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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

आधी रात होने के बाद बालिका ने आवाज दी। भैया और भाभी दोनों ही चोंक उठे।

पुत्र ने पूछा, "कौन?”

बालिका ने कहा, "मैं हूँ भैया! अम्मा की तबीयत अच्छी नहीं है, उन्हें दस्त और उल्टियाँ ही रही हैं।”

बाबू साहब उठने लगे, किन्तु बहू ने बाधा दी और कहा, "अब रात में उठकर तुम कर क्या लोगे! उन्हें रात में ऐसा हो ही जाता है। सुबह देखा जायेगा। अनाप-शनाप खा लेती हैं, पचता है नहीं!”

एक बार बालिका ने फिर कहा, "अम्मा बहुत छटपटा रही हैं।”

बाबू साहब ने बाहर आकर माता की दशा देखी और झुककर हालात पूछे। बूढ़िया ने आँख खोलकर देखा कि पुत्र खड़ा हुआ है। उसने मन्द स्वर में कहा, "लड़की बड़ी खराब है। नहीं मानी, तुम्हें जगा लायी। जाओ सीओ! मुझे तो ऐसा हो ही जाता है। जाओ सो रही, सवेरे दफ्तर जाना होगा।”

सोया हुआ पुत्र-भाव जागृत् हुआ और वह माता की चारपाई के एक कोने पर बैठ गये। उन्होंने पूछा, "तबीयत कैसी है? तकलीफ तो ज़्यादा नहीं?”

वृद्धा ने कहा, "मुझे तो ऐसा हो ही जाता है! ज़रा खाने-पीने में गड़बड़ी हुई कि पेट में विकार आ गया!”

पुत्र ने डाक्टर को बुलाने की इच्छा प्रकट की, लेकिन वृद्धा ने उन्हें कसम देकर कहा, "डाक्टर की कोई ज़रूरत नहीं। दो रुपया मुफ्त में ले जायेगा। मुझे कुछ भी तो नहीं हुआ।” फिर उन्होंने आज्ञा के स्वर में कहा, "तू जाकर सी जा!” और वह जाकर सो गये। प्रात:काल जब वह उठकर बाहर आये, तो देखा माता का निर्जीव शरीर पड़ा है और बालिका उसी की छाती पर सो गयी है।

इन दोनों स्त्री-पुरुषों को हम जानते हैं-पूरे चटोरे! पहले पते चाटते थे, अब घर को चाट रहे हैं। आशा है, वे शीघ्र ही परस्पर एक-दूसरे को चाट जायेंगे।

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