अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
"मेरे प्यारे राजा, यह तुम क्या कह रहे हो! तुम्हारी ऐसी ही बातों से मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।” शहज़ादी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उठाकर राजा की ओर देखा और मीठे स्वर में कहा, "आज हम बहुत खुश हैं और उम्मीद है, उस चमेली-सी चटखती चाँदनी का लुत्फ उठाने में राव छत्रसाल दरेग न करेंगे।”
तरुण राजा अपनी जगह पर ही खड़ा रहा। शहज़ादी की शराब से लाल आँखें और भी लाल हो गयीं, परन्तु उसने मन के गुस्से को रोककर कहा, "जानेमन, हमारे पास यहाँ मसनद पर बैठकर हमें सेहत बख्शी।”
"मुझे अफसोस है शहज़ादी, मैं ऐसा नहीं कर सकता।”
"यह मेरे दीनो-ईमान के खिलाफ है।”
"लेकिन हमारी खुशी है, हम तुम्हें दिल से चाहती हैं।”
"मैं नाचीज़ राजपूत हुजूर शहज़ादी की इस इनायत का हकदार नहीं हूँ।”
"तो तुम हमारी हुक्मउदूली की जुर्रत करते हो?”
"हुक्म दीजिए कि मैं चला जाऊँ।”
"इस चाँदनी रात में, इस फूलों से महकती फिज़ा में प्यारे राजा, क्या तुम नहीं जानते कि हम दिल से तुम्हें चाहती हैं, तुमसे दिली मुहब्बत रखती हैं? तुम्हें डर किस बात का है, जानेमन? कही हम वही करें जिसमें तुम्हें खुशी हो।” "शहज़ादी, मुझे चले जाने की इजाजत दीजिये और फिर कभी ऐसा कल्मा जबान पर न लाइए-मैं यही चाहता हूँ।”
"और हमारी मोहब्बत?"
"उसपर शायद मनसबदार नजावत खाँ का हक है।”
"ओह, समझ गयीं। तुम्हें रश्क हो सकता है दिलवर, लेकिन हम तुम्हें चाहती हैं, सिर्फ तुम्हें। तुम मेरे दिलवर हो। जिस दिन मैंने पहली बार झरोखे से तुम्हें घोड़े पर सवार आते देखा-जिसकी टाप ज़मीन पर नहीं पड़ती थी और तुम उसपर पत्थर की मूर्ति की तरह अचल बैठे थे-तभी से तुम्हारी वह मूर्ति हमारे मन में बस गयी है दिलवर। उस दिन तुम्हें देख हम अपने को भूल गयीं। तभी से हमारा दिल बेचैन है। हम तुम्हें अपने आगोश में बैठाकर खुशहाल होना चाहती हैं। हरचन्द दिये। आज हमने तुम्हें पाया है। अब हमारे पास आकर बैठी। हम अपने हाथ से तुम्हें इत्र लगाएँ, तुम्हें प्यार करें और अपने दिल की आग को बुझाएँ।”
"हज़रत बेगम साहिबा, इस वक्त आपकी तबीयत नासाज है, मैं जाता हूँ।”
बेगम शेरनी की तरह गरज उठी।
"तुम्हारी यह हिमाकत, हमारी आरजू और मुहब्बत को ठुकराओ! क्या तुम नहीं जानते कि हमारे गुस्से में पड़कर बड़ी से बड़ी ताकत को दोज़ख की आग में जलना पड़ता है!”
लेकिन राजा पर इस बात का भी कोई असर नहीं हुआ। उसने बेगम की किसी बात का जवाब नहीं दिया। उसने मस्तक झुकाकर बेगम का अभिवादन किया और तेजी से चल दिया बेगम पैर से कुचली हुई नागिन की भाँति फुफकारती हुई मसनद पर छटपटाने लगी।
राजा के बाहर आते ही दूल्हा ने सलाम करके हँसते हुए कहा, "मुबारक राजा साहेब, मुबाकर, शहज़ादी का प्रेम मुबारक।” राजा का हाथ तलवार की मूठ पर गया और दूल्हा भाई हँसता हुआ भाग गया।
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