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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

 

कोई शराबी था

अब्दुल्ला बहुत खुश था। बहुत ही खुश। वह तहसील का चपरासी है। इसी नौकरी में उसने अपने बाल सफेद किये हैं। जब वह नौकर हुआ था, अठारह साल का पट्ठा था; अब वह पचास के किनारे पहुँच रहा है। बस साल-दो साल की नौकरी है, फिर छुट्टी। अब्दुल्ला छोटा आदमी है, महज तहसील का चपरासी। मगर खुदापरस्त और नेक। रोजे-नमाज़ का पाबन्द। अपनी नौकरी के दौरान उसने बड़े-बड़े हाकिमों की आँखें देखी हैं, पर कभी एक बार भी चूक नहीं की। वह न कभी रिश्वत लेता है, न इनाम मांगता है, न किसीसे झगड़ता है। बस, अपने काम से काम रखता है। अब लोग उसे हाजी कहते हैं। हाकिम उससे खुश रहते हैं। खुशमिजाज है, नेक है, नेकी का दामन पकड़े रहता है।

वह गोरेगाँव का रहने वाला है। पर आज तीस साल से वह गोरेगाँव नहीं गया। नौकरी में दूर-दूर मारा-मारा फिरा। बेचारा अदना चपरासी, कलील तनख्वाह। बाल-बच्चेदार आदमी। न उसे छुट्टी मिली, न ऐसा सुभीता हुआ कि गोरेगाँव जाए। गोरेगाँव उसका वतन है, वहाँ वह पैदा हुआ है। बचपन की स्मृतियाँ उसके दिमाग में ताजा हैं। अपने जीवन के अठारह उभरते हुए वसन्त उसने उसी गाँव में व्यतीत किये हैं। वह बहुधा अपने किशोर जीवन की खट्टी-मीठी स्मृतियों को, जब-तब अपनी आँखों में संजोता रहा है। देश-परदेश में वह मारा-मारा फिरा। बड़े-बड़े पर अपने लंगोटिया यार दलमोड़सिंह को वह नहीं भूला। चौधरी दलमोड़सिंह ! सोने-सा खरा आदमी। वे दिन भी थे जब दोनों दूध-पानी की तरह घुल-मिलकर रहते थे। वह हिन्दू, यह मुसलमान। वह जमींदार, यह अदना चपरासी, लेकिन

दिल दोनों के एक। आज तीस साल से भी ऊपर हो गये, अब्दुल्ला ने चौधरी दलमोड़सिंह को देखा नहीं है। खत-पत्तर का भला क्या मीका? पर कभी एक क्षण को भी वह न चौधरी दलमोड़सिंह को भूला है, न गोरेगाँव को। दोनों की याद आते ही उसे अपनी जवानी याद आ जाती है, बचपन याद आ जाता है, बीते हुए दिन याद आ जाते हैं-जो चले गये हैं, अब लौटकर न आएँगे। कभी नहीं! कभी नहीं!

तीस साल बाद बदलकर फिर वह अपने इलाके में आया है। गोरेगाँव तो सदर से केवल चार ही कोस पर है। यहाँ आये भी डेढ़ महीना हो गया, पर गोरेगाँव जाने का मौका नहीं मिला उसे। साहब ने छुट्टी नहीं दी। घर-गिरस्ती की खटपट ने भी उसे परेशान रखा। और आज बिना माँगे मुराद मिल गयी। साहब का इलाका दौरा कल गोरेगाँव में है। उन्होंने अब्दुल्ला को हुक्म दिया है कि उसे उनकी पेशी में मुकाम पर हाजिर रहना है। उन्होंने उसे अभी से छुट्टी दे दी है।

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