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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

धीरे-धीरे ये लोग आँखों से ओट हो गये। ऊपर किले तक कोई भी अपरिचित नहीं जा सकता था।

सूर्य पर एक बदली का टुकड़ा आ गया। लोग कानाफूसी करते हुए उस किले की ताक रहे थे। उन रहस्यमयी दीवारों के भीतर क्या हो रहा है, यह जानना दुस्साध्य था।

एक ने कहा, "अभी तो और भी सरदार आवेंगे! मुकुन्ददास खीची-अरे, देखी वह आ रहे हैं! सिर से पैर तक लाल वेश है। मारवाड़-भर में ऐसा योद्धा नहीं। पर...देखो-देखो, वह बुढ़िया बेवकूफ किधर दौड़ी जा रही है? पागल!”

वह बुढ़िया तीर की भाँति पहाड़ी पर से उतर रही थी, उसके मुँह पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। सामने ही सशस्त्र सिपाहियों के झुण्ड के साथ मुकुन्ददास खीची बढ़े चले आ रहे थे। सभी सशस्त्र थे। मुकुन्ददास स्वयं एक फौलादी बख्तर पहने और सिर से पैर तक हथियारों से लदे हुए थे।

वह मुकुन्ददास के घोड़े के आगे गिर गयी। उसके मुख से निकला "ठाकरा, वहाँ किले पर न जाना, वहाँ खून की नदी बह रही है। दगा है, दगा! मैं आँखों देखकर आयी हूँ।”

वह काँप उठी, और दोनों हाथों से उसने आँखें बन्द कर लीं। मुकुन्ददास खीची घोड़े से कूद पड़े। उन्होंने वृद्धा को हाथ से उठाकर कहा, "बूढ़ी माँ, बात क्या है? तुम्हारा अभिप्राय क्या है? क्या किले में...”

उसने सिर उठाकर भयभीत स्वर में कहा, "महाराज, वहाँ प्रत्येक सरदार बकरे की भाँति हलाल किया जा रहा है। बेचारे वीर करनसिंह बघेला और प्रतापसिंह के सिर धरती में लुढ़क रहे हैं। वहाँ प्रत्येक माई का लाल धोखे से ज्यों ही वह घोड़े से उतरकर ड्योढ़ी पार करता है, मार डाला जाता है। वे दगाबाज, पाजी, कुत्ते तुर्क...मैंने आँखों देखा है, महाराज, आँखों देखा है।"

क्षण-भर को सन्नाटा छा गया। मुकुन्ददास का सिर नीचे झुक गया। उन्होंने भर्राई आवाज़ में कहा, "उन्होंने बघेला सरदार को मार डाला? और मेरे प्यारे वीर भतीजे को भी, जिनका कगन अभी नहीं खुला?”

वे कूदकर घोड़े पर चढ़ गये। क्रोध से उनका मुख लाल हो गया। उन्होंने होंठ काटकर कहा, "कायरो, पापियो, हत्यारो!” उन्होंने आकाश की ओर मुँह उठाया और मुट्ठी बाँधकर कहा, "सूर्योदय से प्रथम ही धूल में न मिला दूँ, तो मेरा नाम मुकुन्ददास नहीं!”

उनके प्रत्येक सिपाही ने तलवार सूत ली। मुकुन्ददास ने शाँत स्वर में कहा, ‘इसकी आवश्यकता नहीं है। ठाकरां...मेरे साथ आओ!” वे घोड़े से उतर पड़े, और अपने साथियों तथा उस स्त्री के साथ गहन वन में विलीन हो गये।

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