अतिरिक्त >> बड़ी बेगम बड़ी बेगमआचार्य चतुरसेन
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बड़ी बेगम...
आत्रेय ने कहा, "मित्र, वीणा बजाकर कौन गा रहा है!”
जीमूतवाहन ने कहा, "सम्मुख एक देवालय है-वहाँ सम्भव है कोई देवांगना हो!” दोनों देवालय की ओर बढ़ चले। मलयगिरि पर सिद्धों का निवास था। वहीं कुलपति विश्वमित्र का आश्रम और गौरी का एक मन्दिर था। सिद्धराज की कन्या मलयवती उत्तम पति प्राप्त करने की इच्छा से गौरी के मन्दिर के आँगन में वीणा पर देवी की स्तुति गा रही थी। जीमूतवाहन अपने मित्र आत्रेय के साथ मन्दिर के पास आये, तो देखा कि देवालय में प्रदीप जलाकर एक अनुपम सुन्दरी देवकन्या वीणा बजाकर गा रही है। दोनों छिपकर सुनने लगे।
गाना समाप्त करके मलयवती ने सखी से कहा, "सखी, आज स्वप्न में भगवती गौरी ने मुझे वर दिया कि विद्याधरों का चक्रवर्ती राजा शीघ्र तुम्हारा पाणिग्रहण करेगा!”
यह सुनकर आत्रेय ने जीमूतवाहन को वहाँ ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा, "देवी, भगवती गौरी ने यही वर तुम्हें दिया है!”
मलयवती ने प्रेम और लज्जा से जीमूतवाहन को देखा और अनमनी होकर वहाँ से चलने लगी। पर उसकी सखी चतुरिका ने कहा, "यह एक भद्र अतिथि है। हमें इसका सत्कार करना चाहिए।” उसने जीमूतवाहन और उसके मित्र का सत्कार कर बैठने की कहा।
सिद्धराज विश्वावसु की इच्छा थी कि वे विद्याधर-कुमार जीमूतवाहन को ही कन्यादान करें। इसलिए जीमूतवाहन का वहाँ आना सुन उन्होंने अपने पुत्र मित्रावसु को उनकी खोज में भेजा था। इधर दोपहर के स्नान का समय हो चुका था। विश्वावसु ने एक तपस्वी मलयवती को बुलाने भेजा था। उसने मलयवती के पास जीमूतवाहन को बैठे देखा। पिता की आज्ञा सुन मलयवती मन्दिर से चली गयी।
मलयवती जीमूतवाहन के प्रेम में व्याकुल हो गयी और चंदनलतागृह में आकर अपनी सखी से अपने मन का सन्ताप कहने लगी। इसी समय जीमूतवाहन ने अपने माता-पिता के लिए गौरी-मन्दिर के निकट आश्रम बना लिया और वे माता-पिता के साथ वहीं आकर रहने लगे। इधर सिद्धराज के पुत्र मित्रावसु ने जीमूतवाहन से मलयवती के पाणिग्रहण की प्रार्थना की। अन्त में माता-पिता की आज्ञा ले जीमूतवाहन का विवाह मलयवती से हो गया।
विवाह के दूसरे ही दिन मित्रावसु ने सूचना दी कि तुम्हारे शत्रु मातंग ने तुम्हारे राज्य पर आक्रमण कर उसे हस्तगत कर लिया है। परन्तु तुम्हें कष्ट करने की आवश्यकता नहीं, मैं अभी सिद्धगण के साथ आकाशगामी विमानों पर चढ़कर परन्तु जीमूतवाहन ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि "मैं राज्य के लिए रक्तपात नहीं चाहता, न मातंग से शत्रुता रखता हूँ। वह राज्य का अभिलाषी है, तो राज्यभोग करे। पर-पीड़न मुझसे न होगा।”
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