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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

जीमूतवाहन

प्राचीन काल में मनुष्यों से ऊपर और देवों से नीचे कुछ जातियाँ थीं, जो साधारणत: देव-योनि में ही मानी जाती थीं। उनमें यक्ष, गन्धर्व, अप्सरा, किन्नर, विद्याधर, सिद्ध आदि जातियाँ परिगणित थीं। विद्याधरों के राजा जीमूतकेतु थे। जब वे बहुत वृद्ध हो गये, तो अपने पुत्र जीमूतवाहन को राज्य दे, वन में जाकर तप करने लगे। परन्तु जीमूतवाहन बड़े पितृभक्त और धर्मात्मा थे। पिता के बिना राज्य उन्हें न रुचा, और सिद्ध मन्त्रियों को राज्य-भार सौंप, वे भी तपोवन में माता-पिता की सेवा में आकर रहने लगे।

वहाँ समय पाकर उनके मित्र आत्रेय ने एक दिन कहा, "मित्र, राज्य छोड़कर, बहुत दिनों तक वन में रहकर तुमने माता-पिता की सेवा की, अब चलकर अपना राजपाट सम्भाली!”

परन्तु जीमूतवाहन ने बहुत समझाने-बुझाने पर भी पिता की सेवा नहीं छोड़ी। आत्रेय ने यह भी भय दिखाया कि तुम्हारा परम शत्रु मातंग तुम्हारे राज्य पर दाँत रखता है, वह अवश्य घात करेगा! इसपर जीमूतवाहन ने कहा, "मातंग यदि मेरा राज्य चाहता है तो वह मैं उसे दे दूँगा। परोपकार के लिए मैं शरीर भी दे सकता हूँ!"

कालान्तर में जीमूतकेतु ने पुत्र से कहा, "पुत्र, बहुत दिनों तक उपयोग में आने के कारण समिधा, कुश, पुष्प आदि का यहाँ अभाव हो गया है, इसलिए तुम मलय पर्वत पर जाकर रहने योग्य कोई उत्तम स्थान देखो।”

आत्रेय को साथ लेकर जीमूतवाहन मलय पर्वत पर गया। मलय पर्वत पर चन्दन का सघन वन था। कहीं स्वच्छ-सुशीतल झरने कल-कल शब्द करते बह रहे थे। कहीं पानी की धारा पत्थरों से टकराकर और चूर-चूर होकर जलकण छिटका रही थी। मधुर मलय पवन चन्दन की मीठी सुगन्ध लिये झरने के जल से शीतल हो बह रहा था। जीमूतवाहन को वह स्थल बहुत भाया। वह अपने मित्र से बात करने लगा-इसी समय उसे सामने कोई आश्रम नजर आया, जहाँ से हवन का धुआँ निकल रहा था। जीमूतवाहन ने कहा, "वह देखो, कोई आश्रम प्रतीत होता है। वस्त्र बनाने के लिये यहाँ के वृक्षों की छाल सावधानी से उखाड़ी गयी है। उस निर्मल झरने की धार के नीचे पुराने कमण्डलु दिखाई दे रहे हैं। इधर-उधर बटुकों की टूटी हुई मुंज-मेखलाएँ पड़ी हैं। वृक्षों की ऊँची शाखाओं पर मोर और तोते सामगान-सा कर रहे हैं। चलों देखें।”

दोनों आगे बढ़े। जीमूतवाहन ने कहा, "अहा, वह देखो मित्र, मुनि लोग बालकों के आगे वेद की व्याख्या कर रहे हैं। उधर कुछ बालक समिधा बटोर रहे हैं। कुछ बालिकाएँ पौधों को सींच रही हैं। पास ही कहीं से वीणा के साथ संगीत की भी ध्वनि आ रही है।”

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