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बड़ी बेगम

आचार्य चतुरसेन

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :175
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9021
आईएसबीएन :9789350643334

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बड़ी बेगम...

जैसे पाल में झटपट पकाये फलों का स्वाद डाल से टूटे ताज़े फलों जैसा न होकर कृत्रिम-सा होता है, वैसे ही असमय में इस पति-पत्नी की दायित्वपूर्ण घनिष्ठता ने अमला को अस्वाभाविक गम्भीर और अपनी उम्र और स्थिति से कहीं अधिक कृत्रिम बना दिया। इसका सबसे बड़ा असर अमला ही पर पड़ा। उसके शरीर और मन, दोनों ही का विकास रुक गया। पति के घर में रहने को, उसे अपना मानने की जैसे उसे विवश किया गया हो। वहाँ की दीवारें, कमरे, सामान, बिछौने, कपड़े-सभी कुछ उसे अपरिचित-से प्रतीत होने लगे। सास, ससुर, देवर और पति भी जैसे उसे कर्तव्यवश ही अपने समझने पड़े।

उदय की परिस्थिति कुछ और ही थी। जैसे फाँसी की आज्ञा पाने पर कोई अपील में छूट जाये, ठीक उसी भाँति अमला को फिर से पत्नी-रूप में पाकर वह केवल संतोष की एक गहरी सांस ले सके थे। अमला के प्रारम्भिक उल्लास और नवीन जीवन की ओर उन्होंने दृष्टिपात ही नहीं किया। और इसीसे बिना खाद-पानी के पौधे की भाँति, वह मुरझाकर सूख भी गया। परन्तु उदय के लिए मानी सब एकरस था। अमला की यह परिवर्तित, फीकी मनोवृत्ति जैसे उनके लिए सात्म्य हो गयी। फिर भी अमला के प्रति एक उत्सुकता, प्रेम और सहानुभूतिमयी भावना उदय के मन में थी। अमला की किसी भाँति कोई तकलीफ न रहने पाए, इस सम्बन्ध में उदय खूब ही सचेष्ट थे।

विवाह के डेढ़ वर्ष बाद अमला ने पुत्री प्रसव की। कन्या अतीव सुन्दरी, सुमुखी और आकर्षक थी। उसके जन्म से अमला और उदय दोनों ही बहुत प्रसन्न हुए। यह नन्ही-सी बच्ची अपने छोटे-से दूध के समान स्वच्छ पालने पर पड़ी चुपचाप अंगूठा चूसती, छू देने से हँसती और पास जाने पर निर्मल नेत्रों से देखती रहती। वह अपनी अज्ञात भाषा में अपने पास आने वालों से कुछ बातचीत भी किया करती। देखते-देखते वह बड़ी होने लगी।

नन्ही की पहली वर्ष-गांठ का दिन था। उदय उन आदमियों में न थे, जो कन्या-जन्म को पुत्र-जन्म से कम समझते हैं। उन्होंने बड़ी धूमधाम से उसकी प्रथम वर्ष-गांठ मनायी। मित्रों और परिजनों से घर भर गया। भाँति-भाँति के भोजनों और मनोविनोद के सामानों से आगन्तुकों का स्वागत किया गया। अपनी-अपनी भेंट और बच्ची को आशीर्वाद देकर जब मेहमान विदा हो गये, तो उदय बहुत-सी

सटर-पटर चीजें नन्ही के लिए खरीदकर, हँसते हुए घर आये। उनकी आँखों में हँसी थी और दिल में चुहल। अमला के नववधू होकर घर आने पर भी ऐसी चुहल उदय के मन में नहीं उदित हुई थी। अमला उन उल्लास-युक्त आँखों को देखती रह गयी, परन्तु उदय की दृष्टि अमला की ओर नहीं थी वह नन्ही की ओर कुछ देर एकटक देखते रहे। उस गुड़िया की ओर उन्हें पागल की तरह ताकते देख अमला से न रहा गया। उसने पूछा, "इसे इस तरह क्यों तक रहे हो?”

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