अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
बेला ने सुना। वह डोली के बहुमूल्य सुनहरी पर्दे को चीरकर बाहर आयी। उसने ललकारकर कहा, "इस बारात में कोई वीर है?”
यह अनोखी ललकार थी। ऊदल आगे बढ़े-शोक से उनकी छाती भर रही थी। उन्होंने तलवार की नोक धरती पर गाड़कर कहा, ‘बेटी! क्या आज्ञा है?”
"सती होने की। क्या उसका प्रबन्ध कर सकते हैं?”
"क्या प्रबन्ध करना होगा?”
“100 मन सूखा चन्दन चाहिए।"
"कहाँ मिलेगा?”
"मेरे पिता की बारहदरी में चन्दन के खम्भे हैं, वे उखाड़ लाने होंगे।”
"सती की जय !” कहकर ऊदल ने तलवार आकाश में घुमायी। बारात अन्तिम नेग लेने नगर में घुसी। भयानक घमासान और लहू की नदी के बीच में खम्भे उखाड़कर लाये गये और बेला सती हुई।
अवसर पाकर महाराज पृथ्वीराज ने महोबा पर धावा बोल दिया। बड़े-बड़े सूर-सामन्त रणमद में मत ही दो-दो तलवारें बाँधे बलिष्ठ घोड़ों पर शस्त्र-सज्जित जमकर बैठ गये। पृथ्वीराज खुरासान देश के एक कीमती सफेद घोड़े पर बैठे। यह घोड़ा राजा को बहुत प्यारा था। इसका नाम श्रृंगारपाद था। उसकी पूंछ चौर के गुच्छे की भाँति थी। उसके चलने से धरती धमकती और सुमों की चोट से बिजली की चमक पैदा होती थी।
पृथ्वीराज की सेना ज्यों ही महोबा की हद में पहुँची-झट महोबा वाले भी तलवारें सूत-सूतकर चढ़ दौड़े। शूरों पर रणोन्माद चढ़ गया। पृथ्वीराज की सेना के सेनापति कान्ह अग्रभाग में, बलभद्रराय पीछे, पृथ्वीराज बीच में और वीरवर संयमराय दाहिने तथा निड्रराय बायें थे। यह सेना रास्ते के गाँवों को जलाती, लूटती, फसल को कुचलती, जमींदारों को बाँधकर मारती-काटती। चली जा रही थी। प्रजा पर ऐसे अत्याचार सुन महोबे वालों का खून खौलने लगा। आल्हा-ऊदल विषैले साँप की भाँति फुफकार मारकर उठे और वीरों का साज सजा प्रजा को अभय-दान देते रणक्षेत्र में आ जूझे।
उधर से चौहान सेना मोच दबाती चली ही आती थी। जब चौहान सेना बिलकुल बगमेल में आ गयी तो झट महोबे वालों ने निशाना उठाया। यह देख कान्ह ने सेना का व्यूह बाँध, लोहा लेने की आज्ञा दे दी। दोनों दल भिड़ गये।
ऊदल ने नंगी तलवार ऊँची कर पुकारकर कहा, "अरे वीरों, इन लुटेरे चौहानों को अभी-अभी टुकड़े-टुकड़े कर डालो।”
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