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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

चर ने कहा, "रमण योग्य है महाराज, गुदगुदा-संपुष्ट यौवन है!”

जिसे महाराज कहकर पुकारा गया था-वह व्यक्ति आगे बढ़ा। उसने घूरकर स्त्री को देखा-स्त्री ने फूलों का श्रृंगार किया था, मुख पर लोध्र-रेणु मला था, चरणों में अलक्तक, होंठों पर लाक्षा-रस, कठ में मणिहार और कानों में हीरक-कुंडल, वक्ष पर नीलमणि जटित कचुकी। अवस्था कोई बीस बरस। जूड़े में शेफालिका के फूल।

पुरुष ने भली भाँति ऊपर से नीचे तक निहारकर कहा, "अच्छा श्रृंगार किया है! सुन्दरी, चल, आज का श्रृंगार मुझे दे! मेरे साथ विहार कर। स्त्री ने भयभीत होकर कहा, "नहीं-नहीं, मेरे आज के श्रृंगार को खन्डित मत कीजिए! आज का श्रृंगार मैंने महाराजाधिराज के लिए किया है।”

"मैं भी एक प्रकार से महाराजाधिराज ही हूँ! उनका भाई हूँ। क्यों रे चरण, क्या कहता है?”

"आप महाराजाधिराज हैं, महाराज!"

"बस तो ला, आज का श्रृंगार तू मुझे दे!” उस महाराज नामक व्यक्ति ने स्त्री का हाथ पकड़ लिया।

"नहीं-नहीं, मुझे छोड़ दीजिए, छोड़ दीजिए महाराज!"

अरे चरण, इस मूख को समझा! यह अपने सौभाग्य को ठुकरा रही है।”

"हतभाग्या है री तू! नहीं जानती महाराज प्रसाद में रत्नाभरण देते हैं!”

परन्तु स्त्री ने जोर लगाकर अपना हाथ छुड़ा लिया और उस तरुण को पीछे धकेल दिया। तरुण मद्य के नशे में लड़खड़ा रहा था। धक्का खाकर भूमि पर गिर गया। गिरे ही गिरे उसने कहा, "पकड़ रे चरण, उसे पकड़ : देख भाग न जाए।”

चरण ने आगे बढ़कर कहा, "क्या कोड़े खाएगी?”

"कोड़े नहीं रे चरण, तू अभी इसका सिर खड्ग से काट डाल, दुर्भाग्या ने इतना अच्छा माध्वी का मद मिट्टी कर दिया। काट ले इसका सिर!”

चरण ने आगे बढ़कर उसका हाथ जोर से पकड़ लिया। इसी बीध उठकर, तरुण ने दो-तीन लात उसके मारी। स्त्री जोर-जोर से रोने लगी। गली में दस-पाँच आदमियों की भीड़ जुट गयी। भीड़ में एक ब्राह्मण भी था। ब्राह्मण बड़ा ही कुरूप, काला और दरिद्र था। उसकी कमर में एक मैली शाटिका थी, कन्धे पर मैला जनेऊ। उसके दो बड़े-बड़े दाँत होंठ से बाहर निकले हुए थे। उसकी टाँगें टेढ़ी थीं और वह कुछ लड़खड़ाता-सा चलता था। जो लोग स्त्री के आर्तनाद को सुनकर एकत्र ही गये थे, उन्होंने देखा-महाराजाधिराज महाप्रतापी धननन्द के छोटे भाई उग्रसेन से किसी स्त्री का वाद-विवाद है, तो वे सब आतंकित हो, खड़े-के-खड़े रह गये। किसी ने भी स्त्री के पक्ष में कुछ कहने का साहस नहीं किया। परन्तु ब्राह्मण ने आगे बढ़कर कहा, "कैसा विवाद है? स्त्री पर कौन अत्याचार कर रहा है?”

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