हाथ का गुलदस्ता बांदी पर दे मारा।

"बांदी ने जमीन तक झुककर बेगम को सलाम किया और कहा, "एक प्याला शीराजी दूँ सरकार?”

"दे। गुलाब और इस्तम्बोल भी मिला।”

बांदी ने स्वादिष्ट शराब का प्याला तैयार कर बेगम के हाथ में दिया।

शराब पीकर बेगम ने कहा, "तू किसी ऐसे मुसब्बिर की जानती है जिसने इस तेरे बांके हिन्दू छैला की तस्वीर बनायी हो?”

"जानती हूँ खुदावन्द।”

"तो सुबह गुस्ल के बाद उसे मय तस्वीर के हाजिर करना, जा भाग।”

बेगम ने प्याला फिर उसपर फेंका और मसनद पर उठंग गयी। इसी समय रुस्तम ने राव छत्रसाल के साथ आकर सलाम किया। छत्रसाल ने आगे बढ़कर बेगम को कोर्निश की।

बेगम ने तिरछी नज़र से ख्वाजासरा की ओर देखा। ख्वाजासरा चुपचाप सलाम करके वहाँ से खिसक गया। अब एकदम एकान्त पाकर बेगम ने कहा, "खुदा का शुक्र है, बैठ जाइये।” उसने मसनद की ओर इशारा किया। पर यह तरुण राजपूत एक कदम आगे बढ़कर ठिठककर खड़ा रह गया। उसने कहा, "शहज़ादी, बेहतर हो मुझे अपनी नौकरी बजाने का हुक्म हो जाए।”

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